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विद्रोही होते बच्चे, अभिभावक हैरान! जिम्मेदार कौन?: लेखक—– पं. हरिओम शर्मा

अभी कुछ दिन पहले मेरे मित्र ‘क’ महोदय का 16 वर्षीय पुत्र अचानक गायब हो गया। मेरे मित्र रोते गाते हुए मेरे पास आये और बोले भाई शर्मा जी मेरा मझला पुत्र श्रवण कुमार ग्यारह दिन से गायब है। पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी है किन्तु अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। मैने उन्हें सात्वना देते हुए ढाढस बँधाया, चिन्ता मत करो, ईश्वर सब भला करेंगे। थोड़ा शान्त होते हुए वह बोले कि पहले भी ऐसा कई बार कर चुका है किन्तु दूसरे तीसरे दिन ही आ जाता था, लेकिन इस बार तो पूरे ग्यारह दिन हो गये हैं। मैंने अपने मित्र ‘क’ महोदय को धैर्य बंधाते हुए विदा किया। उनके जाते ही मेरे दूसरे मित्र ‘ख’ महोदय फटेहाल मेरी ओर लपकते हुए दिखाई दिये, साथ ही श्रीमती ‘ख’ महोदया के विलाप से तो मैं विचलित हो गया कि आखिर मेरे मित्र पर कौन सा दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। सो दौड़ते हुए मैं ही गेट पर पहुँचकर ‘ख’ दम्पत्ति की कुशल क्षेम पूछने लगा। श्रीमती ‘ख’ महोदया सुबकते हुए बोली, भाई साहब हमारी 17 वर्षीय भोली-भाली बेटी गीता को पड़ोस में रहने वाला कृष्ण का पुत्र अर्जुन बहला-फुसलाकर कहीं ले गया है। तीन दिन से दोनों घर में नही है। यह सब श्रीमती ‘ख’ महोदया एक ही सांस में कह गई। मैेने अपने इस दम्पत्ति मित्र श्रीमती एवं श्री ‘ख’ महोदय को भी ढांढस व आश्वासन देकर विदा तो कर दिया किन्तु मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्यों आज एक श्रवण कुमार अपने माता-पिता की आज्ञा की अवहेलना करता है? क्यों वह घर से भाग जाता है? क्यों वह अपने माता-पिता से विद्रोह करता है? क्यों एक ‘गीता’ अर्जुन के साथ भाग जाती है? और क्यों एक अर्जुन गीता का अपहरण करके ले जाता है? आखिर क्यों? इसके लिए दोषी कौन है? श्रवण कुमार, गीता, अर्जुन या समाज का कोई कंस या कृष्ण या फिर गीता, अर्जुन व श्रवण कुमार के माता-पिता! यह सब सोचते-सोचते मैं कब सो गया पता ही न चला।
फोन की घंटी की घनघनाहट से जब मेरी नींद खुली तो घड़ी पर निगाह गई, रात के दो बजे थे। फोन पर श्रीमती ‘ख’ महोदया थी जो अपनी पुत्री गीता, अर्जुन व अर्जुन के पिता कृष्ण के थाने में बंद होने पर ऐसे चहक रही थी मानो गीता का सम्पूर्ण ज्ञान उनको मिल गया हो। श्रीमती ‘ख’ महोदया बोली, भइया शर्मा जी उस अर्जुन दुष्ट को बिटिया गीता के साथ पुलिस ने स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया है। मेरी भोली-भाली बिटिया को कहीं दूर भगा ले जाने का इरादा था, सो पुलिस ने दबोच लिया साथ ही अर्जुन के पिता कृष्ण को भी गिरफ्तार कर लिया है। इस समय अर्जुन, कृष्ण और गीता तीनों ही थाने में है। अब आपको आधी रात को फोन इसलिए किया है कि गीता बिटिया को कोतवाली से घर भिजवा दो। ऐसा कहकर श्रीमती ‘ख’ महोदया फोन पर रो पड़ी। मैने उन्हें ढाढस बंधाते हुए फोन रख दिया किन्तु मन में अनेक विचार कौंधने लगे कि आखिर आज कृष्ण, गीता, अर्जुन, कोतवाली