सुलतानपुर: 24 दिन बाद परिजनों में जगी न्याय की आस
- परिजनों की जिद के आगे झुका प्रशासन, युवक के शव का री-पोस्टमार्टम बाद हुआ दाह संस्कार
- सांसद मेनका संजय गांधी के हस्तक्षेप पर टूटी प्रशासन की कुम्भकर्णी नींद, डीएम एसपी के निर्देश पर सीएमओ की उपस्थिति में हुआ री-पोस्टमार्टम
सुलतानपुर। दिल्ली में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत युवक की री-पोस्टमार्टम एवं एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर अडिग परिजनों की मांग अंततः प्रशासन को माननी ही पड़ी, लेकिन दुखद यह रहा कि प्रशासन को यह सब करने में 24 दिन लग गए। और इतने दिन घर के दरवाजे पर युवक की लाश न्याय की आस में डीप फ्रीजर में पड़ी रही। जिला एवं पुलिस प्रशासन ने पीड़ित की बात शुरू से ही अनसुनी रखी वर्ना ये नौबत यहां तक न आती। जवान बेटे की लाश घर पर रखकर परिजन न्याय के लिए जिला एवं पुलिस प्रशासन के अधिकारियों से अपनी बीती बताई लेकिन परिजनों की सुनना तो दूर एक अदना कर्मचारी कई दिन तक घर की स्थिति जानने तक नही आया। मामला मीडिया के जरिये सुर्खियों में आया तो सियासी लोग भी लामबंद होने लगे। प्रशासन पर दबाव बढ़ा तो अपनी साख बचाने के लिए बीच का रास्ता निकाला गया। पीड़ित की एक मांग तो पूरी हुई लेकिन यहां एफआईआर दर्ज करने की मांग अभी अधूरी है। हालांकि पोस्टमार्टम बाद परिजनों में न्याय की उम्मीद जगी है।
गौरतलब है कि कूरेभार थाना क्षेत्र के पाठक पुरवा निवासी रिटायर्ड सूबेदार शिवप्रसाद पाठक के बड़े बेटे शिवांक पाठक (32) की दिल्ली के बेगमपुरा क्षेत्र में घर पर ही संदिग्ध परिस्थितियों में 1 अगस्त को मौत हो गई थी। जानकारी के अनुसार उस समय शिवांक के साथ उनकी पत्नी गुलरीन कौर, बिजनेस पार्टनर वरुण वर्मा, नौकरानी आदि ही थे जो उन्हें अस्पताल ले गए जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। सूचना पर दिल्ली गए परिजनों का आरोप है कि शिवांक की हत्या हुई है और इसमें पत्नी गुलरीन कौर एवं बिजनेस पार्टनर वरुण वर्मा शामिल है, लेकिन दिल्ली पुलिस ने प्रकरण को गंभीरता से नही लिया और पोस्टमार्टम कराकर लाश परिजनों को सौंप दी।
परिजन लाश लेकर 3 जुलाई को घर आ गए और डीप फ्रीजर में शव रखकर जिला एवं पुलिस प्रशासन से न्याय की मांग की लेकिन दिल्ली जैसा यहां भी हाल होता देख परिजनों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कूरेभार थाना क्षेत्र से जोड़कर बताई गई घटना के सबूत न उपलब्ध करा पाने की वजह से सीजेएम कोर्ट ने बीते 18 अगस्त को मृतक शिवांक के पिता शिवप्रसाद पाठक की एफआईआर व अन्य मांगों सम्बन्धी अर्जी अपने सुनवाई के क्षेत्राधिकार से बाहर बताकर खारिज कर दी। इस सबके बाद भी परिजनों ने हार नही मानी न्याय के लिए लखनऊ-दिल्ली दौड़ते रहे। अंततः सियासी दबाव में प्रशासन को झुकना पड़ा और 24 दिन बाद री-पोस्टमार्टम करवाना पड़ा।
लाश घर पर पड़ी और पत्नी ने अंतिम संस्कार करा डाले
सुनने में अटपटा लग रहा लेकिन सच्चाई यही है। मृतक का शव 24 दिन दरवाजे पर पड़ा रहा और पत्नी व उसके मायके वालों ने सिक्ख धर्म की मान्यताओं के अनुसार विभिन्न अनुष्ठान संपन्न करा डाले। मृतक के परिजनों को सूचना देकर पत्नी द्वारा अंतिम संस्कार की सारी प्रक्रिया तो पूरी कर दी गई। हद तो तब हो गई जब अंतिम संस्कार के लिए छपे कार्ड पर मृतक की पत्नी, साला, ससुर, एवं बिजनेस पार्टनर का नाम तो है लेकिन मृतक के ब्लड रिलेशन में भाई, पिता का जिक्र तक नही।