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पशुपालन क्षेत्र के लिए ऋण सुविधा में विस्तार। लेखक: अतुल चतुर्वेदी सचिव ,पशुपालन एवं डेयरी

2019 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गठित एक कार्य समूह ने उल्लेख किया था कि पारंपरिक कृषि कार्य में लगे किसानों के पास पशुधन और डेयरी किसानों की तुलना में ऋण प्राप्ति की बेहतर सुविधा मौजूद थी। चूंकि 75 प्रतिशत पशुपालक किसान 2-4 मवेशियों के साथ सीमांत किसान की श्रेणी में आते हैं, इसलिए भारत के पशुपालन और डेयरी क्षेत्रों के लिए ऋण की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि संबद्ध गतिविधियों (पशुधन, वानिकी और मत्स्य पालन) को कुल कृषि ऋण का केवल 10 प्रतिशत प्राप्त होता है, जबकि वे कृषि उत्पादन में 40 प्रतिशत का योगदान देते हैं। पशुपालक किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती इस तथ्य से भी जुड़ी हुई है कि जनगणना के तहत एक किसान को उसकी जमीन के स्वामित्व/जोत के आधार पर परिभाषित किया जाता है। परिणामस्वरूप, पंजीकृत भूमि रिकॉर्ड के बिना किसानों के लिए ऋण प्राप्त करना बहुत कठिन हो जाता है। इस स्थिति के समाधान के लिए, सरकार ने पशुधन और डेयरी क्षेत्र में किसानों व उद्यमियों के लिए ऋण उपलब्धता एवं ऋण वित्तपोषण का विस्तार करने के उद्देश्य से कई उपाय पेश किये हैं।

सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा केवल 41 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान कवर किए गए हैं और बहुसंख्यक किसान सूदखोर साहूकारों के सामने असहाय हो जाते हैं। स्थिति में सुधार के लिए, पहला महत्वपूर्ण उपाय 2019 में सामने आया, जब किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा पशुधन क्षेत्र के किसानों को भी दी गई। केसीसी में बैंकों को 2 प्रतिशत की ब्याज छूट प्रदान की जाती है और किसानों को कृषि व संबद्ध गतिविधियों के लिए 3 लाख रुपये तक के अल्पावधि ऋण का समय पर भुगतान करने पर 3 प्रतिशत का प्रोत्साहन दिया जाता है, जिससे ऐसे ऋणों के लिए प्रभावी ब्याज दर कम होकर मात्र 4 प्रतिशत रह जाती है। केसीसी ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि लगभग 70 प्रतिशत पशुपालक महिलाएं हैं, जिनमें से अधिकांश को गिरवी योग्य सम्पत्ति के अभाव में ऋण प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

इसके अतिरिक्त, आरबीआई की रिपोर्ट में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि कुछ राज्यों को अपने कृषि-जीडीपी की तुलना में अधिक कृषि-ऋण प्राप्त होता है, जिसका अर्थ है कि कृषि ऋण का उपयोग गैर-कृषि कार्यों के लिए किया जाता है। इस प्रकार यह क्षेत्रीय असमानता के मुद्दे को रेखांकित करता है, क्योंकि मध्य, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के राज्यों को अपने कृषि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में बहुत कम कृषि-ऋण प्राप्त होता है। इस संदर्भ में, सरकार ने कोविड लॉकडाउन के दौरान डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों के नेटवर्क का समर्थन करने के लिए कई उपाय प्रस्तुत किये, जिनमें प्रमुख हैं – कार्यशील पूंजी ऋण पर 4 प्रतिशत ब्याज छूट देने की योजना। इस योजना के तहत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को 333 करोड़ रुपये जारी किए गए, ताकि इसकी मदद से 24,000 करोड़ रुपये के कार्यशील पूंजी ऋण को सहायता दी जा सके। इसके अलावा, डेयरी किसान बिजली की अनियमित आपूर्ति के कारण पैदा हुई चुनौतियों का सामना करते हैं। फलस्वरूप, कुल दूध उत्पादन का 3 प्रतिशत से अधिक बर्बाद हो जाता है। इसके उपाय के लिए, देश भर में डेयरी सहकारी समितियों एवं किसान उत्पादक संघों को ऋण सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना विकास योजना की घोषणा की गई थी। डीआईडीएफ अवसंरचना के विकास पर केंद्रित परियोजनाओं को प्रोत्साहन देकर देश में संपूर्ण डेयरी मूल्य श्रृंखला का उन्नयन करना चाहता है।

