क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की 95वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
लखनऊ: क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की 95वीं पुण्यतिथि पर शनिवार को लखनऊ में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
महापुरुष स्मृति समिति के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के संयोजक भारत सिंह ने शिवाजी मार्ग स्थित भानुमती चौराहे पर आयोजित एक श्रद्धांजलि समारोह में उस दौर में क्रांतिकारियों की घटनाक्रम को याद किया। वह ऐसा समय था जब दिसम्बर 1927 में कड़ाके की ठंड के बीच गोंडा जिला जेल की सुरक्षित बैरक से संभावित पलायन की खबर ने बहुत चौंका दिया। उस समय के जिला जेल अधिकारियों को घबराहट होती रही कि वे क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिरी को मृत्युदंड की तारीख को आगे करने की हद तक चले गए और ठीक 95 साल पहले 17 दिसम्बर को उन्हें फांसी दे दी गई।
हालांकि, यह जानने के बाद भी कि उसकी मृत्युदंड दो दिनों के लिए बढ़ा दी गई है, 26 वर्षीय लाहिड़ी ने दैवीय हस्तक्षेप की मांग करने के बजाय, जेलर के साथ बातचीत की, जिसमें लाहिरी ने कहा कि वह एक नए बच्चे के रूू में फिर से जन्म लेगा। स्वस्थ शरीर, देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए।
अध्यक्ष भारत सिंह ने बताया कि 29 जून, 1901 को उस समय भारत देश का हिस्सा व वर्तमान बांग्लादेश के पबना क्षेत्र में एक ज़मींदार के परिवार में जन्मे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को पढ़ने के लिए बाबा भोलेनाथ की नगरी वाराणसी भेजा गया था। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से परास्नातक (इतिहास) कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात प्रख्यात क्रांतिकारी, सचिंद्रनाथ सान्याल से हुई।
लाहिड़ी में स्वतंत्रता के प्रति उत्साह, जोश और जुनून को देखते हुए सान्याल ने उन्हें पत्रिका बंगा वाणी का संपादक और अनुशीलन समिति की वाराणसी शाखा का समन्वयक और शस्त्र प्रभारी बनाया और वे राष्ट्र को स्वतंत्र करने के लिए आगे बढ़ते रहे।