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अमेरिका, जापान और चीन में इस वजह से जारी है रिकॉर्ड तोड़ महंगाई, अब क्या इसका भारत समेत पूरी दुनिया पर असर

पहले कोरोना और अब महंगाई, आम आदमी की परेशानियां रोजाना बढ़ती ही जा रही है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, अमेरिका में महंगाई दर बढ़कर 6.2 फीसदी हो गई है. यह साल 1990 के बाद की सबसे बड़ी तेजी है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि दुनियाभर में बढ़ती महंगाई का असर अब शेयर बाजार पर भी दिखने लगा है. क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने की आशंका तेज होती जा रही है. इसीलिए शेयर बाजार में गिरावट थम नहीं रही है और सोने की कीमतों में तेजी लौटी आई है.

अगर महंगाई को आसान शब्दों में समझें तो कुछ ऐसा होगा. किसी व्यक्ति के पास ज्यादा पैसे है तो वह ज्यादा सामान खरीदेगा.  ज्यादा चीजें खरीदेगा तो वस्तुओं की डिमांड बढ़ेगी और प्रोडक्ट की सप्लाई कम होने के कारण उसकी कीमत बढ़ जाएगी. इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है.

अर्थशास्त्रियों की भाषा में कहें तो बाजार में ज्यादा लिक्विडिटी महंगाई का कारण बनती है. इसे कम करने के लिए सेंट्रल बैंक यानी RBI ब्याज दरें बढ़ा देता है या फिर अन्य कदमों के तहत सीआरआर भी बढ़ा दिया जाता है. इससे मार्केट में पैसों का फ्लो कम हो जाता है और महंगाई नियंत्रण में आ जाती है. इसके अलावा कई और वजहों से भी महंगाई बढ़ती है और इसे कम करने के लिए सरकार और सेंट्रल बैंक मिलकर कदम उठाते है.

अमेरिका समेत दुनियाभर के बड़े देशों में क्यों बढ़ रही है महंगाई

एस्कॉर्ट सिक्योरिटी के रिसर्च हेड आसिफ इकबाल ने TV9 हिंदी को बताया कि कोरोना महामारी से आर्थिक गतिविधियां थम गई थी. जिसकी वजह से आर्थिक मंदी आई. इसके बाद अमेरिका समेत दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के लिए राहत पैकेज का ऐलान हुआ, जमकर पैसा इन्वेस्ट किया गया. जिसकी वजह से लिक्वडिटी मार्केट में बढ़ गई. लिहाजा आम आदमी के पास ज्यादा पैसा पहुंचा. ऐसे में आम आदमी की परचेजिंग पावर बढ़ गई और सामान की सप्लाई कम हो गई. इसी वजह से महंगाई बढ़ी.

आसिफ इकबाल बताते हैं कि महंगाई बढ़ने की दूसरी प्रमुख वजह दो साल की डिमांड तीन महीने में आना है. इसको कुछ इस तरह से समझते है. कोरोना की वजह से 2 साल से आर्थिक गितिविधियां थम गई थी. लेकिन वैक्सीन आने के बाद जैसे ही कोरना मामले घटे और आर्थिक गतिविधियां बढ़ी. वैसे ही आम लोगों ने अपनी जरुरत के सामान को खरीदना शुरू कर दिया. लेकिन कंपनियां इस डिमांड को पूरी नहीं कर पाई और चीजों के दाम बढ़ने लगे.

…लेकिन महंगाई बढ़ना अच्छा भी है

महंगाई का बढ़ना एक अच्छी खबर भी है. क्योंकि कोरोना के दौरान कंपनियों ने 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी से निकाल दिया था. जैसे ही आर्थिक गतिविधियां शुरू हुई. वैसे ही तेजी से नौकरियां बढ़ी. कंपनियों ने प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए कई बड़े फैसले किए. अचानक, व्यवसायों को मांग को पूरा करने के लिए हाथापाई करनी पड़ी. अगस्त में नौकरियां रिकॉर्ड स्तर 10.4 मिलियन को पार कर गई. क्योंकि ग्राहक के ऑर्डर को भरने के लिए ज्यादा डिमांड आने लगी थी. इसीलिए ज्यादा हाथों की जरुरत महसूस हुई. महंगाई की ये स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक कंपनियां उपभोक्ताओं की वस्तुओं और सेवाओं की डिमांड को बनाए रख पाती है.

क्या दुनिया में 1970 का स्टैगफ्लेशन दौर लौटने वाला है?

अर्थशास्त्री बताते हैं कि स्टैगफ्लेशन का मतलब होता है. जब बेरोजगारी के साथ-साथ महंगाई भी ऊंचे लेवल पर रहती है. पहली नजर में महंगाई और बेरोजगारी का ऊंचा स्तर या स्लो ग्रोथ की स्थिति एक तरह से एक-दूसरे से उलट नजर आते हैं.

सन 1970 के दशक में ऐसी ही स्थिति बनी थी. तब इकनॉमिक प्रॉडक्टिविटी काफी घट गई थी. इस दौरान बेरोजगारी के ऊंचे लेवल पर होने के साथ-साथ महंगाई भी ज्यादा थी. ‘स्टैगफ्लेशन’ टर्म का इस्तेमाल सबसे पहली 1965 में ब्रिटिश पार्ल्यामेंट में लेन मैकलॉयड द्वारा किया गया था.

अब आगे क्या होगा?

आसिफ बताते हैं कि ये भी कुछ कुछ वैसा ही दौर है. क्योंकि महंगाई जितनी बढ़ी है. उतनी नौकरियां नहीं बढ़ी. ये दौर अगले 6 महीने तक जारी रह सकता है. ऐसे में शेयर बाजार पर भी दबाव बढ़ सकता है. शेयर बाजार में तेजी का नया दौर जनवरी के बाद लौटने की उम्मीद है. क्योंकि लोग अब सोने और क्रिप्टोकरेंसी में तेजी से पैसा लगा रहे हैं.

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