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अमेरिका-यूरोप फिर से बने कोरोना के एपिसेंटर, अभी तक पहेली क्यों बना हुआ है वायरस का पैटर्न

देश में अब तक करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों को चपेट में ले चुके और साढ़े चार लाख से ज्यादा लोगों को जान ले चुके कोराना वायरस के डेली केस बीते कई दिनों से कम आ रहे हैं. लेकिन आज यह संख्या काफी कम रही. आज सुबह स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी पिछले 24 घंटे के आंकड़ों के मुताबिक डेली केस साढ़े सात हजार के करीब रहे. जो पिछले 543 दिनों में सबसे कम है और ये तब हुआ है, जब लगातार एक्सपर्ट्स इस बात की आशंका जता रहे थे कि फेस्टिव सीजन की वजह से केस बढ़ सकते हैं.

लेकिन दुर्गा पूजा, दशहरा, दिवाली और छठ सब कुछ धूमधाम से मनाया गया. लापरवाही भी बरती गई. गनीमत रही कोरोना के केस नहीं बढ़े, लेकिन इसने एक बार विज्ञान की उन थ्योरीज पर सवाल उठा दिए हैं, जिनके आधार पर कोरोना से पूरी दुनिया लड़ रही है. इसका विश्लेषण हम करेंगे. सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की तस्वीर से हर चीज को समझेंगे. लेकिन उससे पहले आपको ये बता दें कि केस कम होने का मतलब ये नहीं है कि हम और आप बेफिक्र हो जाएं. ये समझने लगे कि कोरोना अब किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. क्योंकि कोरोना का कहर भले ही कम हो रहा है, लेकिन कोरोना खत्म नहीं हुआ है.

वायरस अभी भी हमारे और आपके बीच मौजूद है. संक्रमण का खतरा लगातार बरकरार है. जिसका सबूत जयपुर में एक स्कूल में 11 बच्चों के संक्रमित पाए जाने से सामने आ चुका है. ओडिशा के सुंदरगढ़ में भी एक स्कूल की 53 छात्राएं संक्रमित पाई गई हैं. ओडिशा के ही संबलपुर में MBBS के 22 स्टूडेंट कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं.

अमेरिका और यूरोप फिर से कोरोना का एपिसेंटर बने

मतलब ये कि एक ओर जहां कोरोना के खिलाफ बाजी जीतने का अहसास हो रहा है, तो दूसरी ओर कोरोना के सिर उठाने की हकीकत भी सामने आ रही है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि फरेबी कोरोना की फितरत को दुनिया अभी तक पूरी तरह नहीं समझ पाई है.. यही वजह है कि अमेरिका और यूरोप फिर से कोरोना का एपिसेंटर बन चुके हैं.

चंद महीने पहले तक जो अमेरिका कोरोना पर काबू पाता दिख रहा था. जहां केस 9 हजार से भी कम हो चुके थे. वहां अब हालात बेकाबू हो गए हैं. कोरोना पर कंट्रोल के भ्रम की वजह से पाबंदियों में ज्यादा ढील देना भारी पड़ा. अमेरिका जैसा ही हाल ब्रिटेन का भी है. जहां 3 मई को करीब डेढ़ हजार केस मिलने के बाद ऐसा लगा कि ब्रिटेन में कोरोना का अंत होने वाला है .इसके चलते 19 जुलाई आते-आते हर पाबंदी हटा ली गई…और उसका नतीजा हर दिन 40-45 हजार केस के रूप में सामने है.

कोरोना पर कंट्रोल पाने के भ्रम में फ्रांस की सरकार और लोगों ने भी गलतियां कीं और अब वहां पांचवीं लहर आ चुकी है. ये सब कुछ जानने के बाद सवाल उठ रहा है कि कोरोना का पहला केस सामने आए करीब-करीब 2 साल बीत हो चुके हैं. लेकिन अभी तक वायरस का व्यवहार पहेली क्यों बना हुआ है? क्यों अभी तक कोरोना संक्रमण का पैटर्न ठीक से पता नहीं लगाया जा सका है.

