ये पब्लिक है सब जानती है:सर्वेश तिवारी
भारतीय राजनीति का पिछले कुछ वर्षों के दरमियान जो मिजाज बदला है, उसमें ‘हिंदुत्व’ एक अहम फैक्टर बन गया और किसी भी राजनीतिक दल के लिए उसे नकार पाना संभव ही नहीं है। ढाई दशक के अंतराल के बाद 2017 में यूपी में जब बीजेपी ने (पूर्ण बहुमत से) सत्ता में वापसी की तो उसमें पार्टी के तमाम स्थापित चेहरों को नजरअंदाज करते हुए अगर योगी आदित्यनाथ का चयन मुख्यमंत्री पद के लिए हुआ तो उसकी वजह भारतीय राजनीति के मिजाज में आया ये बदलाव ही था। उनके सत्ता में आते ही दूसरे राज्यों में भी इसका प्रभाव दिखने लगा। स्वाभाविक है विपक्ष को ये रास नहीं आया। लेकिन जिस जनता को महज आश्वासन की मीठी गोली खिला कर दूसरे दल के नेता अपना घर चमकाते रहे, उसी जनता ने दूसरी बार भी योगी को सत्ता में लाकर साफ संकेत दे दिया कि बिना विकास और काम के वो ‘नेता जी’ लोगो को पैदल करना भी जानती है।
यही वजह है कि योगी अब बीजेपी में भी सफल नेता की परिभाषा बन गए हैं। या यूं कहें कि पार्टी अब घर के अंदर भी ऐसा ही ईमानदार, कुशल नेतृत्व योग्य दूसरे सदस्यों को भी बनते देखना चाहती है। लेकिन ये आसान काम नहीं है। 2017 में योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिन-जिन राज्यों में चुनाव हुए पार्टी ने स्टार प्रचारक के रूप में योगी को आगे किया और उनकी सरकार के फैसलों को ‘योगी मॉडल’ के रूप में स्थापित किया। दरअसल बीजेपी शासित दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लगता है कि ‘योगी मॉडल’ कामयाबी का जरिया बन सकता है। ज्यादातर बीजेपी शासित राज्यों में ये शुरू भी हुआ है। लेकिन पूरी तरह ये तभी सफल होगा जब सूबे का मुखिया भी अंदर से योगी हो।
अब तो योगी मॉडल पर काम करने की होड़ लगी है। लेकिन सिर्फ नकल तक ही रह गया। जनता दरबार के नाम पर लोगों से मिलना जुलना भी शुरू हुआ लेकिन कितनी समस्याओं और शिकायतों पर अमल हुआ इसका कोई हिसाब नहीं है।
योगी को लेकर विपक्ष जो आरोप लगाए, खुद गोरखपुर के लोग मानते हैं कि महाराज अच्छे प्रबंधक भी हैं, गोसेवा में लिप्त रहते आए है, जनता दरबार के आयोजनों के जरिए लोगों की शिकायतों का निवारण करते आए हैं, सभी समुदायों के लोग उन पर विश्वास करते हैं। यहां तक कि उनके करीबी कर्मचारियों में मुसलमानों की मौजूदगी या जनता दरबार में मुस्लिम महिलाओं का पहुंचना बताता है कि वह सभी के लिए सहज और सुलभ हैं।
कौटिल्य का भी साफ़ मत है कि राजा को प्रजा की शिकायतों को सुनने के लिए सदैव सुलभ होना चाहिए। प्रजा या नागरिक को अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करवानी चाहिए। राजा को चेतावनी देते हुए चाणक्य ने कहा है कि जिस राजा का दर्शन प्रजा के लिए दुर्लभ है, उसके अधिकारी प्रजा के कामों को अव्यवस्थित कर देते हैं। जिससे राजा प्रजा का कोपभाजन बनता है- ”दुर्दशो हि राजा कार्याकार्यविपर्यासमासंनैः कार्यते। तेन प्रकृतिकोपंरिवंशं वा गच्छेत। ”
जीवन में सफल होने से जुड़ी तमाम किताबें बाजार में मौजूद हैं, यू ट्यूब पर सकारात्मक बात करने वाले ज्ञानी गुरुओं के वीडियो पटे पड़े हैं। फिर भी कुंठा और नकारात्मक सोच में कमी नहीं आ रही है। जाहिर है सिर्फ किताब पढ़ लेने या वीडियो देखने से सम्भव नहीं है। जब तक अमल में उन बातों को न लाया जाए। योगी बनना इतना आसान नहीं है। इसके लिए सबसे पहले निहित स्वार्थ और झूठे आश्वासन को त्यागकर अपने -अपने क्षेत्र में
