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प्रलेस के राष्ट्रीय महाधिवेशन में परसाई छाए रहे।

जबलपुर।अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ का शीर्ष व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई को समर्पित अट्ठारहवें राष्ट्रीय सम्मेलन में चप्पे चप्पे पर परसाई छाए हुए थे। हरिशंकर परसाई नगर में आयोजित त्रिदिवसीय समारोह में परसाई जी छाए हुए थे। दीवारों से लेकर मंच तक परसाई के चित्रों, उनके व्यंग्य वचनों के पोस्टर सजे हुए थे। देश और विदेशों से समारोह में आये साहित्यकारों की जबान पर परसाई का ही नाम था। मंच के बाहर पंडाल में लगे स्टालों पर परसाई और राहुल सांस्कृत्यायन,प्रेमचंद,नागार्जुन की पुस्तकें धड़ाधड़ बिक रहीं थीं। आलम यह था कि अट्टहास का परसाई विशेषांक दो घण्टे में ही बिक गया। इसके बाद परसाई विशेषांक को पुनः पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का आश्वासन देना पड़ा
भारत के केंद्र बिन्दु पर बसी संस्कारधानी जबलपुर में अखिल भारतीय प्रलेस के 18 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में व्यंग्य को समर्पित ‘अट्टहास पत्रिका’ के ‘परसाई विशेषांक’ का ऐतिहासिक विमोचन हुआ।खचाखच भरे मानस भवन सभागार में आयोजित समारोह में साहित्यकार एवं भारत सरकार योजना आयोग की पूर्व सदस्य पदमश्री सैयदा हमीद, प्रलेस राष्ट्रीय महासचिव डॉ सुखदेव सिंह सिरसा,इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष विभूति नारायण राय, ख्यातिलब्ध कवि नरेश सक्सेना,अट्टहास के प्रधान संपादक अनूप श्रीवास्तव, क्यूबा के राजदूत अलेक्जेंड्रा, प्रलेस अध्यक्ष डॉ सेवाराम त्रिपाठी, राजेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र राजन, प्रलेस आयोजन अध्यक्ष डॉ कुंदन सिंह परिहार, महासचिव तरूण गुहा नियोगी ,परसाई विशेषांक के अतिथि सम्पादक जय प्रकाश पाण्डेय के अलावा देश विदेश से बड़ी संख्या मेंआये प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति में परसाई विशेषांक के साथ कई अन्य पुस्तको और पत्रिकाओं का विमोचन हुआ। लेकिन केवल परसाई पर समर्पित परसाई अंक ही प्रमुख था।
आमजन की बेहतरी एवं जन पक्षधर व्यवस्था निर्माण की चेतना जगाने वाले व्यंग्य पितामह हरिशंकर परसाई जी की जन्मशती के अवसर पर आयोजित इस समारोह में देश भर से जुटे लेखकों ने लोकतंत्र, समानता, भाईचारा की आवाज को बुलंद किया और मानवता प्रेम, भाईचारा, शान्ति के नारे के साथ 500लेखकों ने रैली निकाली। सभी लेखकों का मत था कि दुनिया के महान व्यंग्यकारों में बड़ा नाम परसाई का है। उनके लेखन की विशेषता रही है कि उन्होंने जो लिखा वह इतना दूरगामी व व्यंग्यपूर्ण है कि वह हमारी धरोहर के रूप में रहेगा। परसाई का स्मरण करते हुए आयोजन स्थल पर जगह-जगह परसाई की रचनाओं पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी लगाईं गई और विभिन्न सत्रों में विषय विशेषज्ञों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।’अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे व संविधान की सुरक्षा और संवर्धन की चुनौतियों’ पर बोलते हुए लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नवशरण कौर ने कहा कि हमारे रंगकर्मी, लेखकों, किसानों व बुद्धिजीवियों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि लोगों की तकदीर संवाद से बदली जाती है आतंक से नहीं। उन्होंने लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की कोशिश पर निशाना साधा।
आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि परसाई ने जिस ठिठुरते गणतंत्र की बात कही थी आज वह दिख रहा है,आज जिन हालातों में लेखक समागम हो रहा है ऐसी परिस्थिति कभी नहीं थीं। भगवान सिंह चावला ने कहा कि आज हमारे सामने स्वतंत्रता,समता जैसे मूल्यों को बचाने की चुनौती है हमें मिलकर इन मूल्यों की रक्षा करना चाहिए। इतिहासकार एवं प्रखर वक्ता राम पुण्यानी ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाला ज्यादा से ज्यादा लेखन करने की आवश्यकता है,आज के नेताओं की चमड़ी ज्यादा मोटी हो गई है। कार्यक्रम में एक ही मंच पर तेलुगू, पंजाबी, हिंदी,तमिल सहित देश की अलग-अलग भाषाओं की लिखी पुस्तकों के विमोचन भी हुए।अट्टहास पत्रिका के विमोचन पश्चात् हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित नाटक निठल्ले की डायरी का शानदार मंचन विवेचना रंगमंडल के कलाकारों ने किया। छत्तीसगढ़ नाचा गम्मत के कलाकारों ने परसाई की रचना टार्च बेचने वाला की नाट्य प्रस्तुति दी।देश भर से आए लेखकों के बीच अट्टहास के परसाई विशेषांक की खूब चर्चा हुई, अधिकांश लेखकों का विचार था कि परसाई पर केंद्रित यह ऐतिहासिक अंक शोधकर्ताओं के लिए बहुत उपयोगी रहेगा, अट्टहास पत्रिका के प्रधान संपादक अनूप श्रीवास्तव एवं अतिथि सम्पादक जय प्रकाश पाण्डेय ने सभी लेखकों का आभार माना

