यूपी सियासत में बड़े दलों की चुनावी बिसात के मोहरे साबित होंगे क्षेत्रीय दल
राम अनुज भट्ट
- बीजेपी-सपा समेत सभी दल क्षेत्रीय समीकरण सुधारने के लिए छोटे दलों का सहारा ले रहे…
- छोटे दल भले ही जिले तक सीमित हों पर उनका प्रभाव काफी बड़ा है, खासकर जातीय पैमाने पर…
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुटी प्रमुख पार्टियों का झुकाव छोटे सियासी दलों की तरफ बढ़ा है। भाजपा और सपा समेत लगभग सभी दल सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण साधने के लिए छोटे दलों का सहारा ले रहे हैं। छोटे दल भले ही जिले तक सीमित हों पर उनका प्रभाव काफी बड़ा है। यह दल जाति आधारित हैं। इनका क्षेत्र विशेष प्रभाव रहता है। उनके इस प्रभाव को भुनाने की फिराक में बड़ी सियासी पार्टियां मशक्कत कर रही हैं।
प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने छोटे दलों से गठबंधन करने का निर्णय लिया है। अखिलेश ने साफ तौर पर कहा भी है कि बड़ी पार्टियों से हमारा गठबंधन का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। इस कारण इस बार हम छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ेगें। सपा ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है। उसका प्रभाव बरेली, बदायूं और आगरा क्षेत्र के सैनी, कुशवाहा शाक्य के बीच है। इसके अलावा जनवादी पार्टी भी सपा के साथ है। इसके अलावा सपा का आरएलडी से गठबंधन लोकसभा चुनाव से चला आ रहा है। अब सीटों को लेकर बात हो रही है।
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), महान दल और जनवादी पार्टी जैसी पार्टियां, जिनका राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रभाव है, आने वाले दिनों में सपा के साथ सीट बंटवारे के फॉमूर्ले को औपचारिक रूप देने के लिए तैयार हैं। पार्टी को उम्मीद है कि किसान आंदोलन से उसे पश्चिमी यूपी के मुसलमानों और जाटों को एक ही मंच पर लाने में मदद मिलेगी। सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन की घोषणा कर रखी हैं।
ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे में भारतीय वंचित पार्टी, जनता क्रांति पार्टी, राष्ट्र उदय पार्टी और अपना दल शामिल है। यह पार्टियां अभी जाति विशेष में अपनी पकड़ के कारण चुनाव में असरदार साबित होती है। 2017 के विधानसभा चुनावों में सुभासपा ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जिसमें से चार पर जीत हासिल की थी। एक सहयोगी के रूप में सुभासपा के साथ, सपा राजभर के वोटों को हासिल करने के लिए आशान्वित है।
छोटे दलों के साथ गठबंधन में भाजपा का अनुभव काफी अच्छा रहा है। इसका उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में लाभ मिल चुका है। 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल के साथ गठबंधन कर 403 में से 324 सीटें हासिल की। इस चुनाव में अपना दल को 11 सीटें और सुभासपा को 8 सीटें दी गईं, वहीं चुनाव में अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली तो ओमप्रकाश राजभर को 4 सीटों पर जीत मिली।
2019 के चुनाव में निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया तो इसका बड़ा फायदा मिला। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी छोटे दलों को पूरा सम्मान देने की तैयारी में है। इसी कारण इस बार अपना दल और निषाद पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन बरकरार है। इसके अलावा हिस्सेदारी मोर्चा के सात घटक दल भाजपा के साथ आ गए। भाजपा के साथ गठबंधन करने वालों में भारतीय मानव समाज पार्टी, मुसहर आंदोलन मंच (गरीब पार्टी), शोषित समाज पार्टी, मानवहित पार्टी, भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और भारतीय समता समाज पार्टी ने अपना समर्थन भाजपा को दिया है।
कांग्रेस ने अपनी सक्रियता को तेज कर दिया है। वह लखीमपुर, किसान आंदोलन का फायदा लेने के मूड में दिख रही है। बसपा भी जमीनी रूप से अपना काम धीरे-धीरे करने में जुटी है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो सत्तारूढ़ दल भाजपा और सपा को चुनावी रणनीति में छोटे दलों की अनदेखी कर पाना मुश्किल होगा। इसकी वजह राजनीतिक और सामाजिक हालात है। साथ ही जातीय समीकरण की गोट में भी इन दलों की अच्छी भूमिका होती है।