उत्तर प्रदेशताज़ा ख़बरलखनऊ

जनता के ‘कल्याण’ का सफर, जो अपने आप में थे राजनीति की पाठशाला

लखनऊ: केंद्रीय राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को याद करते हुए लिखा- ‘एक सूरज था- तारों के घराने से उठा, आंखें हैरान हैं- क्या शख़्स ज़माने से उठा !!

एक सूरज था- तारों के घराने से उठा

आंखें हैरान हैं- क्या शख़्स ज़माने से उठा !!

रामभक्त कल्याण सिंह जी को शत शत नमन। राम नाम सत्य है की गूंज के बीच लग रहा था कि देवलोक जमीं पर उतर आया है। आसमां के चांद सितारे अपने ध्रुवतारे की आगवानी के लिए करबद्ध खड़े हैं। जिन्होंने रामभक्ति की एक ऐसी दास्तां लिखी जो अजर है, अमर है, अमिट है। प्रभु के इस अनन्य भक्त को अंतिम विदाई देते वक्त ये अहसास हो रहा था कि यदि लक्ष्य पवित्र हो तो अंत कितना पावन और पवित्र होता है।

राजनीति में राम राज्य की संकल्पना को साकार करनेवाले कल्याण सिंह जी का चले जाना एक युग का समाप्त हो जाना है। वो अपने आप में राजनीति की एक पाठशाला थे। वो ता-उम्र सच के लिए संघर्ष करते रहे, राजनीति में राम की मर्यादा को पिरोने का काम करते रहे।

उनका जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ। एक शिक्षक के रूप में समाज सेवा करने वाले कल्याण सिंह का सियासी सफऱ संघर्षों से भरा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण उनकी ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और अडिग होकर फैसले लेने की प्रवृत्ति थी।

कल्याण सिंह लोध समाज से आते थे। उन्होंने अतरौली सीट का कई बार प्रतिनिधित्व किया लेकिन वो कभी भी केवल अपने क्षेत्र या जाति तक सीमित नहीं रहे। वे गरीब, किसान, दलित, पिछड़े, वंचित और शोषित समाज के प्रति सदैव चिंतित रहते थे। बाबू जी का मानना था कि आने वाली पीढ़ी को योग्य बनाना ही स्थायी सफलता का आधार बनेगा। इसीलिए वो जाति-धर्म या क्षेत्रवाद से परे होकर समग्रता में सोचते थे। उन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं काम से पूरे देश और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनका लंबा राजनीतिक जीवन सिर्फ और सिर्फ जनता की सेवा के लिए समर्पित रहा।

अगर राम मंदिर आंदोलन के बलिदान की यात्रा का जिक्र करें तो ये करीब 400 साल लंबी बलिदान की यात्रा है। इसमें कल्याण सिंह जी की भूमिका सबसे अलग और सबसे खास है। जब सियासत के सफर में सर्वस्व न्यौछावर करने की बात आती है तो लोगों को अपना निजी स्वार्थ या हित दिखने लगता है लेकिन कल्याण सिंह जी की सोच बिलकुल अलग थी। 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया उस वक्त कल्याण सिंह जी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। ढांचा गिराए जाने के दौरान उन पर चौतरफा हमला हुआ, कार सेवकों को किसी भी तरह से काबू में करने का दबाव पड़ा लेकिन उन्होंने कार सेवकों पर किसी सूरत में गोली नहीं चलाने के अपने फैसले को नहीं पलटा। उनमें नैतिक बल और साहस इतना कि गोली नहीं चलाने के फैसले वाली फाइल पर उन्होंने खुद हस्ताक्षर किया ताकि बाद में किसी पुलिस अधिकारी को इसके लिए प्रताड़ित नहीं किया जा सके। आज जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का सपना पूरा रहा है,  उसकी नींव में कल्याण सिंह जी का वही फैसला है। राममंदिर भूमि पूजन के दिन उन्होंने कहा कि ये मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। आज मेरे जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया। सियासत में नैतिकता का उच्च आदर्श कायम करते हुए उन्होंने अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दिया,  जेल यात्रा भी की लेकिन कभी भी सत्ता के लिए समझौता नहीं किया। इसीलिए मैं कहता हूं कि ‘एक चोखा नेता चला गया, सच्चा नेता चला गया’।

