उत्तर प्रदेशलखनऊ

ट्विटर पर छलका UP Police के सिपाहियों का दर्द, ‘हत्यारी बॉर्डर स्कीम’ हटवाने की उठी मांग, लिखा- हम भी वीक ऑफ के हकदार

यूपी पुलिस विभाग के सिपाही आये दिन अपना दर्द व्यक्त करते दिखाई देते है. बॉर्डर स्कीम, कम ग्रेड पे और छुट्टी न मिलने के दर्द की वजह से आये दिन कहीं न कहीं कोई सिपाही आत्महत्या करता है. कई बार अफसरों पर गंभीर आरोप भी लगते हैं. अब जब सिपाहियों को ये लगने लगा है कि अफसर उनकी सुनवाई नहीं करेंगे तो उन्होंने ट्विटर का सहारा लेना शुरू किया है. दरअसल, यूपी पुलिस के सिपाहियों के लिए 2800 ग्रेड पे, ड्यूटी के फिक्स घंटे और वीकली ऑफ जैसी मांगों को लेकर ट्वीट किये. लगातार ट्वीट किये जाने की वजह से इसके हैशटैग्स टॉप ट्रेंड में आ गए.
सिपाहियों ने बताया ये
जानकारी के मुताबिक, नाम न छापने की शर्त पर एक सिपाही ने बताया, ‘हम अपनी मूलभूत समस्याओं को लेकर धरना/विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते. मगर अभिभावक जैसी सरकार और सीनियर अफसरों से वह तो मांग ही सकते हैं, जो आमतौर पर सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलता है. किसी समय प्राइमरी स्कूल के टीचर और एक सिपाही के वेतन में महज 1 रुपये का फर्क था जो आज हजारों में है. घर से 200 किमी दूर पोस्टिंग होती है. इसके पीछे वजह यह दी जाती है कि हम घर के नजदीक रहकर कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं जबकि ऐसा नहीं है. राजस्थान में सिपाहियों को गृह जनपद में भी तैनात किया जाता है, लेकिन इसका कोई बुरा असर नहीं दिखा. कानून-व्यवस्था का तर्क उन ताकतवर IPS अधिकारियों पर क्यों नहीं लागू होता, जिन्हें अपने गृह जनपद और पड़ोसी जिलों में बतौर एसपी तैनात होने की छूट है? हम सिर्फ ट्विटर के माध्यम से अपनी समस्याओं से मुख्यमंत्री जी को अवगत कराना चाहते हैं ताकि हम भी सम्मानजनक जीवन जी सकें.’
इसके साथ ही दूसरी तरफ लखनऊ में तैनात एक कॉन्स्टेबल ने बताया, ‘हमारी ड्यूटी का कोई फिक्स समय नहीं है. वीकली ऑफ जैसी व्यवस्था भी हम लोगों के लिए नहीं है. सैलरी बस एक चपरासी से थोड़ी सी ज्यादा होती है और काम का बोझ सबसे ज्यादा हम पर ही है. आंदोलन हम कर नहीं सकते, सीनियर अधिकारी सुनते नहीं, ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं. राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से निवेदन ही कर सकते हैं कि वह हमारी इन बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान दें.

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क्या है बॉर्डर स्कीम
सिपाहियों की सबसे बड़ी समस्या बॉर्डर स्कीम है. इस स्कीम के तहत लखनऊ के रहने वाले किसी नॉन गजेटेड पुलिसकर्मी को लखनऊ के अलावा उसकी सीमा से सटे जिलों जैसे- उन्नाव, बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई में भी तैनाती नहीं मिल सकती। इन जिलों के बाद आने वाले दूसरे जिलों जैसे गोंडा, लखीमपुर-खीरी या कानपुर आदि में ही उसे तैनाती दी जा सकती है. साधारण शब्दों में कहें तो तैनाती वाले जिले और गृह जनपद के बीच एक जिला होना चाहिए. विवादित बॉर्डर स्कीम को साल 2010 में मायावती सरकार ने लागू किया था. मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही इसे हटा दिया था पर 2014 में अखिलेश सरकार ने बॉर्डर स्कीम को फिर से लागू कर दिया।
एडीजी ने दिए थे ये आदेश
वहीँ सिपाहियों की इस मुहीम को देखते हुए एडीजी लॉ एन्ड आर्डर प्रशांत कुमार ने निर्देश जारी किया है. इस पत्र में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पुलिस कर्मियों द्वारा किये जाने वाले पोस्ट के संबंध में डीजीपी ने सोशल मीडिया पॉलिसी से संबंधित आदेश जारी किये है. कई पुलिसकर्मियों के द्वारा पॉलिसी का उल्लंघन किया जा रहा है और वो कई तरह के हैशटैग्स को ट्रेंड करा रहे हैं. ये जवान कई अन्य पुलिस कर्मियों को भी बहका रहे हैं. इन पुलिस कर्मियों के द्वारा सोशल मीडिया पर वेतन के संबंध में, बॉर्डर स्कीम ख़त्म करने के लिए, और कई तरह के व्यक्तिगत समस्याओं को एक्सप्लेन किया जा रहा है. ऐसे में सभी अफसरों से ये अनुरोध किया जाता है कि वो अपने जनपद की पुलिस लाइनों और वाहिनियों में सम्मलेन करके सभी पुलिस कर्मियों की परेशानियां सुने और उसे दूर करने का प्रयास करें. ताकि सोशल मीडिया पर इस तरह के हैशटैग्स ट्रेंड न हों.

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