पिछले कुछ दशकों में, निजी क्षेत्र ने डेयरी प्रसंस्करण अवसंरचना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में, लगभग 120-130 एमएमटी का प्रसंस्करण अवसंरचना अंतर है, जो लगभग 20,000 करोड़ रुपये की निवेश क्षमता को दर्शाता है। यदि दुग्ध प्रसंस्करण और वितरण के लिए अवसंरचना की जरूरतों को शामिल किया जाये, तो डेयरी मूल्य श्रृंखला में कुल संभावित निवेश अवसर 1,40,000 करोड़ रुपये का है। इसे ध्यान में रखते हुए, पशुपालन और डेयरी विभाग निजी कंपनियों व उद्यमियों के लिए पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (एएचआईडीएफ) के रूप में एक प्रमुख योजना लेकर आया है, ताकि डेयरी उत्पादों. मांस उत्पाद और पशु चारा से संबंधित प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए ऋण पर ब्याज छूट की सुविधा दी जा सके। क्रेडिट गारंटी जोखिम कम करने वाला एक महत्वपूर्ण उपाय है, जो एमएसएमई को ऋण देने के क्रम में ऋणदाता के जोखिम को कम करता है। इसलिए, 750 करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी निधि की स्थापना की गई है, ताकि उधारकर्ता को उपलब्ध कराए गए मूल ऋण के 25 प्रतिशत तक के एएचआईडीएफ ऋणों के लिए गारंटीकृत कवरेज प्रदान किया जा सके। मूल्य श्रृंखला में कमियों को दूर करने के लिए, एएचआईडीएफ को संशोधित किया गया है, ताकि योजना में नस्ल सुधार प्रौद्योगिकी, वैक्सीन निर्माण और ‘कचरे से कंचन’ से संबंधित अवसंरचना निर्माण को शामिल किया जा सके।

हमारे पशुधन क्षेत्र की कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं – निम्न उत्पादकता स्तर और गुणवत्तापूर्ण व किफायती पशु आहार तथा चारे की कमी। अतः इस क्षेत्र में किसानों को समर्थन देने के उद्देश्य से उद्यमियों को मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर और वाणिज्यिक पोल्ट्री हैचरी से जुड़े नस्ल गुणन फार्मों के सन्दर्भ में पूंजी सब्सिडी प्रदान करने के लिए नई पहल की घोषणा की गई है। इसी प्रकार उन ग्रामीण चारा उद्यमियों के लिए भी 50 प्रतिशत पूंजी अनुदान योजना लागू की जा रही है, जो पशुपालकों को किफायती व गुणवत्तापूर्ण चारा आपूर्ति के लिए सुविधा स्थापित करने के अवसर की तलाश कर रहे हैं। पूंजीगत सब्सिडी और ब्याज में छूट से जुड़े ऐसे कार्यक्रम पशुपालकों को बैंक ऋण की आसान उपलब्धता सुनिश्चित कर सकते हैं।

ऋण उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिए, 2021 के बजट में पशुधन संबंधी गतिविधियों के सन्दर्भ में जमीनी स्तर पर ऋण लक्ष्यों के अंतर्गत बैंकिंग संस्थानों के लिए सावधि ऋण निर्धारित करने की घोषणा की गई थी। 2021-22 लक्ष्यों की 192 प्रतिशत उपलब्धि के आधार पर, 2022-23 के लिए कार्यशील पूंजी ऋण तथा सावधि ऋण, दोनों ही निर्धारित किये गए हैं। सरकार द्वारा शुरू किये गए ऐसे सभी उपाय पशुधन क्षेत्र में ऋण उपलब्धता को बढ़ावा दे रहे हैं, जिनका ग्रामीण भारत में उद्यमिता विकास और धन सृजन की दिशा में गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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