नई दिल्ली: देश में कोरोना की कमजोर होती लहर के बीच इसकी तीसरी लहर को लेकर अलग अलग तरह की बातें कही जा रही हैं. कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि देशमें कोरोना की तीसरी लहर पहले से और भी ज्यादा भयानक होगी. वहीं कुछ का कहना है कि तीसरी लहर में चिता करने वाली बात नहीं. इस बीच एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट ने तीसरी लहर को लेकर बड़ी भविष्यवाणी है.
एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट में अगस्त में तीसरी लहर आने का अनुमान जताया गया है. इसके साथ ही कहा गया है कि इसका पीक सितंबर में होगा. एसबीआई की यह रिसर्च ‘कोविड-19: द रेस टू फिनिशिंग लाइन नाम से पब्लिश हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई दूसरे हफ्ते में रोज आने वाले नए मरीजों की संख्या 10 हजार तक आ जाएगी. श में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 34 हजार 703 नए मामले सामने आए हैं. बड़ी बात यह है कि देश में 111 दिनों बाद इतने कम मामले सामने आए हैं.
कर्ज तले डूब रहे है परिवार, पिछले 4 सालों 7.20 % का उछाल
कोरोना महमारी से जूझ रहे देशवासियों के सामने एक डराने वाली खबर सामने आयी है. एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के परिवार कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं. कोरोना महामारी का लोगों की आय और आर्थिक स्थिति पर बहुत बड़ा असर पड़ा है, इससे परिवार के स्तर पर कर्ज बढ़ा रहा है.
SBI रिसर्च की यह रिपोर्ट कहती है कि फाइनेंशियल ईयर 2020-21 में परिवार पर कर्ज जीडीपी का 37.3 प्रतिशत पहुंच गया है. जो कि पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में 32.5 फीसदी था. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि महामारी की दूसरी लहर की वजह से कर्ज का ये अनुपात चालू वित्त वर्ष में और बढ़ सकता है. वैसे परिवारिक कर्ज का स्तर जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से बढ़ रहा है. इससे पहले नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू की गयी थी.
रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 से चार साल में परिवारों पर कर्ज के स्तर में 7.20 फीसदी की उछाल आई है. वित्त वर्ष 2017-18 में ये 30.1 प्रतिशत था, जो 2018-19 में बढ़कर 31.7 प्रतिशत , 2019-20 में 32.5 प्रतिशत और 2020-21 में उछलकर 37.3 प्रतिशत हो गया.
हालांकि भारत में जीडीपी के अनुपात में परिवार का कर्ज अन्य देशों के मुकाबले कम है . ब्रिटेन में 90 , अमेरिका में 79.5, जापान में 65.3, चीन में 61.7 फीसदी है. जबकि मेक्सिको में सबसे कम 17.4 फीसद है परिवार पर बढ़ते कर्ज का मतलब है कि उनकी बचत दर, खपत और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ने की वजह से कम हुई है.