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गंगा नदी के इतिहास पर शोध करवाएगी सरकार, IIT कानपुर के सहयोग से नई पहल की शुरुआत

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा नदी के ऐतिहासिक और भौगोलिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए आईआईटी-कानपुर के साथ मिलकर एक महत्वाकांक्षी शोध परियोजना शुरू की है। इस परियोजना में सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग कर गंगा के अतीत को समझने और इसके संरक्षण के लिए रणनीति तैयार करने पर जोर दिया जाएगा। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत शुरू इस पहल का लक्ष्य नदी की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत को संरक्षित करना है।

इस शोध के तहत हरिद्वार, बिजनौर, नरौरा, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, पटना, भागलपुर और फरक्का जैसे नौ प्रमुख स्थानों के लिए डिजिटल इंटरैक्टिव डिस्प्ले तैयार किए जाएंगे। ये डिस्प्ले स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर नीति-निर्माण में सहायता प्रदान करेंगे। आईआईटी-कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर राजीव सिन्हा के अनुसार, यह परियोजना जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से शुरू की गई थी और इसका पहला चरण पूरा हो चुका है। अब एनएमसीजी एक वेब-जीआईएस पोर्टल विकसित करने के लिए फंडिंग कर रहा है, जिसके माध्यम से यह डेटा आम जनता और शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध होगा।

यह वेब-जीआईएस प्लेटफॉर्म एक उन्नत क्वेरी सिस्टम से लैस होगा, जो शोधकर्ताओं को जरूरत के हिसाब से डेटा तक त्वरित पहुंच प्रदान करेगा। सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण से पता चला है कि प्रयागराज के संगम क्षेत्र में गंगा की भौगोलिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। हालांकि, 1965 से 2019 के बीच यमुना नदी में तुलनात्मक रूप से कम परिवर्तन देखे गए। गंगा के चैनल बेल्ट और बाढ़ के मैदानों की चौड़ाई में कमी आई है, लेकिन नदी ने अपने मूल स्वरूप को बनाए रखा है।

वैज्ञानिकों ने उन क्षेत्रों के मानचित्र तैयार किए हैं, जहां गंगा को अपने पुराने प्रवाह को पुनर्जनन करने और भूमि उपयोग में सुधार के जरिए उसकी स्थिति को बेहतर करने में मदद मिल सकती है। आईआईटी-कानपुर के विशेषज्ञ इस परियोजना को गंगा संरक्षण के लिए डेटा-आधारित नीतियों का एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं।

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