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1971 के युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने में IAF के रोल को विदेश सचिव श्रृंग्ला ने सराहा, कहा- जंग में वायुसेना ने निभाई मुख्य भूमिका

1971 के युद्ध (1971 War) में भारतीय वायु सेना (IAF) की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना करते हुए विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला (Harsh Vardhan Shringla) ने कहा कि भारत के लड़ाकू पायलटों की वीरता ने युद्ध के कुछ सबसे यादगार क्षण प्रदान किए हैं. श्रृंगला ने स्वर्णिम विजय वर्ष कॉन्क्लेव: 2021 में “1971 के युद्ध के मानवीय, राजनीतिक और राजनयिक पहलुओं” पर बोलते हुए कहा कि भारतीय वायु सेना (IAF) ने 1971 के युद्ध के दौरान मुक्ति वाहिनी (Mukti Bahini ) के बहादुर संघर्ष का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें दीमापुर में एक एयरबेस की स्थापना भी शामिल थी.

विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक, श्रृंगला ने कहा कि हमारे लड़ाकू पायलटों की वीरता ने युद्ध के कुछ सबसे प्रेरक क्षण प्रदान किए, जो पौराणिक हैं. बांग्लादेश में सेवा दे चुके विदेश सचिव ने कहा, ‘मैंने ढाका पर भारतीय वायुसेना के पायलटों की डॉगफाइट्स के कई बहादुर वृत्तांतों को सुना है, जिसने बांग्लादेशी लोगों को अपनी छतों से इसे देखने के लिए बेहद प्रेरित किया था.’ उन्होंने कहा कि 1971 का युद्ध एक नैतिक और राजनीतिक जीत थी. यह भारत के लिए एक निर्णायक सैन्य जीत थी.

श्रृंगला ने कहा, ‘इतिहास ने हमें सही साबित किया. बांग्लादेश (Bangladesh) के लोगों ने अपने स्वाभिमान और सम्मान को सही साबित किया और स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए अपनी लड़ाई जीती. 1971 वास्तव में अत्याचार पर न्याय की जीत का युद्ध था.’ श्रृंगला ने कहा कि 3 दिसंबर 1971 को भारत अनजाने में एक ऐसे युद्ध में शामिल हो गया था जो स्वयं निर्मित नहीं था. उन्होंने युद्ध में लड़ने वाले और सर्वोच्च बलिदान देने वाले सभी बहादुर दिलों के प्रति गहरा सम्मान भी व्यक्त किया.

पाकिस्तानी सेना द्वारा नरसंहार की हुई थी निंदा

उन्होंने जोर देकर कहा कि वह शरणार्थी मुद्दे पर भारत की मानवीय प्रतिक्रिया को समकालीन इतिहास में सबसे परिष्कृत और सहानुभूतिपूर्ण मानते हैं. इस बात का जिक्र करते हुए कि तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू. थांट ने अत्याचारों की निंदा की थी और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पूर्वी बंगाल में पाकिस्तान द्वारा उत्पीड़न से भागे लोगों को शरण देने में भारत का समर्थन करने के लिए कहा था, श्रृंगला ने जोर देकर कहा कि भारत में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया था और पूर्वी बंगाल के लोगों को समर्थन देने की आवश्यकता पर पूर्ण राजनीतिक सहमति थी.

उन्होंने कहा, ‘हममें से कुछ लोग बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (Bangabandhu Sheikh Mujibur Rahman) के 26 मार्च 1971 को आकाशवाणी पर प्रसारित बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा और बड़े पैमाने पर ‘बांग्लादेश को पहचानो’ मार्च को याद करेंगे. श्रृंगला ने जोर देकर कहा कि स्वतंत्रता की घोषणा के कुछ दिनों बाद संसद में एक प्रस्ताव पेश किया गया था जिसमें पाकिस्तानी सेना द्वारा “नरसंहार” के रूप में हत्याओं की निंदा की गई थी. भारत ने इससे पहले मार्च में ही, पीआईए के विमानों को भारतीय वायु क्षेत्र का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया था, जिससे पीएएफ के लिए लॉजिस्टिक चुनौतियां खड़ी हो गई थीं.

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