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यूपी स्मारक घोटाला: आय से अधिक संपत्ति में फंसे सलाहकार रहे बीके मुद्गल

लखनऊ: बसपा शासनकाल में हुए 1400 करोड़ के स्मारक घोटाले में विजिलेंस की जांच में नया और सनसनीखेज खुलासा हुआ है. राजकीय निर्माण निगम में वित्तीय परामर्शदाता के पद पर तैनात बिमल कुमार मुद्गल ने सरकारी नौकरी करते हुए एक लोक सेवक सेवानिवृत्ति तक परिसम्पत्तियों के अर्जन और भरण पोषण पर अपनी कमाई का चार गुना खर्च कर दिया. इस मामले में सतर्कता अधिष्ठान ने जांच के बाद अगस्त माह में मुकदमा दर्ज किया गया है. सूत्रों की मानें तो जांच में पता चला कि विमल कुमार मुद्गल कभी साइकिल से आता था और पांच साल में अरबों का मालिक बन बैठा.

विजिलेंस के एक अफसर की मानें तो स्मारक घोटाले में शामिल और राजकीय निर्माण निगम में वित्तीय परामर्शदाता पद पर तैनात बिमल कुमार मुद्गल के खिलाफ सतर्कता विभाग को 31 मई 2019 को जांच के आदेश दिए गए थे. जांच के दौरान टीम ने पाया कि सी-3 निरालानगर लखनऊ निवासी मुद्गल ने अपने भ्रष्टाचार के मामले में अपनी सेवानिवृत्ति के दौरान 17,89,891 की आय अर्जित की गई थी.

जांच में पाया गया कि मुद्गल ने परिसम्पत्तियों के अर्जन एवं भरण पोषण पर किया गया कुल 64,51,360 रुपये खर्च किए हैं. टीम ने पाया कि मुद्गल ने ज्ञात व वैध स्रोतों से अर्जित की गई अपनी आय के सापेक्ष 45,61,469 रुपये का अधिक व्यय किया है. अफसरों की मानें तो मुद्गल ने आमदनी से चार गुना अधिक खर्च किया. इस मामले में निरीक्षक राम विलास यादव ने सतर्कता अधिष्ठान थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1998 13 (1) (बी), भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1998, 13 (2) तहत मुकदमा दर्ज कराया है.

इस IPS ने कसा था शिकंजा

लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी/डीआईजी रहे IPS आशुतोष पांडेय ने स्मारक घोटाले का पर्दाफाश कर लखनऊ में दर्जनों मुकदमे दर्ज कराए थे. इसकी शुरुआत आशुतोष ने घोटाले में शामिल लखनऊ मार्बल के मालिकों पर शिकंजा कसने के साथ किया था. बाकायदा इनकी गिरफ्तारी भी की गई थी, लेकिन बाद में दबाव डलवाकर मामले को दफन करा दिया गया. स्मारक घोटाले में फंसी फर्मों को लोकभवन निर्माण में भी करोड़ों के ठेके दिए गए.

72 आरोपियों के खिलाफ दाखिल हो चुका है आरोप पत्र

अब तक इस मामले में 72 आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हो चुका है. इनमें खनन निदेशालय में संयुक्त निदेशक व सलाहकार रहे डॉ. सुहेल अहमद फारुखी समेत 15 आरोपितों के आरोप पत्र पर संज्ञान लिया जा चुका है, जबकि पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा और अन्य के खिलाफ विवेचना अभी जारी है. लोकसेवकों में सेवानिवृत्त आइएएस रामबोध मौर्य के अलावा उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन परियोजना प्रबंधक पीके जैन, सैयद शमीम अहमद, सुनील कुमार गौतम, सुधीर कुमार अग्रवाल, सुरेंद्र कुमार चौबे, राजीव शर्मा, सत्य प्रकाश गुप्त, भूपेंद्र दत्त त्रिपाठी, अरुण कुमार गौतम, सुधीर कुमार शुक्ला, राजीव कुमार सि‍ंह, राजेश चौधरी, हीरालाल व मुकेश कुमार शामिल हैं. साथ ही उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन अपर परियोजना प्रबंधक अहमद अब्बास रिजवी, सुनील कुमार गौतम, राकेश चन्द्रा, अखिलेश कुमार सक्सेना, तत्कालीन इकाई प्रभारी शिवपाल सि‍ंह, पुरुषोत्तम कुमार शर्मा, काशीराम सिंह, मुरली मनोहर सक्सेना, विनोद कुमार सिंह व शिव कुमार वर्मा को भी आरोपित बनाया गया है. इसमें उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन लेखाकार सुखलाल यादव भी आरोपित है.

इन पर भी आरोप तय, कोर्ट में दाखिल

कंर्सोटियम प्रमुखों में राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल, जितेंद्र मिश्रा, ज्ञानेंद्र कुमार अग्रहरि, अशोक कुमार सिंह, द्वितीय, संतोष कुमार पांडेय, मुन्नी देवी, राम आसरे, मंगला प्रसाद द्विवेदी, हमीद, राम लखन सिंह, राजेश कुमार सिंह, राम परेश, विनोद कुमार श्रीवास्तव, बच्चू लाल, निशा देवी, बचाऊ सिंह, अशोक कुमार श्रीवास्तव, अखिलेश कुमार सिंह, श्याम नारायण, राजेश कुमार जायसवाल, अब्दुल फराह चौधरी, राजकुमार सिंह, सत्यवीर चिकारा, अंकुर अग्रवाल, दिलीप कुमार मौर्या व अंजना के खिलाफ भ्रष्टाचार व साजिश रचने की धारा में आरोप पत्र दाखिल किया गया है. विशेष जज पवन कुमार राय ने सुनवाई के लिए 15 सितंबर की तारीख तय की है.

यह है मामला

वर्ष 2007-2011 के दौरान का यह मामला लखनऊ व नोएडा में स्मारकों एवं उद्यानों के निर्माण व इससे जुड़े अन्य कार्यों में प्रयोग किए जाने वाले सैंडस्टोन की खरीद-फरोख्त में अरबों के घोटाले का है. इन स्मारकों में अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतम बु़द्ध उपवन, ईको गार्डन व नोएडा का अंबेडकर पार्क था. इसके लिए 42 अरब 76 करोड़ 83 लाख 43 हजार का बजट आवंटित हुआ था, जिसमें 41 अरब 48 करोड़ 54 लाख 80 हजार की धनराशि खर्च की गई. लोकायुक्त की जांच में राजफाश हुआ कि खर्च की गई धनराशि का 34 प्रतिशत यानी 14 अरब 10 करोड़ 50 लाख 63 हजार 200 रुपये विभागीय मंत्रियों व अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए. लोकायुक्त की रिपोर्ट में इस मामले की एफआईआर दर्ज कर विवेचना की संस्तुति की गई थी. एक जनवरी, 2014 को इस मामले की FIR उप्र सतर्कता अधिष्ठान के निरीक्षक राम नरेश सिंह राठौर ने थाना गोमतीनगर में दर्ज कराई थी.

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