केशव को नजरअंदाज नहीं करेगा भाजपा हाईकमान, अमित शाह से मुलाकात के बाद लगाई जा रही हैं अटकलें
चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चयन हाई कमान द्वारा करने के बयान के बाद गृहमंत्री से मुलाकात ने भाजपा के एक खेमे की नींद उड़ा दी
लखनऊ। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की दिल्ली में केन्द्रीय गृहमंत्री और केन्द्र सरकार में नम्बर दो की हैसियत रखने वाले अमित शाह से हुई है। इसके पहले केशव मौर्य की मुलाकात जेपी नडडा से भी हो चुकी है। मुलाकात में बातचीत का केन्द्र यूपी विधानसभा चुनाव और इसकी रणनीति को लेकर होने की बात कही जा रही है।
इस मुलाकात से एक दिन पहले ही केशव प्रसाद मौर्य ने बयान दिया था कि चुनाव के बाद यूपी के मुख्यमंत्री का चुनाव भाजपा हाई कमान और विधायक दल तय करेगा। हालांकि ये सहज बयान है और केशव का यह बयान सपा व अन्य विपक्षी दलों के भाजपा पर ओबीसी की लगातार उपेक्षा के आरोप के काउंटर में आया है। लेकिन इस बयान से प्रदेश की राजनीति में हलचल तो पैदा कर ही दी है। बयान के बाद अमित शाह से मुलाकात ने भाजपा के एक खेमे की रंगत उड़ा दी है।
भारतीय जनता पार्टी यूपी फिर फतह करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी अच्छी तरह जानती है कि वर्ष 2017 में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में यूपी को बम्पर बहुमत से जीता था। लेकिन उस समय केशव मौर्य को दरकिनार कर योगी आदित्यनाथ को सत्ता सौंप दी गई थी। इसके बाद भी उम्मीद थी कि केशव की हैसियत में कोई कमी नहीं रहेगी। लेकिन हुआ ठीक उल्टा ही। हैसियत बरकरार रखना तो दूर बीते चार सालों में उपमुख्यमंत्री को अपनी इज्जत बचाना भारी पड़ रहा था।
सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच दरार को खाई में बदलने का काम नौकरशाही ने भी बखूबी किया। लेकिन तारीफ करनी होगी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की जिन्होंने अपमान का हलाहल विष कंठ में उतारा तो जरूर लेकिन मुंह से एक बार भी न तो तो सीएम योगी और न ही केन्द्रीय नेतृत्व के खिलाफ एक शब्द भी निकला। हां चुनाव के करीब केशव मौर्य की भाजपा में उपेक्षा को समाजवादी पार्टी कैश कराने लगी।
ओमप्रकाश राजभर भाजपा पर ओबीसी के साथ छल कराने का आरोप लगाने लगे। इस असहज स्थिति से बचने के लिए केशव मौर्य को आगे आ कर बोलना पड़ा कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद हाईकमान करेगा। आपको बताते चलें कि बीते साढे चार सालों में केशव मौर्य के मंत्रालय में पंचम तल का लगातार हस्तक्षेप उन्हें उकसाने के लिए किया जाता रहा लेकिन गंभीर स्वभाव वाले मंझे हुए नेता केशव मौर्य ये सब भी सहते चले गये। पंचायतों चुनाव में जब बीजेपी को सपा से करारा झटका लगा तब जाकर मंथन और चिंतन शुरू हुआ। ये बात सामने आई कि भाजपा से ओबीसी वोट खिसक रहा है।
भाजपा का पूरा ध्यान इस बार ओबीसी वोट बैंक पर है, जो कि सपा बसपा एवं कांग्रेस के बीच बिखरता रहा है। अब भाजपा इसी ओबीसी वोट को विपक्षी दलों से पूरी तरह छीनने की बिसात बिछा चुकी है, जिसमें सर्वाधिक नुकसान अखिलेश यादव की पार्टी सपा को हो सकता है। गौरतलब है कि केशव मौर्य की लगातार उपेक्षा से समाज का बडा वर्ग यानी ओबीसी नाराज हो चुका है। यहां एक बार फिर केशव मौर्य को दरकिनार कर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को आगे किया गया लेकिन केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह में जमीन आसमान का अंतर है। केशव प्रसाद मौर्य जमीन से जुड़े नेता हैं उनका यूपी में बड़ा जनाधार भी है। पीपुल कनेक्ट नेता की छवि है। हर वर्ग धर्म सम्प्रदाय में उनकी पकड़ भी है।
भाजपा के सर्वेसर्वा अमित शाह भी जानते हैं कि इस बार के चुनाव में भी केशव भाजपा के ट्रम्प कार्ड हैं। हां एक बात और कि स्वतंत्र देव सिंह से भाजपा का हाईकमान जिस पिच पर बैटिंग कराना चाह रहा है वो उसमें रन आउट हो रहे हैं। महंगाई पर बयान दे कर पार्टी की किरकिरी कराने फिर रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने वाले को भाजपा में लाने जैसे मामले में स्वतंत्र देव सिंह की स्वतंत्रता पर हाईकमान अंकुश लगा चुका है। संगठन को सरकार के समानान्तर रखने के बजाये सरकार के कदमों में रखने से विधायकों में खासा आक्रोश है। सरकार के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष से भी भाजपा विधायकों में खासी नाराजगी है।
इन्ही सब कारणों से जब स्वतंत्र देव सिंह को आगे कर ओबीसी वोट को लुभाने की कोशिश हुईं तो उसमें भी पांसा उल्टा पडने लगा तब केन्द्रीय नेतृत्व ने केशव मौर्य को लेकर हस्तक्षेप करना शुरू किया। केशव मौर्य की जेपी नड्डा और अमित शाह से हुई मुलाकात को हल्के में नहीं लिया जा सकता। केन्द्रीय नेतृत्व केशव प्रसाद मौर्य को लेकर आगामी चुनाव में क्या रणनीति बना रहा है इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है लेकिन केशव को बार बार दिल्ली बुलाया जाना मामूली भी नहीं है। भाजपा को मालूम है कि उत्तर प्रदेश के भाजपा नेताओं में केशव प्रसाद मौर्य के जनाधार वाला नेता फिलहाल आसपास भी नहीं नजर आता।