उत्तर प्रदेशवाराणसी

प्रधानमंत्री ने असंभव कार्य को संभव कर कर्म प्रधान विश्व करि राखा का दिया संदेश : पूजा पांडेय

वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण समारोह को लेकर आधी आबादी भी बेहद उत्साहित है। महिलाओं का कहना है कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण 1780 में पहले इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने कराया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1836 में सोने का छत्र बनवाया था। इसके लगभग ढ़ाई सौ साल बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को विस्तार देकर इसका सौंदर्यीकरण कराया है। शाश्वत धर्म की गरिमा भी इससे बढ़ी है। शुक्रवार को ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बातचीत में प्लाट नं.168,साकेत नगर संकटमोचन निवासी सेवा निवृत शिक्षिका पूजा पांडेय ने कहा कि धाम अब अपने विस्तार के साथ काशी नगरी की अपनी सहजता और मौलिकता की एक अलग आध्यात्मिक छाप दुनिया में छोड़ रहा है।

सनातनी लोग अपनी संस्कृति,सभ्यता और धार्मिक सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर संवेदनशील और जागरूक होगे। यहीं ,भारतीयों का प्रारम्भ है,यहीं विस्तार और जीवन है। पूजा पांडेय कहती है कि प्रधानमंत्री ने असंभव कार्य को जनहिताय में संभव कर ‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा का संदेश दिया है। प्रधानमंत्री की आध्यात्मिक चेतना धार्मिक आस्था का प्रमाण है। नरेन्द्र जिसका अर्थ ही है नर में श्रेष्ठ। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से ही लोग पश्चिमी बयार से अपनी संस्कृति और धरोहरों,विरासतों से उदासीन रहने लगे। लोग धीरे —धीरे अर्थ लोलुपता में अपनी मंजिल भूलने के साथ अपना धर्म और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भी भूल गये।

बात यहां तक आ गई कि जिस काशी की गरिमा को आसमान की उंचाईयों तक ले जाना था,अविवेकी और स्वार्थी लोगों ने उसे ही रसातल पर पहुंचानें की कुचेष्टा की। जिस काशीपुराधिपति की नगरी और जागृत मंदिर की महिमा और गौरवशाली इतिहास को जानने समझने के लिए देश और दुनिया के श्रद्धालु और पर्यटक आते थे। उसी धाम की गली विश्वनाथ गली और मंदिर परिक्षेत्र के छोटे—बड़े मंदिरों में स्थापित विग्रहों,दुर्लभ मूर्तियों को विघ्वंस कर उन्हें मकानों के कोनों में दबा दिया। जहां कभी धार्मिक जन सिर झुकाते थे वहां नित्य पैर पड़ते थे। मंदिरों को छुपाकर व्यावसायिक आवास और कटरे बना दिये गये। कई घरों में देवालयों के उपर कमरे और सटाकर शौचालय भी बना दिये गये। ऐेसे में गरल को पी जाने वाले देवादिदेव नीलकंठ ने इस अविवेकी अतीत को मिटाने के लिए किसी को माध्यम बनाया।

महादेव की प्रेरणा से भारत भूमि के साथ काशी की पवित्र धरा पर नरेन्द्र मोदी का आगमन हुआ। बाबा की कृपा और अपने जन कल्याणकारी कार्यो से आम जनमानस के हृदय में स्थान बनाने वाले नरेन्द्र मोदी 2014 में काशी से जीते और देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने पूरे काशी नगरी का विकास कर स्वच्छता की अलख जगाई और बाबा विश्वनाथ मंदिर को तंग गलियों से निकाल कर तमाम अड़चनों के बाद धाम को पुरातन धार्मिक स्वरूप प्रदान किया। अब मंदिर से मां गंगा भी एकाकार हो गई है। सेवा निवृत शिक्षिका कहती है कि धाम से मां गंगा और गंगा तट से बाबा का स्वर्ण शिखर दिखेगा। प्रधानमंत्री का ये कार्य मानवीय चेतना और सनातनी चिंतन का विस्तार है।

शिव की जटा में रहने वाली गंगा पृथ्वी पर आने के बाद कालांतर में उनसे ही दूर हो गई थी। काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के त्रिशुल पर टिकी नगरी भी प्रधानमंत्री के इस अद्भुत कार्य को सदियों तक याद रखेंगी। काशी विश्वेश्वर के प्रभा मंडल में विस्तार से सनातनी अभिभूत है,धर्मानुयायी आह्लादित है। धाम परिसर में ‘मुमुक्ष’भवन बनने से जीवन के साझ में भगवान शिव के सान्निध्य में रहने की इच्छा भी पुरी हो सकेगी। धाम में स्थित इस भवन में देहावसान के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी को तारकमन्त्र सुनाते हैं। यह सनातनी विश्वास मन में और मजबूत होगा। मुक्तिदायिनीकाशी की यात्रा, यहां निवास और मरण तथा दाह-संस्कार का सौभाग्य पूर्वजन्मों के पुण्य बाबा विश्वनाथ की कृपा से ही मिलेगा।

मत्स्यपुराण में काशी की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि जप, ध्यान, ज्ञान रहित और दुखी मनुष्य के लिए एकमात्र काशी में परमगति सुलभ है। उन्होंने कहा कि आस्था और विश्वास,चक्षु और दर्शन,व्यक्ति और धर्म,ये शब्द युग्म परस्पर एक दूसरे के आधार व एक दूसरे में समाये हुए है। इनमें एक का बल दूसरे को सबल बनाता है। संशय को भी समाधान ही बल देता है। हमारी पवित्र और देवादिदेव की नगरी काशी में भी यहीं चरितार्थ होने जा रहा है। 13 दिसम्बर को श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद यहां चक्षु को दर्शन और व्यक्ति को धर्म और संशय का समाधान मिलेगा।

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