उत्तर प्रदेशलखनऊ

अखिलेश को झटका देने में जुटी प्रियंका वाड्रा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियों के बढ़ने के साथ-साथ विपक्षी राजनीतिक दल नए सियासी समीकरण बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव जहां कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेताओं को पार्टी में शामिल करने का अभियान चलाते हुए अन्य छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने में जुटे हैं।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के नेताओं को अपने साथ मिलकर चुनाव लड़ने की राजनीति शुरू की है। रालोद तथा प्रसपा के मुखिया सीटों के तालमेल को लेकर अखिलेश यादव के व्यवहार से खफा हैं। इसकी वजह है, अखिलेश यादव का रालोद तथा प्रसपा को मांगी गई सीटें देने में आनाकानी करना। इसका संज्ञान लेते हुए प्रियंका गांधी ने रालोद और प्रसपा को अपने साथ जोड़ने के प्लान को तेज कर दिया है। अब ऐसे में यदि रालोद और प्रसपा कांग्रेस के खेम में आ गए तो यह अखिलेश के लिए बड़ा झटका होगा।

रतनमणि लाल सरीखे राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इस साल मार्च के महीने में मथुरा में जयंत चौधरी और अखिलेश यादव ने 2022 का उत्तर प्रदेश चुनाव साथ लड़ने का ऐलान किया था। किसान आंदोलन से राजनीतिक मजबूती लेते हुए किसान महापंचायत में ये ऐलान किया गया था। प्रसपा को लेकर भी कुछ ऐसा ही ऐलान अखिलेश कई बार कर चुके हैं। अभी तक अखिलेश ने रालोद और प्रसपा के साथ सीटों का तालमेल फ़ाइनल नहीं किया। ऐसे में रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने अखिलेश से दूरी बना ली और लखनऊ में पार्टी का घोषणा पत्र जारी करने के बाद वह अखिलेश यादव से नहीं मिले।

फिर वह लखनऊ एयरपोर्ट पर प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात करने के बाद प्रियंका के साथ ही दिल्ली चलते गए। इस मुलाक़ात के बाद से सपा और रालोद के वैचारिक गठबंधन को लेकर अटकलें लगने लगीं। कहा जा रहा है कि वर्ष 2009 की तरह रालोद जल्दी ही कांग्रेस के साथ खड़ी दिख सकती है। वजह, कांग्रेस ही रालोद को ज्यादा सीटें दे सकती है। जबकि सपा मुखिया रालोद को अधिकतम 20 सीटें ही देने को तैयार हैं। हालांकि अखिलेश यादव को यह पता है कि बीते एक साल से चल रहे किसान आंदोलन और पश्चिमी यूपी की जाट बिरादरी पर इसके असर ने जाटों से जुड़ी राजनीति करने वाले रालोद को ताकत मिली है। फिर भी वह रालोद को मांगी गई सीटें देने में आनाकानी कर रहे हैं।

रालोद के नेताओं के अनुसार, सपा से पार्टी ने यूपी में 65 से 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मांग की है। इसमें ज्यादातर सीटें पश्चिम यूपी की हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में रालोद को महज तीन सीटें सपा-बसपा ने दी थी। आगामी विधानसभा चुनाव में भी सपा मुखिया के रुख से लगता है कि वह रालोद को 15 से 22 सीटें ही देने के मूड में है। जयंत चौधरी इतनी कम सीटें लेकर सपा के साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं। इसकी वजह से उन्होंने प्रियंका गांधी के प्रपोजल पर कांग्रेस के साथ सियासी तालमेल की दिशा में कदम बढ़ाए हैं और दूसरे दलों के नेताओं को बड़ी संख्या में रालोद में शामिल कर लिया है।

अब जयंत उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, जहां जाट और मुस्लिम निर्णायक भूमिका में है। कांग्रेस पश्चिम यूपी की सियासी समीकरण को देखते हुए 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर काम शुरू किया है। इसी क्रम में पहले दीपेंद्र हुड्डा की जयंत चौधरी से बात हुई और फिर प्रियंका गांधी की। सूत्र बताते हैं कि इसी सिलसिले में लखनऊ एयरपोर्ट पर हुई प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी की हुई अहम मुलाक़ात में जयंत चौधरी को यह अहसास हो गया है कि रालोद को मांगी गई सीटें सपा भले ही न दे, लेकिन कांग्रेस जरुर उसे मनमाफिक सीटें दे सकती है। इसीलिए अब जयंत और प्रियंका की मुलाकात के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।

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