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स्मारक घोटाले में विजलेंस का शिकंजा, 20 और अफसरों से होगी पूछताछ

लखनऊ : बसपा के शासनकाल में लखनऊ व नोएडा में स्मारकों के निर्माण में हुए 2400 करोड़ रुपये के घोटाले में उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) का शिकंजा कस गया है. सूत्रों की मानें तो विजिलेंस कृष्ण जन्माष्टमी के बाद खनन, आवास और कार्यदायी संस्था राजकीय निर्माण निगम समेत कुछ अन्य विभागों के तत्कालीन 20 अन्य अधिकारियों से पूछताछ करेगी. विजिलेंस ने सवालों की फेहस्त तैयार कर ली है. इन्हें पहले ही नोटिस भेजी जा चुकी है.

अफसरों को एक-एक कर विजिलेंस ऑफिस बुलाया गया है. इनमें घोटाले के समय शासन में तैनात रहे अफसर भी हो सकते हैं. पूछताछ में शामिल कुछ अफसर रिटायर भी हो चुके हैं. सूत्रों की मानें तो कुछ अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र भी दाखिल किया जाएगा. घोटाले की जांच कर रहे विजिलेंस ने हाल ही में तत्कालीन बसपा सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 20 अन्य अफसरों से पूछताछ की थी. उन्हीं के जवाबों के आधार पर इन अफसरों से भी पूछताछ की जाएगी. कहा यह भी जा रहा है कि सारी कार्रवाई 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए की जा रही. अगर ऐसा नहीं है तो पिछले साढ़े 4 साल में कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

बता दें कि 20 मई 2013 को शासन को सौंपी गई अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने कुल 199 लोगों को आरोपी बताया था. अब तक 23 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है. वर्ष 2014 में इसी रिपोर्ट के आधार पर जांच की जिम्मेदारी विजिलेंस को सौंपी गई थी. विजिलेंस ने जनवरी 2014 में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी.

अब इसी एफआईआर पर उसकी जांच चल रही है. वहीं, छह अफसरों के खिलाफ अक्तूबर, 2020 में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. विजिलेंस के साथ प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में जांच कर रहा है. प्रवर्तन निदेशालय ने स्मारक घोटाले में प्रीवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट का मामला भी दर्ज किया था और लखनऊ में इंजीनियरों और ठेकेदारों की संपत्तियों को कुर्क किया था.

तीन को मिली जमानत

विजलेंस ने घोटाले के मास्टरमाइंड तत्कालीन वित्तीय परामर्शदाता विमलकांत मुद्गल, महाप्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार और इकाई प्रभारी कामेश्वर शर्मा को गिरफ्तार किया था. हालांकि अफसरों के इशारे पर इन्हें बचाने की जुगत भी निकाली गई.

बताया जा रहा कि इतने बड़े घोटाले के कर्ताधर्ता इन पूर्व अफसरों के खिलाफ अभियोजन ने कोई ठोस साक्ष्य ही पेश नहीं किया जिसकी वजह से पिछले सप्ताह वीके मुद्गल, एसके त्यागी और कामेश्वर शर्मा को कोर्ट ने जमानत दे दी. कृष्ण कुमार की जेल में रहते हुए ही बीमारी से मौत हो गई थी. हालांकि जांच अफसरों का कहना है कि सभी आरोपियों को मेडिकल ग्राउंड पर जमानत मिली है.

विजिलेंस की जांच में यह तथ्य सामने आया था कि मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों को राजस्थान से लाए जाने का दावा करते हुए पत्थरों को दोगुने रेट में खरीदने और परिवहन के फर्जी बिलों का भुगतान लिया गया. पत्थरों की कीमतों से लेकर उसके परिवहन तक में भारी अनियमितता देखने में आई थी. बीते 9 जुलाई 2007 को तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने अफसरों को मीरजापुर सैंड स्टोन के गुलाबी पत्थरों को स्मारकों में लगाने के लिए निर्देश दिए थे. इनके रेट तय करने के लिए गठित क्रय समिति की बैठक हुई थी जिसमें कई बड़े अफसर शामिल हुए.

कमेटी ने मिर्जापुर सैंड स्टोन के ब्लॉक खरीदने के लिए कंसोर्टियम बनाकर 150 रुपये प्रति घन फीट रेट तय किया. इसमें लोडिंग के लिए बीस रुपये प्रति घन फीट और जोड़कर सप्लाई के रेट तय कर दिए थे. इन दरों के अलावा रॉयल्टी और ट्रेड टैक्स का अतिरिक्त भुगतान किया गया था जबकि उस समय इन पत्थरों का बाजार भाव 50 से 80 रुपये घन फीट से ज्यादा नहीं था.

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