संगम नगरी प्रयागराज में जिला पचायत अध्यक्ष पद पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी लड़ाई है. यहां दोनों ही पार्टियों ने जीत के लिए पूरा दम – खम लगा रखा है. जीत के लिए हर हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, ऐसे में माना यह जा रहा है कि सीधी लड़ाई में दोनों पार्टियों में नजदीकी मुकाबला व कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है. प्रयागराज में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां जीत के बड़े -बड़े दावे कर रही हैं. हालांकि, दोनों में से बहुमत किसी के पास भी नहीं है. दोनों उम्मीदवार बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे हैं. ऐसे में जो भी उम्मीदवार निर्दलीय व दूसरी पार्टियों के ज़्यादा से ज़्यादा सदस्यों को अपने पाले में लाने में कामयाब होगा, जीत का सेहरा उसी के सिर बंधेगा.
जोड़-तोड़,धनबल और बाहुबल का जमकर प्रयोग
प्रयागराज में बीजेपी ने पार्टी के पुराने नेता और चिकित्सा व शिक्षा क्षेत्र से जुड़े पूर्व एडिशनल सीएमओ डा वीके सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने दिग्गज नेता राम मिलन यादव की बेटी मालती यादव को टिकट दिया है. चुनाव में दलीय निष्ठा की दुहाई देने के साथ ही जोड़ -तोड़, धनबल और बाहुबल का भी जमकर प्रयोग हो रहा है. दो दिन पहले समाजवादी पार्टी के एमएलसी डा० मान सिंह यादव की गाड़ी से चालीस लाख रूपये नगद मिलने के बाद यह साफ़ नज़र आने लगा है कि पार्टी पूरे दम -खम के साथ चुनावी मैदान में डटी हुई है. समाजवादी पार्टी के नेता भले ही खुद पैसों के साथ पकडे गए हों, लेकिन पार्टी सत्ता पक्ष पर ताकत का दुरूपयोग करने व दबाव बनाने का आरोप लगा रही है.
साठ सदस्यों का समर्थन हासिल
पार्टी उम्मीदवार मालती यादव का दावा है कि, उन्हें चौरासी में से साठ सदस्यों का समर्थन हासिल है. ज़्यादातर सदस्य उनके साथ हैं. दूसरी तरफ बीजेपी प्रत्याशी डा वीके सिंह इस चुनाव में कोई मुकाबला ही नहीं मानते. उनका दावा है कि जिले के विकास और बीजेपी की राष्ट्रवादी सोच से प्रभावित होकर तमाम सदस्य उन्हें वोट देने को तैयार हैं. उनके मुताबिक़ तमाम निर्दलीय और दूसरी छोटी पार्टियों के सदस्य समाजवादी पार्टी के गुंडाराज व लूट खसोट की आदत से पंचायत दफ्तर को बचाने के लिए उनका समर्थन कर रहे हैं. डा० वीके सिंह ने सपा पर पैसे बांटकर सदस्यों की खरीद फरोख्त करने और सदस्यों को अगवा कर उन्हें बाहर भेजने के भी गंभीर आरोप लगाए हैं.
सत्ता की चाभी निर्दलीय व छोटे दलों के पास
प्रयागराज में जिला पंचायत की चौरासी सीटें हैं. आज की तारीख में बीजेपी के पास तीस और सपा के पास अटठाइस सदस्य हैं. यहां बीएसपी -अपना दल एस के चार -चार, कांग्रेस- आम आदमी पार्टी और एमआईएम के दो -दो सदस्य जीते हैं. दर्जन भर से ज़्यादा निर्दलीय भी चुनाव जीते हैं. ऐसे में सत्ता की चाभी निर्दलीयों व छोटी पार्टियों के सदस्यों के ही हाथ रहने की उम्मीद है. कहा जा सकता है कि, बहुमत का आंकड़ा जुटाना और जीत हासिल करना किसी भी पार्टी व उम्मीदवार के लिए कतई आसान नहीं होगा. राजनीति के जानकार भी यही मानते हैं कि, प्रयागराज में सपा और भाजपा दोनों ही मजबूती के साथ चुनाव मैदान में डटे हुए हैं. पत्रकार मनोज तिवारी के मुताबिक़ चुनाव में जीत हासिल करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. विपक्ष में होने के बावजूद यहां समाजवादी पार्टी को कतई कमतर नहीं आंका जा सकता.
प्रतिष्ठा की लड़ाई
प्रयागराज में पंचायत अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी के लिए नाक का सवाल बना हुआ है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य समेत योगी सरकार के कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी हुई है. कई सदस्य यहां हफ़्तों पहले ही अंडर ग्राउंड हो चुके हैं. दोनों ही पार्टियों ने कुछ सदस्यों को प्रयागराज से बाहर भेज दिया है. यहां उम्मीदवारों के सामने दूसरे खेमे में सेंधमारी करने के साथ ही अपने सदस्यों को बचाए रखने की भी दोहरी चुनौती है. यहां जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, इसका फैसला तो तीन जुलाई को होगा, लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि नजदीकी व रोमांचक मुकाबले ने सियासी पंडितों की भी बोलती बंद कर रखी है.