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बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए चलता रहा नक्शे में बदलाव का खेल

सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट मामले में SIT के हाथ कई अहम सबूत लगे हैं. लेकिन सवाल इस बात का है कि, क्या इन बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई होगी, जिनके कार्यकाल में नक्शे में बदलाव की शिकायतें आई थीं. आपको बता दें कि, दिसंबर 2006 में पहली बार मानचित्र में बदलाव हुआ था. उस वक्त संजीव सरन प्राधिकरण के सीईओ थे. उसके बाद नवंबर 2009 में मानचित्र बदला गया, तब मोहिंदर सिंह सीईओ थे और जब आखिरी बार मार्च 2012 में बदलाव हुआ तब नोएडा प्राधिकरण के सीईओ कैप्टन एस के द्विवेदी थे, लेकिन जब शिकायतों की झड़ी लगी तो नोएडा प्राधिकरण की कमान रमारमण के हाथों में थी.

तीन-तीन बार किया गया बदलाव

आपको जानकर हैरानी होगी कि, नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने बिल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में एक, दो बार नहीं तीन-तीन बार मानचित्र में बदलाव किया गया. आपको बता दें कि, मानचित्र में पहला बदलाव करते हुए ग्रीन बेल्ट को खत्म कर बिल्डर को निर्माण करने की इजाजत दी गई. दूसरी बार मानचित्र में जब बदलाव हुआ तो दोनों टावर के बीच में जो निर्धारित दूरी थी, उसे कम किया गया, इसके अलावा तीसरे बदलाव में टावर की ऊंचाई में बदलाव किया गया, क्योंकि पहले टावर की ऊंचाई 73 मीटर थी जिसे बढ़ाकर 120 मीटर कर दी गई.

बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया खेल

बिल्डर को सीधा फायदा पहुंचाने के लिए समय-समय पर बिल्डर के मानचित्र में बदलाव किया गया, और यह बदलाव खुद बयां कर रहा है कि किस तरह से नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने बिल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए समय-समय पर उसके प्रोजेक्ट के मानचित्र में बदलाव किया ताकि उसे फायदा मिल सके.

SIT ने तेज की जांच 

भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की नीति पर काम कर रही योगी सरकार ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की कारगुजारी की जांच के लिए SIT टीम गठित की है, जो नोएडा प्राधिकरण पहुंचकर 2004 से लेकर 2017 के बीच तैनात अधिकारियों की कार्यप्रणाली की जांच कर रही है, ताकि जांच में जिन जिन अधिकारियों की संलिप्तता सामने आए उसी के आधार पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अधिकारियों पर कार्रवाई करेंगे.

लेकिन जिस तरह से नोएडा में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यकाल में सुपरटेक बिल्डर के एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के मानचित्र में बदलाव किया गया उसको देखते हुए कई सवाल खड़े होते हैं.  लेकिन हर सवाल का जवाब अब एसआईटी टीम की जांच के बाद ही मिल पाएगा. वहीं, इस पूरे मामले में नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों से एबीपी गंगा की टीम ने बात करने की कोशिश की, लेकिन अधिकारियों ने कैमरे पर बात करने से मना कर दिया.

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