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अफ्रीका के इस देश में चर्चा में क्यों है ‘कफ़न’ ?


मॉरीशस की लाइब्रेरी में विलियम शेक्सपियर और मुंशी प्रेमचंद जैसे महान कथाकार कई दशकों से किताबों के रूप में जीवित हैं। लेकिन मंच पर उतरकर कर दर्शकों तक कटु यथार्थ दिखाने में बाजी हमेशा प्रेमचंद के हाथ ही लगी है। फीनिक्स में आइजीसीआईसी सभागार में इस सप्ताह प्रेमचंद के नाटक ‘कफ़न’ का ऐसा मंचन हुआ कि एक क्षण के लिए दर्शक भी नाटक का पात्र बन गए। शायद यही इस नाटक की विशेषता थी।
रंगमंच की सरहद में आने वाली हर कला का ताना-बाना सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों की तस्दीक करता है लेकिन नाटक का तिलिस्म कुछ ऐसा है कि उसका असर बहुत गहरा और व्यापक होता है। उसका दायरा जीवन के ओर-छोर को नापता है। दरअसल, जीवन की रंगभूमि पर जो कुछ भी घटित होता है नाटक उसकी हर कार्यवाही को जीवंत करने में सक्षम है। इसीलिए समाज को नाटक की और नाटक को समाज की हर दौर में दरकार रही है। इस बात को मॉरीशस का ‘भारती रंग मंदिर’ बखूबी समझता है। यही वजह है कि हिंदी रंगमंच को प्रोत्साहित करने के लिए 1974 से वो मंचन के जरिये समाज के हर वर्ग को जोड़े रखने की कोशिश कर रहा है। अपने जीवंत अभिनय के लिए 1980 में देश के सर्वोच्च ‘नटराज सम्मान’ को हासिल कर चुके इस मंच ने जिस भी देश में अपनी कला का प्रदर्शन किया इसने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी।
प्रवासी भारतीयों की संस्था ‘गोपियों -मॉरीशस’ के 25 साल पूरा होने और भारतीय आज़ादी का अमृत महोत्सव के मौके पर ‘ कफ़न’ नाटक का मंचन हुआ। गोपियों के 75 आयोजनों की कड़ी में ये नाटक भी एक हिस्सा है।
नाटक में शराब की लत और गरीबी से ग्रस्त समाज की कहानी को दर्शाया गया है । इस नाटक का निर्देशन खुद गोपियों संस्था के अध्यक्ष और मॉरीशस के प्रसिद्ध रंगकर्मी चंद्रप्रकाश विनय दसोय ने किया । नाटक की कहानी में घीसू और उसका बेटा माधव भुखमरी, गरीबी और शराब की लत से परेशान होते हैं। माधव की पत्नी गर्भावस्था में होती है। प्रसव के समय इलाज नहीं मिलने के कारण उसकी मौत हो जाती है। पत्नी का अंतिम संस्कार के लिए उनके पास पैसे तक नहीं होते हैं। दोनों गांव वालों से मदद मांगते हैं। गांव वालों से कुछ पैसा मिलने के बाद वह अंतिम संस्कार का सामान खरीदने दुकान पर जाते हैं। इस बीच, दोनों का मन बदल जाता है और पैसे से शराब खरीद लेते है। दोनों कहते हैं कि एक मृत शरीर को दो गज कपड़े की क्या आवश्यकता है। नाटक में दर्शाया गया कि कैसे शराब की लत मनुष्य को बर्बाद कर देती है, और शराब की लत से ग्रस्त मनुष्य को समाज, परिवार की कोई चिंता नहीं होती है।
नाटक में घीसू का अभिनय मॉरीशस के मजे हुए रंगकर्मी अनुदत्त (राजन) दसोय ने किया, जबकि माधव की भूमिका में विश्वदेव रामचरण थे।
इस नाटक में निर्देशक विनय दसोय ने कुछ पात्रों को दर्शकों के बीच बैठाकर न सिर्फ देखने वालों को भी मंच से जोड़ दिया, बल्कि एक फिल्म की तरह ही लाइट, कैमरा और ध्वनि का बेहतरीन इस्तेमाल किया। बेशक प्रेमचंद ने जीवन के आखिरी वर्षों में अभिनय और फिल्म का रुख किया था, विनय दसोय ने भी नाटक के अंत में खुद भिखारी का शानदार अभिनय कर दर्शकों को हैरत में डाल दिया।
यदि लेखक कहानी गढ़ सकते हैं तो कहानी को फिल्मा भी सकते हैं। इस बात को सत्यापित किया था प्रेमचंद ने। अपनी मृत्यु से दो साल पहले 1934 में प्रेमचंद एक्टर की भूमिका में आ गए थे । उनको अभिनय से खूब लगाव था, इसी का नतीजा था कि वे 1934 की फ़िल्म ‘ मजदूर’ में मजदूर नेता का अभिनय किया। इस अभिनय को करते हुए प्रेमचंद मजदूरों के प्रति काफी भावुक हो गए थे। इस बात की खबर ब्रिटिश सत्ता तक पहुंचते ही प्रेमचंद के किताबों की तरह उनकी फ़िल्म के प्रदर्शन पर भी रोक लगा दी गई। नतीजतन एक साल बाद ही प्रेमचंद को बॉलीवुड से घर लौटना पड़ा और ‘गोदान’ नामक विश्व प्रसिद्ध उपन्यास की रचना की। इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद प्रेमचंद 8 अक्टूबर 1936 को दुनिया को अलविदा कह दिए। लेकिन इस कहानी में मॉरीशस (मारीच) का जिक्र कर वो अफ्रीका के इस देश से हमेशा के लिए जुड़ गए।
इस नाटक के लेखक और निर्देशक विनय दसोय कहते हैं – मुंशी प्रेमचंद जमीन से जुड़े साहित्यकार थे, उनका जीवन स्वयं में उपन्यास है, इसे जितना पढ़ा जाय, उतना ही आनंद आता है। रंगमंच ऐसी विधा है जो लोगों को कला के साथ जोड़े रखती है। मैने रंगमंच को जिया है और ताउम्र इसको ही जीता रहूँगा।
विनय दसोय सिर्फ सफल शिक्षक ही नहीं हैं, रंगमंच के लिए उन्हें मॉरीशस के बाहर भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उनके छोटे भाई और गायक अनुदत्त दसोय मॉरीशस में बनी फिल्म ‘स्टोन बॉय’ में अभिनय कर चुके हैं। दोनों भाई अब नयी पीढ़ी को अभिनय के क्षेत्र में आने से पहले रंगमंच की बारीकियों सिखाने में जुटे हैं।
आज के माहौल में ‘कफ़न’ जैसा नाटक ही क्यों ? इस सवाल के जवाब में अनुदत्त का कहना हैं कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं काफी मर्मस्पर्शी और कालजयी है। इन्हीं में से एक है कफन, जो समाज और लोक संस्कृति से जुड़ी है। मुंशीजी ने इस कृति की रचना उस समय के देश, काल, परिस्थिति को देखते हुए की थी। सच ये है कि इसकी प्रस्तुति को देख कर कोई नहीं कह सकता है कि आज के समाज की तस्वीर इससे जुदा है। नाटक में शामिल सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया। भारत के बाहर कफ़न जैसे नाटक का जीवंत अभिनय वाकई प्रशंसनीय है।

साभार:सर्वेश तिवारी

Editor In Chief

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