जमीनी स्तर पर विकास कार्य करना होगा। जिसका बखान जनता करे न की खुद नेता । आज उल्टा हो रहा है। सरकार और पार्टी में नंबर एक बनने की होड़ में जुटे कई नेताओं को यह लगता है कि योगी उनसे इसलिए आगे हैं कि हिंदुत्व के प्रति उनका खुलापन है, तो उन्हें भी वैसे ही तेवर दिखाने चाहिए। इसी नकल में वो बिना जाने समझे बयान तो दे देते हैं लेकिन फजीहत पार्टी की हो जाती है।
एक अच्छा नेता उसे ही कह सकते हैं, जो जानता है कि कैसे खुद से भी बड़ा लक्ष्य लेकर चलना और व्यक्तिगत सीमाओं से परे उठ जाना ज़रूरी है। व्यक्ति नेता तब बनता है, जब वह अपनी व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढक़र सोचने लगता है, महसूस करने लगता है, और काम करने लगता है। एक अच्छा नेता सच्चा, समसामयिक, पारदर्शी, दूरदर्शी और एक सुखद व्यक्तित्व वाला होता है। उसके पास एक मिशन, एक दर्शन, बलिदान, करुणा और प्रतिबद्धता की भावना होती है। राजनीति के प्रकांड पंडित आचार्य चाणक्य ने भी सम्राट अशोक के चुनाव के लिए कठिन परीक्षाओं से यह तय किया था कि उसमें नेतृत्व क्षमता l है भी या नहीं।
योगी आदित्य नाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद सोशल मीडिया में उनकी तुलना सिंगापुर के पहले पीएम ली कुआन यू से खूब की गई। आधुनिक सिंगापुर का जन्मदाता ली कुआन यू को माना जाता है। उनकी दूरदर्शी योजनाओं की वजह से ही इस समय दुनिया के सबसे अधिक विकसित देशों में शीर्ष पांच में सिंगापुर शामिल है। यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने ट्वीट कर कहा था कि यूपी में माफियाओं की 1574 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है। योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के ली कुआन यू बनकर उभर रहे हैं।
जब सिंगापुर की शुरुआत हुई थी, तब वहां के प्रधानमंत्री ली कुआन यू थे। सिंगापुर में उस समय अपराधियों का बोलबाला था। उन्होंने अपराधियों से साफ-साफ कह दिया था कि या तो तुमलोग सुधर जाओ या फिर सिंगापुर छोड़कर चले जाओ, नहीं तो हम तुमको जहन्नुम भेज देंगे। कहते हैं कि अपराध पर उनके नियंत्रण की वजह से सिंगापुर के आर्थिक विकास और समृद्धि की नींव पड़ी। दुनिया के सबसे ज्यादा विकसित देशों में सिंगापुर शुमार है। भारत की तरह कभी यह देश भी अंग्रेजों का गुलाम हुआ करता था। भारत की आजादी के 18 साल बाद अंग्रेजों से मुक्त हुआ सिंगापुर आज तरक्की के सातवें आसमान पर है।
ऑस्ट्रेलियाई सांसद जेसन वुड ने उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के प्रकोप के प्रभावी प्रबंधन के लिए जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना की तो उसके पीछे वजह थी। जेसन ने ट्वीट किया था – “मेरे लिए इस तरह के संदेश के लिए यूपी के माननीय सीएम को बहुत-बहुत धन्यवाद। हम उत्तर प्रदेश के साथ काम करने के लिए उत्सुक है। हम संस्कृति और विकास के संवर्धन के लिए यूपी सरकार के साथ काम करने की आशा करते हैं। इस कठिन समय में यूपी सरकार के कोविड नियंत्रण प्रयासों की सराहना करते है। ”
इतिहास गवाह है जिन -जिन नेताओं ने महज दिखावे के लिए जनता का दुःख दर्द सुना या आश्वासन दिया वो सत्ता ही नहीं राजनीति तक से बाहर हो गए। केंद्र सरकार हो या राज्यसरकार, मोदी और योगी दोनों की सरकारों में बड़बोले और बिना काम के नेताओं को कुर्सी से हाथ धोना पड़ा है। लेकिन इस बात का एहसास उन्हें तब होता है जब कुर्सी जा चुकी होती है। तब दल बदल या सन्यास ही आखिरी रास्ता नजरआता है।