सावधानियों से लेकर वैक्सीनेशन तक कंफ्यूजन की स्थिति

2 साल बीत जाने के बाद भी कोरोना वायरस को लेकर वैज्ञानिक ये कहने की स्थिति में नहीं है कि वायरस को पूरी तरह पहचान लिया गया है. लिहाजा सावधानियों से लेकर वैक्सीनेशन तक कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है जिसके कारण दुनिया की स्थिति तेजी से बिगड़ रही है.

पूरी दुनिया चाहती है कि कोरोना का अंत हो जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है, उल्टा कोरोना के कहर की नई लहर चपेट में ले रही है. ऑस्ट्रिया में 20 दिन का संपूर्ण लॉकडाउन लगाया गया है. जो यहां कोरोना काल में लगने वाला चौथा लॉकडाउन है क्योंकि जिस ऑस्ट्रिया में 1 जुलाई तक कोरोना पूरी तरह काबू में नजर आ रहा था…वहां अब पूरी तरह बेकाबू हो गया है.

अस्पतालों में फिर बेड कम पड़ने लगे हैं और जिंदगी फिर वेंटिलेटर पर अटक गई है. ये तस्वीरें जर्मनी की हैं जहां कोरोना संक्रमण के आक्रमण से लोगों की सांसें फिर उखड़ रही हैं. यहां भी जुलाई में एक तरह से कोरोना का खतरा खत्म माना जा रहा था. लेकिन अब कोरोना के मामले हर दिन नया रिकॉर्ड बना रहे हैं. अस्पताल में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 33 जिलों के अस्पताल में 1 भी बेड खाली नहीं है.

ये वॉर्निग बताने के लिए काफी हैं कि कोरोना कैसे काबू में आने के बाद फिर से आउट ऑफ कंट्रोल हो गया है. ये हाल सिर्फ यूरोप ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी है. जहां एक बार फिर मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं और इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि कोलोराडो, मिनेसोटा, मिशिगन समेत 15 राज्यों में ICU बेड्स की कमी के चलते हेल्थ सिस्टम फिर से बेपटरी होता दिख रहा है. लेकिन सवाल है कि आखिर क्यों. क्यों जो देश कोरोना से जंग जीतते नजर आ रहे थे, वहां कोरोना ने ऐसी वापसी की है कि हालात फिर भयावह होते नजर आ रहे हैं.

विज्ञान की थ्योरीज से कोरोना को लेकर पैदा हुआ कंफ्यूजन भी जिम्मेदार

अमेरिका और यूरोप में फिर से कोरोना के हालात हाथ से बाहर निकल चुके हैं. लेकिन इसके लिए एक ओर जहां लोगों की लापरवाही जिम्मेदार है, तो दूसरी ओर विज्ञान की थ्योरीज से कोरोना को लेकर पैदा हुआ कंफ्यूजन भी जिम्मेदार है.

जैसे आपको याद होगा कि पिछले साल WHO की ओर से कहा गया था कि एसिम्प्टोमैटिक मरीजों से संक्रमण नहीं फैलता है. जिस पर दुनिया के बाकी वैज्ञानिकों ने आपत्ति दर्ज कराई. इसके बाद WHO ने अपने दावे से यू-टर्न ले लिया. पिछले साल तक यही कहा जा रहा था कि कोरोना वायरस हवा में नहीं फैलता है. लेकिन इस साल जब पूरी दुनिया में नई-नई लहरों का कहर दिखा, तो वैज्ञानिकों ने ये माना कि कोरोना हवा में भी फैलता है.

कोरोना काल के शुरुआती दौर में कुछ वैज्ञानिकों की ओर से कहा गया था कि एक बार संक्रमित होने के बाद दोबारा संक्रमण नहीं होगा. लेकिन उसके बाद एक-एक करके जब नए स्ट्रेन सामने आए.रिकवर हुए भी संक्रमित होने लगे, तब माना गया कि वायरस में बदलाव की वजह से दोबारा संक्रमण हो सकता है.

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