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पहली बार केन्द्र में एक भी कायस्थ मंत्री नहीं, यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार में फिर गायब रहे कायस्थ

कायस्थ भाजपा के लिए हुक्म के गुलाम हैं, तुरुप का इक्का नहीं


  • आज नौकरशाही व भाजपा की राजनीति में दूर दूर तक कायस्थ नहीं आते नजर
  • पंचम तल पर एक भी अधिकारी कायस्थ नहीं जबकि पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने आलोक रंजन व राहुल भटनागर को बनाया था नौकरशाही का मुखिया
  • जिलों में कायस्थ डीएम व एसपी अब न के बराबर, बर्खास्त दोनो आईपीएस भी कायस्थ हैं
  • भाजपा में कायस्थों की लगातार उपेक्षा पर है सपा कांग्रेस व आप की नजर
  • सपा के बाद आप व कांग्रेस ने भी कायस्थों के लिए खोले दरवाजे और दिया सम्मान
  • आप व सपा राजधानी की विधानसभा सीटों पर दे रही कायस्थों को टिकट
  • सपा कार्यालय में कायस्थ सम्मेलन कराने के बाद सपा कार्यकारिणी और जिला अध्यक्षों तक में कायस्थों को मिली जगह
  • वाराणसी में सपा ने कायस्थ के बलबूते भाजपा को धूल चटाई

लखनऊ। मंत्रिमंडल के विस्तार में एक बार फिर कायस्थों की घोर उपेक्षा की गई है। यहां तक कि एमएलसी के लिए भी किसी कायस्थ को जगह नहीं मिली। वहीं कांग्रेस आप और सपा ने कायस्थों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। सपा पहले से ही कायस्थों को महत्व देती आ रही है। आप ने राजधानी की दो सीटों पर कायस्थ उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। समाजवादी पार्टी राजधानी की एक विधानसभा सीट पर कायस्थ उतारने की तैयारी में है। लखनऊ उत्तर से दीपक रंजन का नाम आगे चल रहा है। कांग्रेस ने कायस्थ के रूप में सुबोध श्रीवास्तव को प्रदेश महासचिव बनाया है और मीडिया में पंकज श्रीवास्तव को जगह दी है। उधर भाजपा में कायस्थों का पत्ता पूरी तरह साफ हो चुका है। हरीश चन्द्र श्रीवास्तव के अलावा प्रवक्ता व मीडिया पैनल में कायस्थ न के बराबर हैं। कायस्थ के नाम पर सिद्धार्थ नाथ सिंह इकलौते मंत्री हैं।

भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी में पंडित ठाकुर और पिछड़ों की आरती उतारती भाजपा में कायस्थों के लिए कोई जगह नहीं बची है। पहले प्रदेश कार्यकारिणी फिर मीडिया पैनल में फिर एमएलसी में और अब मंत्रिमंडल विस्तार में कायस्थों का पत्ता पूरी तरह से साफ है। राजधानी में कायस्थों के वोट से बढ़त बनाने वाली भाजपा के लिए कायस्थ वोट सिर्फ जीतने भर के लिए हैं। देश के सबसे बड़े सूबे की प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी में फिर मंत्रिमंडल विस्तार में किसी भी कायस्थ को जगह न मिलना कायस्थ कार्यकताओं को बेहद निराश करता है। अपना पूरा जीवन लगा देने वाले कायस्थ कार्यकर्ताओं को भाजपा ने जिस तरह से काटा है वह सभी कायस्थों के लिए चुनौती या चेतावनी है।

कायस्थों के लिए भाजपा का साफ संदेश है कि वह सिर्फ हुक्म के गुलाम ​हैं तुरुप का इक्का नहीं । विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने में भाजपा को कभी भी कायस्थ चेहरे नजर नहीं आयेंगे। ये बात कहने में कोई संकोच नहीं कि अखिलेश यादव की सपा ने कायस्थों का मान रखा है। सपा ने दीपक रंजन के संयोजन में 11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश जी की जयंती पर बड़ा कायस्थ सम्मेलन कराया था। कायस्थों की ताकत को देखते हुए पूनम सिन्हा को लखनऊ लोकसभा सीट पर उतारा गया था। बताते चलें कि कायस्थों का यह सम्मेलन अखिलेश यादव ने पार्टी कार्यालय में करवाया था।

भाजपा सरकार ने नौकरशाहों में भी पंडित ठाकुर के समीकरण और जिलों में तैनाती में भी ठाकुर व पंडितों के जातीय समीकरण साधे हैं। अखिलेश यादव सरकार को जातीय सरकार का आरोप लगाने वाली भाजपा सरकार खुद जातियों के जाल में जकड़ी नजर आती है। अखिलेश सरकार में आलोक रंजन और राहुल भटनागर मुख्य सचिव थे वहीं प्रदेश की भाजपा सरकार में किसी भी कायस्थ का यहां तक पहुंचना ही मुश्किल है। सूचना सलाहकारों में भी पंडित व ठाकुर के समीकरण ध्यान में रखे गये डीजीपी के साथ ही कमिश्नर प्रणाली लागू करने में भी इसी समीकरण का ध्यान रखा गया।

भाजपा में कायस्थों की लगातार उपेक्षा को अवसर के रूप में देखती सपा जहां राजेन्द्र प्रसाद और विवेकानंद जयंती मना रही है वहीं राजधानी की महत्वपूर्ण सीट पर कायस्थ उम्मीदवार भी उतारने जा रही है। सूत्रों के अनुसार पार्टी कायस्थों को जोडने की जोरदार मुहिम भी चलाने जा रही है। कांग्रेस व आप भी कायस्थों को जोडने में पीछे नहीं हैं। मंत्रिमंडल विस्तार और एमएलसी चुनाव में भाजपा ने दिखा दिया है कि निषाद पटेल और भी जातियों के आगे कायस्थों का कोई वजूद नहीं है।

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