लखनऊ। मंगलवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि जब तक मन में विषय आसक्ति रहेगी तब तक मन में ईश्वर के प्रति अनुरक्ति नहीं हो सकती जिससे हम ईश्वर प्राप्ति भी नहीं कर सकते।
स्वामी ने कहा कि श्री रामकृष्ण ने एक प्रश्न पूछा था- ‘कामिनी और कांचन के भीतर रहकर कैसे कोई सिद्ध हो? वहाँ अनासक्त होना बहुत ही मुश्किल है।’ स्वामी जी ने कहा कि किसी के पास कितने ही रुपया पैसा हो तब भी उनकी धन के प्रति आसक्ति नहीं मिटती। यह बात भगवान श्री रामकृष्ण ने एक कहानी के माध्यम से व्याख्यान किया।
उन्होंने बताया-” एक फकीर जंगल में कुटी बनाकर रहता था तब अकबर शाह दिल्ली के बादशाह थे। फकीर के पास बहुत से आदमी आया-जाया करते थे। अतिथि-सत्कार की उसे बड़ी इच्छा हुई। एक दिन उसने सोचा, ‘बिना रुपए-पैसे के अतिथि- सत्कार कैसे हो सकता? इसलिए एक बार अकबर शाह के दरबार में चलूँ।’
जब फकीर वहाँ पहुँचा तब अकबर शाह नमाज पढ़ रहे थे। फकीर मस्जिद में उसी जगह जाकर बैठ गया। उसने सुना कि नमाज पूरी करके अकबर शाह खुदा से कह रहे थे,’ए खुदा, मुझे तू दौलतमंद कर खुश रख’-तथा और भी इसी तरह की कितनी ही इच्छाएं पूरी करने के लिए खुदा से दुआएं माँगते थे।
उसी समय फकीर ने वहां से उठ जाना चाहा। अकबर शाह ने बैठने के लिए इशारा किया। नमाज पूरी करके बादशाह ने आकर पूछा, ‘आप बैठे थे फिर चले कैसे?’ फकीर ने कहा, ‘मेरे यहाँ बहुत से आदमी आया करते हैं, इसीलिए मैं कुछ रुपया माँगने आया था।’
अकबर ने पूछा, ‘तो आप चले क्यों जा रहे हैं?’ फकीर ने कहा, ‘मैंने देखा कि तुम भी दौलत के कंगाल हो, और सोचा कि यह भी फकीर ही है, फकीर से क्या माँगू?, माँगना ही है तो खुदा से ही माँगूँगा’।”
स्वामी जी ने कहा कि अतएव, हमारे पास धन-दौलत कितना भी हो उससे कभी भी हमारी तृप्ति नहीं हो सकती है। जीवन में संतोष एवं शांति एकमात्र भगवत् भक्ति से ही मिलती है। इसलिए हमें ईश्वर से कभी कुछ धन-दौलत आदि नहीं माँगना चाहिए।
ईश्वर से केवल भक्ति ही प्रार्थना करना चाहिए। जिससे उस शुद्ध भक्ति से हमारा मन पवित्र रहे एवं मन में ईश्वर की छवि साफ दिखाई पड़े। जिससे हम इस जीवन में ही ईश्वर दर्शन करते हुए जीवन सफल कर सकते हैं।