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‘आज के समय में बेहद जरूरी है यूनिफॉर्म सिविल कोड,’ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केंद्र को जल्द विचार करने को कहा

अलग-अलग धर्म के लोगों के विवाह (अंतर्धार्मिक विवाह) से संबंधित 17 याचिकाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आर्टिकल 44 के जनादेश को लागू करने के लिए केंद्र सरकार से एक पैनल स्थापित करने पर विचार करने के लिए कहा है. आर्टिकल 44 के मुताबिक सरकार भारत के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को सुरक्षित करने का प्रयास करेगी.

कोर्ट ने मैरिज रजिस्ट्रार और याचिकाकर्ताओं के जिला अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो धर्म परिवर्तन के मामलों को देखने वाले जिला अधिकारी के एप्रूवल के बिना ही याचिकाकर्ताओं की शादी को तुरंत रजिस्टर करें. इसके लिए धर्म परिवर्तन के मामलों को देखने वाले जिला अधिकारी के एप्रूवल का इंतजार न करें.

अंतरधार्मिक जोड़ों को अपराधियों के समान न समझा जाए

इसी दौरान कोर्ट ने कहा कि आज के समय में UCC काफी जरूरी है और अनिवार्य रूप से इसकी आवश्यकता है. इसे स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता है, जैसा कि 75 साल पहले बीआर अंबेडकर ने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई आशंका और भय के मद्देनजर देखा था. जस्टिस सुनीत कुमार ने कहा कि यह समय की मांग है कि संसद एक ‘सिंगल फैमिली कोड’ पर विचार करे, ताकि अंतरधार्मिक जोड़ों (अलग-अलग धर्म में शादी करने वाले लोगों) को सुरक्षा मिल सके और उन्हें अपराधियों के समान न समझा जाए.

इलाहाबाद हाई कोर्ट का कहना है कि अब समय आ गया है कि संसद को इन मामलों में हस्तक्षेप करते हुए ये देखना चाहिए कि क्या देश को विवाह और रजिस्ट्रेशन के अलग-अलग कानूनों की जरूरत है या सभी पक्षों को सिंगल फैमली कोड के तहत लाया जाना चाहिए.

प्राधिकरण का एप्रुवल शादी के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्य शर्त नहीं

वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि याचिकाकतार्ओं की शादी को जिला प्राधिकरण की जांच के बिना रजिस्टर नहीं किया जा सकता है. इसके पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि इन लोगों ने शादी से पहले धर्मांतरण करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट से जरूरी एप्रूवल नहीं लिया है.

हालांकि याचिकाकतार्ओं के वकीलों ने साफ कहा कि अपने साथी और धर्म को चुनना नागरिकों का अधिकार है और धर्म परिवर्तन उनकी अपनी इच्छा से हुआ है. उन्होंने कहा कि सरकार और परिवार के सदस्यों का हस्तक्षेप पसंद, जीवन, स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के हनन करने के समान होगा. उन्होंने आगे कहा कि धर्म परिवर्तन और विवाह से पहले जिला प्राधिकरण का एप्रुवल शादी के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्य शर्त नहीं है.

इसके बाद अदालत ने कहा कि विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का बंधन है, जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त है. अदालत ने बाद में विवाह रजिस्ट्रार और याचिकाकतार्ओं के जिलों के अधिकारी को धर्म परिवर्तन के संबंध में सक्षम जिला प्राधिकारी के एप्रूवल का इंतजार किए बिना याचिकाकतार्ओं के विवाह को तुरंत रजिस्टर करने का निर्देश दिया है.

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