महाभारत में सैकड़ों उपाख्यान बाद में शामिल किये गये : डा. जनार्दन यादव
लखनऊ। महर्षि वेदव्यास का मूल महाभारत ग्रन्थ बिना उपाख्यानों के था लेकिन, वर्तमान ग्रन्थ में सैकड़ों उपाख्यान जगह—जगह डाल दिये गये। जनमेजय के यज्ञ तक इस ग्रन्थ का मूल स्वरूप बना रहा। वेदव्यास के समय में महाभारत में 24 हजार श्लोक थे। इसका साक्ष्य महाभारत में मौजूद है। ”चतुर्विंशति साहस्त्रीं चक्रे भारत संहिताम्। उपाख्यानैर्विना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधै:।।” यह बातें अखिल भारतीय साहित्य परिषद बिहार के प्रदेश महामंत्री डा. जनार्दन यादव ने कही। वह अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अधिवेशन में ‘साहित्य का प्रदेय’ विषय पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि काशिका सूत्र और परशुराम जैसे बड़े-बड़े उपाख्यान महाभारत में स्वच्छन्दता से मिलाये गये। अनेक कथाएं बौद्ध जातकों की जो लोक की चलती फिरती सम्पत्ति थी वे भी महाभारत में मिला दी गई है। इसके अतिरिक्त शिव,विष्णु,सूर्य देवी और गणपति की बढ़ती हुई भक्ति के आवेश में सम्प्रदायविदों ने महाभारत में शामिल कर दिया। फिर भी सहस्त्रों वर्षों की जमी काई को हटाने का कार्य ”भंडारकर प्राच्य विद्या संस्थान पूना’ कर रहा है।
डा. जनार्दन यादव ने कहा कि भारतीय साहित्य में ‘महाभारत’ साहित्यिक दृष्टि से ‘साहित्य का प्रदेय’ रहा है। महाभारत में वेद व्यास ने अपनी अमित बुद्धि से अर्थशास्त्र,धर्मशास्त्र और मोक्षशास्त्र को भारतीय कथा के साथ—साथ बड़े सुन्दर ढ़ंग से सजाकर सदा के लिए आर्य जाति के विस्तृत ज्ञान और लौकिक जीवन का रूप खड़ा कर दिया है। इतनी विशाल रचना विश्व के किसी भी साहित्य में नहीं है। उन्होंने बताया कि महाभारत सच्चे अर्थों में प्राचीन भारतवर्ष का विश्वकोष है। महाभारत जहां एक ओर प्राचीन नीति और धर्म का अक्षय भंडार है। वहीं दूसरी ओर इसमें भारतीय गाथाशास्त्र की भी अनंत सामग्री है। महाभारत साहित्यिक शैलियों की खान है।
डा. जनार्दन ने कहा कि अपने पूर्व पुरूषों के चरित्रों को सुनने की जो हमारे मन में स्वाभाविक उमंग है वही हमारा सबसे उत्कट इतिहास प्रेम है। धर्म ही भारतीय संस्कृति का प्राण है। इसीलिए व्यास ने देश से अधर्म का नाश तथा धर्म से राष्ट्र के अभ्युत्थान की बात आख्यानों के द्वारा हमें बताई है। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रीय अभ्युत्थान के लिए महाभारत का विशेष महत्व इसलिए है कि वह प्राचीन भूगोल,समाजशास्त्र,शासन संबंधी संस्था तथा नीति और धर्म के आदर्शों की खान है। वेदव्यास जिस भारत राष्ट्र की उपासना करते थे आज का हिन्दू उसका स्वप्न देख रहा है।