वे 90 के दशक के बड़े नेताओं में से एक थे। राम मंदिर आंदोलन के बाद वे राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर उभरे और हिंदुत्व और धार्मिक आस्था रखने वाले करोड़ों लोगों के नायक बन गए। कल्याण सिंह ने ही पहली बार हिन्दुत्व की राजनीति को परवान चढ़ाया था। विवादित ढांचा विध्वंस की घटना उनके कार्यकाल की निस्संदेह एक बड़ी घटना थी लेकिन उनका पूरा कार्यकाल एक सख़्त और सक्षम प्रशासक के तौर पर याद किया जाता है।

उनका मानना था कि बुराई के खिलाफ हमेशा सख्ती से लड़ना चाहिए। नक़ल अध्यादेश उनका एक बड़ा फ़ैसला था। इस निर्णय से बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करने वाले अधिकतर अभिभावक खुश हुए, हालांकि कुछ लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी भी थी। उनके कार्यकाल में बोर्ड परीक्षाओं में पहली बार नकल विहीन परीक्षाएं हुईं। वे मानते थे कि अपराध को कुचलना ही चाहिए, उसके खिलाफ खड़ा होना ही चाहिए और इसमें किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता।

दरअसल तीन दशक तक कांग्रेस ने किसान हितों की अनदेखी की। कल्याण सिंह किसानों की समस्याओं को लेकर सदैव मुखर रहे। उन्होंने कहा था किसान उठेगा तब वह गांव उठेगा, जब गांव उठेगा तब देश उठेगा। उनका कहना था कि कृषि इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ बन सकती है और स्वाबलंबी राष्ट्र के निर्माण का मुख्य आधार भी। उनका मानना था कि भारत के लोकतंत्र को किसान ही जीवित रख सकता है। उन्होंने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, किसानों का अधिकार पत्र बनाया। जिसने किसानों की दिशा ही बदल दी।

नई पीढ़ी को उनकी जीवन यात्रा जाननी चाहिए। निर्णय करते समय सख्त होना और पारदर्शी होना, फैसले में किसी तरह का कोई लागलपेट नहीं, कोई स्वार्थ नहीं, कोई भाई-भतीजावाद नहीं, परिवारवाद नहीं, ये सब कुछ आप उनके राजनीतिक जीवन से सीख सकते हैं। ये कहना गलत न होगा कि उत्तरप्रदेश या फिर पूरे हिंदी भाषी राज्यों में उन्होंने बीजेपी की राजनीति की राह को आसान किया। कल्याण सिंह बहुत विनम्र स्वभाव के थे। वे जमीन से जुड़े जननेता थे। साथ ही एक ऐसे अक्खड़ नेता भी थे जो अपने साहसिक निर्णयों के लिए किसी से भी भिड़ जाते थे ।

कल्याण सिंह जी ने मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने में आगे बढ़कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साल 2014 के चुनाव के दौरान जब मोदी जी को पार्टी के चेहरे के तौर पर पेश करने की बात उठी, तब कल्याण सिंह जी ने इसका पुरजोर समर्थन किया था।

मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। उनमें बहुत साहसिक गुण था। मैं पहली बार जब उनसे मिला तो मैं बीजेपी युवा मोर्चे में था। जब पहली बार उन्होंने मेरी तारीफ की तो मैं अभिभूत हो उठा था, उसके बाद मुझे उनका सानिध्य और मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा। मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली समझता हूं कि वे मेरे प्रति स्नेह रखते थे। मुझे उनमें अपने अभिभावक की छवि दिखती थी। अब मुझे उनका व्यक्तिगत मार्गदर्शन नहीं मिल सकता लेकिन उनकी दी हुई सीख सदा-सदा के लिए मेरे साथ है। राम भक्त कल्याण सिंह जी को एक बार फिर से कोटि-कोटि नमन।

The Global Post

The Global Post Media Group has been known for its unbiased, fearless and responsible Hindi journalism since 2018. The proud journey since 5 years has been full of challenges, success, milestones, and love of readers. Above all, we are honored to be the voice of society from several years. Because of our firm belief in integrity and honesty, along with people oriented journalism, it has been possible to serve news & views almost every day.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button