अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) शासन की वापसी की वजह से भारत सरकार (Indian Government) चिंतित हो चुकी है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल बिपिन रावत (CDS Gen Bipin Rawat) के नेतृत्व में भारतीय सेना (Indian Army) के अधिकारी तालिबान शासन के प्रभाव पर विचार-मंथन करने वाले हैं. इस हफ्ते होने वाली अधिकारियों की इस बैठक में तालिबानी शासन के भारत और उपमहाद्वीप पर होने वाले असर को लेकर भी चर्चा की जाएगी.
पाकिस्तान (Pakistan) स्थित तहरीक-ए-तालिबान (Tehreek-e-Taliban), जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) और हक्कानी नेटवर्क (Haqqani Network) के तालिबान के साथ वैचारिक और ऑपरेशनल संबंध है. ऐसे में तीनों सेनाओं प्रमुखों के साथ सैन्य अधिकारी काबुल में तालिबान के बढ़ते प्रभाव को लेकर सुरक्षा की नजर से इसका मूल्यांकन करेंगे. यहां चिंता की बात ये है कि ये पहली बार होगा जब अफगानिस्तान की जमीन पर अमेरिकी सेना (US Army) की मौजूदगी नहीं होगी.
इन दो वजहों से भारतीय सेना चिंतित
भारतीय सेना के पास सुरक्षा चिंता की कुछ वजहें हैं. सबसे पहला ये है कि अमेरिका सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान (US Troops Pullout From Afghanistan) में उसके अरबों डॉलर के हथियार पीछे छूट गए हैं. ऐसे में भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय जिहादियों के बीच तक इन हथियारों के पहुंचने का बड़ा खतरा है. इन हथियारों में M-4 और M-16 राइफल्स शामिल हैं, जो जिहादियों द्वारा इस्तेमाल होने वाले AK-47 की जगह ले सकती हैं.
वहीं, चिंता वाली दूसरी बात ये है कि सैन्य ग्रेड नाइट विजन डिवाइस भी जिहादियों के हाथ लग सकते हैं. इन्हें आमतौर पर अमेरिकी एक्सपोर्ट व्यवस्था, टेक्टिकल ड्रोन्स और गोला-बारूद के साथ रखा जाता है. इस बात का डर बना हुआ है कि ये अमेरिका निर्मित सैन्य हार्डवेयर जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे इस्लामवादी आतंकी समूहों तक पहुंच सकते हैं. ऐसे में ये आतंकी संगठन कश्मीर में भारत को निशाना बनाने का प्रयास कर सकते हैं.
इसके अलावा, चिंता की बात ये भी है कि तालिबान और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के बीच करीबी रिश्ते हैं. ऐसे में भारत में किसी भी आतंकवादी हमले पर इस्लामाबाद तुरंत अपना पल्ला झाड़कर तालिबान की तरफ इशारा कर सकता है. तालिबान 1.0 की तरह ही इस बात तालिबान 2.0 के राज में आतंकवादी समूहों अपने ट्रेनिंग कैंप को अफगानिस्तान में शिफ्ट कर सकते हैं.
क्यों चिंतित है भारत सरकार
पश्चिमी सीमाओं की ओर से जिहादियों द्वारा पैदा किए जाने वाले खतरों से निपटने के लिए भारतीय सेना तैयार है. लेकिन इसे भारत के विशाल समुद्र तट पर आतंकवादी हमले को लेकर चिंता है. यहां पर हमले के लिए पाकिस्तान आतंकियों को मदद भी पहुंचा सकता है. ऐसे में भारतीय नौसेना और तटरक्षक विभाग को इस तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए योजना बनानी होगी.
भारतीय वायुसेना को अपने वायु रक्षा रडार नेटवर्क को तेज करना होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान स्थित जिहादी भारतीय क्षेत्र में ड्रोन हमला कर सकते हैं. इसके अलावा, भारतीय प्रतिष्ठानों पर ड्रोन के जरिए बम भी गिरा सकते हैं. पिछले जून में लश्कर ने जम्मू एयरबेस पर ड्रोन हमले की शुरुआत भी की थी.