बांग्लादेश में हिंदू घरों और जमीनों को छीनने की हो रही कोशिशें, साजिश के तहत किए जा रहे हमले: मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने रविवार को कहा है कि बांग्लादेश की 16.5 करोड़ लोगों की आबादी में हिंदू समुदाय की आबादी 9 प्रतिशत से भी कम है. पहले भी हिंदुओं पर हमले होते रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश के इतिहास में यह हिंदुओं के खिलाफ सबसे खतरनाक हिंसा है. 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता मिलने के बाद बांग्लादेश खुद की धर्मनिरपेक्षता पर गर्व करता आया है. हालांकि, इसका संविधान इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा देता है और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को भी कायम रखता है.
उसने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच मानता है कि कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने बांग्लादेश में खासी शोहरत बटोरी है और 2008 से सत्ता में आवामी लीग के आने के बाद सरकार बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरपंथ पर काबू पाने में पूरी तरह असफल रही है. मंच के राष्ट्रीय संयोजक एवं उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड प्रभारी रजा हुसैन रिजवी का कहना है कि राजनीतिक लाभ के लिए सरकार ने कट्टरवादी ताकतों से समझौता किया और खासतौर पर यह लोकतांत्रिक राजनीति की पृष्ठभूमि में विवशता के कारण किया गया, जिसके चलते कट्टरपंथियों को शोहरत और मान्यता मिली और उनका प्रभाव बढ़ा.
रजा का कहना है कि यह काफी दुखद है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों की जांच में कोई प्रगति नहीं हो रही है और दिनों दिन हालात बदतर होते जा रहे हैं. मंच के राष्ट्रीय संयोजक एवं हिंदुस्तानी फर्स्ट और हिंदुस्तानी बेस्ट प्रकोष्ठ के प्रभारी विराग पाचपोर का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के विरुद्ध हमले दशकों में व्यवस्थित तरीके से होने लगे हैं जो चिंता का विषय है. वहां हिंदू घरों और जमीनों को साजिश के तहत छीनने की और उन्हें जबरन देश छुड़वाने की कोशिशें हो रही हैं. विराग पाचपोर ने जोर दिया कि सभी धर्मों के सदस्यों को सौहार्दपूर्ण ढंग से रहना चाहिए.
बांग्लादेश में 9 फीसदी बचे हिन्दूः मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक और दक्षिण भारत के प्रभारी कैंसर विशेषज्ञ डा. माजिद तालिकोटि ने भी धार्मिक हिंसाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है. डा. माजिद का कहना है कि बांग्लादेश की सरकारें धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार हमलों को रोकन और कठोर कदम उठाने में नाकाम रही है. उचित जांच की कमी न केवल एक तरफा प्रक्रिया को दिखाता है बल्कि अल्पसंख्यकों के सुरक्षा की जब बात आती है तो यह लापरवाही को भी उजागर करता है.
मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय संयोजक और राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने कहा कि लगातार होती सांप्रदायिक हिंसा के लिए सजा न मिलना और प्रभावी कदमों को न उठाना ऐसी धार्मिक बर्बरता के प्रसुख कारणों में से एक हैं. अफसोस की बात यह है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों की जांच में कोई प्रगति नहीं हो रही है. शाहिद का आरोप है कि वर्षों से इस तरह की घटना में बढ़ोतरी हुई है जिसका नतीजा यह हुआ कि एक समय हिंदुओं की तादाद बांग्लादेश में 30 फीसदी थी जो अब घटकर मात्र 9 फीसदी रह गई है अत: यह कहा जा सकता है कि इन सब धार्मिक कटरता और हिंसा के पीछ बांग्लादेश सरकार की मौन सहमति है, जिसकी जितनी अधिक निंदा की जाए कम है.