कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष यानी एक माह में दो एकादशी होती है. मतलब एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, जिस वर्ष अधिकमास हो उस वर्ष यह 26 हो जाती हैं. एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी रात्रि में होती हैं. पारण द्वादशी को होता है, यानी व्रत पूर्ण द्वादशी को ही होता है. इस दौरान मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
पारण के नियम
यह व्रत करने के लिए दशमी को रात को भोजन त्यागना होता है. एकादशी को पूरे दिन-रात निराहार रहकर व्रत रखा जाता है. द्वादशी पर सुबह व्रत खोला जाता है. पारण सूर्योदय के बाद ही होता है. शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी व्रत पारण द्वादशी तिथि खत्म होने से पहले करना जरूरी है. यदि तिथियों की घट-बढ़ के कारण द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व ही खत्म हो गई हो तो ऐसी स्थिति में पारण सूर्योदय बाद ही करना होता है. पारण के समय ध्यान रखना है कि एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान नहीं किया जाता है.
क्या है हरिवासर
द्वादशी तिथि का पहला चौथाई समय हरि वासर कहा जाता है. चूंकि व्रत का पारण हरि वासर में नहीं होता, इसलिए व्रती को पारण के लिए इसके खत्म होने का इंतजार करना होता है. यानी द्वादशी तिथि का प्रथम चौथाई समय बीतने के बाद पारण हो सकता है. पंचांग में हर तिथि की पूर्ण अवधि है, उसके चार भाग कर प्रथम भाग का समय बिताने के बाद ही पारण करना चाहिए. बेहतर होगा कि इसे पंचांग में देखकर ही पारण का समय तय करें.
प्रात:काल में उत्तम है व्रत पारण
एकादशी व्रत पारण के लिए सबसे अच्छा समय प्रात:काल है. व्रती को मध्यान्ह काल के दौरान व्रत खोलने से बचना चाहिए. यानी प्रात: सूर्योदय के बाद तीन-चार घंटों के भीतर व्रत खोल लेना चाहिए. मध्यान्हकाल अर्थात दोपहर में 11 से दोपहर 1 बजे तक व्रत नहीं खोलना चाहिए. किसी कारण आप प्रात:काल व्रत नहीं खोल पाए हैं तो मध्यान्हकाल बीतने पर ही व्रत खोलना चाहिए.
एकादशी दो दिन पड़ने पर
कई बार स्थिति आती हैं कि एकादशी दो तारीखों में पड़ती है. मतलब एकादशी का व्रत लगातार दो दिन रहता है. ऐसे में स्मार्ट मत को मानने वालों को पहले दिन वाली एकादशी, वैष्णव मत वालों को दूसरे दिन वाली एकादशी व्रत करना चाहिए. संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष के इच्छुक लोगों को दूसरे दिन की एकादशी करनी चाहिए.