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क्या विधानसभा चुनावों में होगा पीके का रोल? जानें कब होगी पार्टी में एंट्री और क्या है कांग्रेस की रणनीति

साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी मैनेजमेंट को धार देने की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रशांत किशोर की इन दिनों कांग्रेस में एंट्री को लेकर चर्चा है. हाल के दिनों में उनकी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ मुलाकातों को लेकर अटकलों का दौर जारी है. ऐसे में सवाल है कि क्या प्रशांत किशोर आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के ‘संकटमोचक’ बनेंगे? ’24 अकबर रोड एंड सोनिया: ए बायोग्राफी’ के लेखक रशीद किदवई ने इसका उत्तर ‘नहीं’ में दिया है. हालांकि, किदवई के ‘ना’ वाले उत्तर के बाद फिर एक सवाल पैदा होता है कि फिर कौन होगा कांग्रेस का रणनीतिकार?

इंडिया टुडे में छपे रशीद किदवई के लेख में वो साफ तौर पर कहते हैं कि प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री आने वाले 5 विधानसभा चुनावों के बाद ही संभव है. इस पर विचार को लेकर गांधी परिवार की तिकड़ी ने सहमती जता दी है. किदवई के मुताबिक सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों के खत्म होने के बाद प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री पर चर्चा को हरी झंडी दिखाई है.

किशोर ने भी नहीं दिखाई कोई जल्दबाजी

रोचक बात है कि प्रशांत किशोर ने भी इसके लिए कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई है और वो भी गांधी परिवार की बातों पर सहमति जता चुके हैं. यानी आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को चुनावी रणनीति खुद बनानी होगी. दरअसल, जुलाई 2021 से ही प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने और पार्टी नेतृत्व के संपर्क में रहने की चर्चा चल रही है और पंजाब कांग्रेस के कलह में पार्टी के फैसलों में भी उनके दखल की बात कही गई. हालांकि, किदवई कहते हैं कि पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने में प्रशांत किशोर की कोई भूमिका नहीं थी, बल्कि मल्लिकार्जुन खड़गे चन्नी के नाम को आगे बढ़ाया था और राहुल गांधी ने इस पर मुहर लगाई थी.

किदवई के मुताबिक कांग्रेस प्रशांत किशोर पर 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर दांव लगाने वाली है. 2014 और 2019 में करारी हाल झेल चुकी कांग्रेस के लिए प्रशांत किशोर 2024 के लोकसभा चुनाव में कितने कारगर साबित होंगे ये तो वक्त बताएगा लेकिन सोनिया गांधी के साथ प्रशांत किशोर की बातचीत कांग्रेस पार्टी में सुधार, पार्टी में संगठन के स्तर पर बदलाव, टिकट वितरण प्रणाली को बेहतर करने, चुनावी गठबंधन, डोनेशन आदि पर केंद्रित रही है.

पीके को लेकर कांग्रेस में अलग-अलग मत

हालांकि, कांग्रेस के अंदर खाने प्रशांत किशोर पर दो राय बने हुए हैं. एक वो जो पीके को पार्टी में देखना चाहते हैं और दूसरे वो जो किशोर की एंट्री की बात से नाखुश हैं. पीके की पार्टी में एंट्री से कई नेता नाराज भी बताए जा रहे हैं, वहीं कुछ में बेचैनी बढ़ गई है. हाल के महीनों में देखें तो कांग्रेस के शीर्ष नेता, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिकारी और कुछ कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत पर गाहे-बगाहे आरोप लगाते रहे हैं.

किदवई के मुताबिक कांग्रेस में ही एक वर्ग प्रशांत से सिर्फ इसलिए नाखुश है कि उनकी नीतियों के कारण ही कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को ममता बनर्जी वाली तृणमूल कांग्रेस तोड़कर अपने में मिला लिया है. हाल में कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थामने वाले नेताओं में सुष्मिता देव, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो समेत मेघालय और त्रिपुरा के भी कई नेताओं का नाम शामिल है. वहीं, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में प्रशांत किशोर के एक ट्वीट पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी.

प्रशांत किशोर के एक ट्वीट से बढ़ गया था सियासी तापमान

लखीमपुर खीरी मामले में कांग्रेस की भूमिका को लेकर कुछ लोग पार्टी को एक बार फिर प्रदेश में जीवित बताने लगे थे. इस पर बंगाल चुनाव में ममता के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर लिखा, ‘जिन लोगों को इस बात की उम्मीद है कि लखीमपुर खीरी की घटना से कांग्रेस तुरंत मजबूती से खड़ी हो जाएगी, उन्हें निराशा हाथ लगेगी. दुर्भाग्य से कांग्रेस की गहरी समस्याओं और इसके ढांचे की कमजोरी का कोई त्वरित समाधान नहीं है.’

प्रशांत किशोर के इस ट्वीट पर कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने टीएमसी पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि अपनी सीट भी नहीं जीत पाने वाले कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में ले जाकर एक ‘राष्ट्रीय’ विकल्प की तलाश करने वाले लोग गलतफहमी में हैं. उनका इशारा इस ओर था कि प्रशांत के नीतियों के आधार पर ही टीएमसी ने कांग्रेस नेताओं की अपनी पार्टी में एंट्री दी है.

कांग्रेस के नेताओं को अपने पाले में क्यों कर रही टीएमसी?

हालांकि, किदवई के मुताबिक पीके के करीबी बताते हैं कि तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व का अपना ‘अतीत’ है. दरअसल, तृणमूल जानबूझकर उन राज्यों में एंट्री कर रही है जहां कांग्रेस कमजोर है, जैसे त्रिपुरा और गोवा. पिछले कुछ चुनावों को देखें तो कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार कम हुआ है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ 20 प्रतिशत वोट प्राप्त हो सके थे, पार्टी को महज 52 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी. हालांकि, लचर प्रदर्शन के बाद भी कांग्रेस संसद में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है जिसके पास दोनों सदनों में करीब 100 सांसद और अलग-अलग राज्यों में करीब 880 विधायक हैं. प्रशांत किशोर का कहना है कि कांग्रेस जिन राज्यों में बीजेपी से सीधे मुकाबले में है वहां जब तक वो बीजेपी को हराना शुरू न कर दे, नरेंद्र मोदी को हराकर केंद्र से बाहर करना मुश्किल होगा.

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