प्रलेस के राष्ट्रीय समारोह में जो लेखक ।आकर्षण के मुख्य केंद्र थे उनमें वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, वीरेन्द्र यादव, राकेश वेदा, फारूकी अफरीदी, अलका अग्रवाल सिगतिया, डॉ संजय श्रीवास्तव, रमेश सैनी,जयप्रकाश पांडे, और अट्टहास के परसाई अंक के चलते अनूप श्रीवास्तव प्रमुख थे।

प्रलेस का तीन दिवसीय समारोह कई सत्रों में बंटा था। इन सबसे अलग सत्र भी हुए। संगठन सत्र में अगले अध्यक्ष ,महासचिव, राज्यों के पदाधिकारियों के चयन की खींचा तानी भी चली लेकिन गुपचुप। नरेश सक्सेना का भी राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्विरोध बनने का भी प्रस्ताव आया जिसे नरेश जी ने मना कर दिया अन्ततः राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर पी लक्ष्मी नारायण और महा सचिव सुखदेव सिंह सिरसा चुने गए।
समारोह के अगले दिन शाम को कोकिला रेसॉर्ट में रमेश सैनी,जय प्रकाश पांडे, राजस्थान सरकार के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत के विशेषाधिकारी फारूक अफरीदी,विनोद भरद्वाज और व्यंग्यकार
और पत्रकार अनूप श्रीवास्तव आदि के बीच विशद परिचर्चा भी हुई जिसमे साहित्य के बिंदुओं पर लंबी बात चीत हुई। सुबह की संगोष्ठी में बम्बई की अलका सिगतिया भी जुड़ीं ।
संगोष्ठी का निष्कर्ष था साहित्य वह है जो बेचैनी पैदा करे अनूप जी ने प्रेम चंद का उल्लेख करते हुए कहा भाषा साधन है,साध्य नही। अब हमारी भाषा ने वह रूप प्राप्त कर लिया है।वह भाषा जिसके आरम्भ में बागों बहारऔर बैताल पचीसी की रचना ही सबसे बड़ी साहित्य सेवा थी।अब इस योग्य हो गई है कि उसमें शास्त्र और विज्ञान की भी विवेचना की जा सके। यह सम्मेलन इस सच्चाई की स्पष्ट स्वीकृति है ।फारूक अफरीदी का कहना था कि हमारी साहित्यिक रुचि तेजी से बदल रही है। साहित्य केवल मन बदलाव की चीज नही है। जय प्रकाश पांडे का मानना था कि कुछ समालोचकों ने साहित्य को लेखक का मनोवैज्ञानिक जीवन चरित्र कहा है। रमेश सैनी ने कहा साहित्य मशाल दिखाते हुई चलने वाली सच्चाई है।
कुल मिलाकर हर समारोह की तरह प्रलेस के समारोह में संगति के साथ् विसंगति भी दिखी-परसाई की स्मृति के ताम झाम के साथ समारोह पर परसाई जी के तीन दिन तक पोस्टर लगे रहे,स्टालों पर परसाई का साहित्य बिकता रहा लेकिन मंच पर परसाई पर कोई सत्र कब कहाँ चला,किसने उनपर कब कहाँ बोला इसकी जानकारी अन्ततः नही मिल सकी।लेकिन कुल मिलाकर प्रलेस का राष्ट्रीय महाधिवेशन बहुत ही भव्य था।
( जबलपुर से लौट कर अनूप श्रीवास्तव की रपट)

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