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वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम बोर्ड ने किया स्वागत, मौलाना बोले ‘कुछ बातें हमारे अनुसार नहीं लेकिन’…

लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारी समिति के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा मुस्लिम पक्ष की कुछ दलीलों को स्वीकार करने के अंतरिम आदेश का स्वागत करते हुये कहा कि उन्हे उम्मीद है कि इस मामले पर पूरा फैसला आने पर मुसलमानो को पूर्ण राहत हासिल होगी।

मौलाना ने सोमवार को वक्फ संशोधन अधिनियम पर उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा ” आज के जजमेंट में उच्चतम न्यायालय ने हमारी कुछ दलीलें स्वीकार कर उन प्रावधानो पर रोक लगायी है। हमे उम्मीद थी कि पूरे एक्ट पर स्टे दिया जायेगा मगर ऐसा नहीं हुआ है लेकिन कुछ अहम बातों पर स्टे दिया गया है जिसका हम स्वागत करते हैं। अभी पूरा फैसला आना बाकी है। हम उम्मीद करते हैं कि हमे रिलीफ हासिल होगी।”

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की बेंच ने स्पष्ट किया कि वक्फ संपत्तियों को लेकर कलेक्टर का निर्णय अंतिम नहीं होगा। इसके साथ ही, वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की उस प्रावधान पर रोक लगा दी गई है, जिसमें वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति का पांच वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना अनिवार्य बताया गया था। फरंगी महली ने कहा ” फैसले में कुछ बातें हमारे अनुसार नहीं हैं, लेकिन कई निर्णय हमारी उम्मीदों के अनुरूप हैं। हमें विश्वास है कि अंतिम निर्णय में भी हमारी दलीलों को गंभीरतापूर्वक सुना जाएगा।”

उच्चतम न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर पूरी तरह से रोक लगाने से सोमवार को इंकार कर दिया लेकिन कहा कि अंतिम निर्णय आने तक इसके कुछ प्रावधानों पर रोक रहेगी। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संबंधित कानून के संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित किया। पीठ ने 22 मई को उस कानून के विभिन्न प्रावधानों पर रोक लगाने की याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

शीर्ष अदालत ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए वक्फ के लिए संपत्ति समर्पित करने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करने के मानदंड के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को वक्फ के रूप में संपत्ति समर्पित करने से पहले पांच वर्षों तक मुस्लिम होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि धारा 3(आर), इस अनिवार्यता पर तब तक रोक रहेगी जब तक कि राज्य (सरकार) द्वारा यह जांचने के लिए नियम नहीं बनाए जाते कि व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे किसी नियम/तंत्र के बिना, यह प्रावधान मनमाने ढंग से सत्ता का प्रयोग करेगा।

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