में क्यों बंद है? और गीता को कृष्ण और अर्जुन से ही खतरा है, ऐसा क्यों? इस अनहोनी का जिम्मेदार कौन? इस अनहोनी से कैसे बचा जा सकता है? इन प्रश्नों ने मुझे अधीर कर दिया और मैं लिखने बैठ गया। यह सोचकर कि इस समाज में यही अकेले कृष्ण, अर्जुन और गीता नही, न जाने कितने और कृष्ण, अर्जुन और गीता होंगे। शायद मेरे इन चन्द सुझावों से कुछ ‘माता-पिता’ अपनी संतान को राह भटकने से बचा लेंगे तो मेरा लेखन भी सार्थक हो जायेगा।
‘माता-पिता’ अपने आपको हॉस्टल प्रवृत्ति से बचायें: आज अभिभावकों में हॉस्टल प्रवृत्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उसके दो कारण हैं, एक तो यह कि बच्चों को हॉस्टल में रखकर पढ़ाना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है। दूसरा यह कि ‘माता-पिता’ बच्चों को हॉस्टल भेजकर स्वतन्त्र जीवन जीना चाहते हैं। ऐसा नही है कि हॉस्टलों में अंधेरा ही अंधेरा है, वहाँ भी प्रकाश है किन्तु यह शाश्वत सत्य है कि जो प्रकाश माता-पिता के सानिध्य में है वह प्रकाश कहीं अन्यत्र नही है।
माता-पिता बच्चों को समय दें: आज माता-पिता अपने बच्चो ंको सबकुछ दे रहे हैं, मगर समय नहीं दे रहे हैं। यही प्रवृत्ति बच्चों को विद्रोही बना रही है। आज माता-पिता मंहगी से मंहगी बाइक, मोबाइल, टी0वी0, फ्रिज, एसी, भारी मात्रा में जेब खर्च, सबकुछ दे रहे हैं किन्तु समय के नाम पर अपनी व्यस्ता का बखान कर अपने स्टेटस सिम्बल को ऊँचा करने पर लगे हैं। हमेशा याद रखिये संतान को भौतिक वस्तुयें नही, माता-पिता का प्यार चाहिए और यदि आप द्वारा प्रदत्त भौतिक वस्तुओं से आपकी संतान को प्यार हो गया तो फिर वह आपको तिलान्जलि देकर वह इन्हीं वस्तुओं से ही प्यार करने लगेंगे।
माता-पिता अपने अभिभावकों को अपने साथ रखें: आज खेती-बाड़ी, खेत, खलिहान के नाम पर अनेक अभिभावक गांव में विषम परिस्थितियों व बुढ़ापे से जूझ रहे हैं और उनकी संतान यहाँ शहर में बडे़ साहब बनकर दो पीढ़ी का शोषण व उत्पीड़न कर रहे हैं। दो पीढ़ी मैं इसलिए कह रहा हूँ कि एक तो वह अपने अभिभावकों को साथ न रखकर उनके साथ अन्याय कर रहे हैं, दूसरे अपने बच्चों को ‘दादा-दादी’ या ‘नाना-नानी’ के प्यार से वंचित कर उनके साथ अन्याय कर रहे हैं। आप सोचिये कि दो पीढ़ी के साथ अन्याय करने वाला इन्सान कैसे सुखी रह सकता है?
माता-पिता टी.वी. संस्कृति से बचायें अपने बच्चों को: यह बुद्धू बक्सा जिसे हम टी0वी0 के नाम से जानते हैं। यह मनोरंजन के नाम पर आपके बच्चों के मस्तिष्क में क्या विष घोल रहा है क्या आपने कभी सोचा है? इस पर आज ही चिन्तन, मनन और मंथन करिये और इस टी0वी0 संस्कृति नाम की भयंकर बीमारी से अपने बच्चों को बचाइये अन्यथा या तो फाँसी का दृश्य देखकर उसका अनुसरण कर लेंगे या फिर विद्रोह के दृश्य देखकर आपके साथ विद्रोह करेंगे।
माता-पिता स्वयं संतान के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करें: मैने कई माता-पिता को बच्चों द्वारा सिगरेट मंगाकर पीते हुए देखा है और कई को घर के बंद कमरे में शराब पीते हुए देखा है और कई को प्रातः 9 बजे तक सोते हुए देखा है आदि। अतः भलाई इसी में हैं अपने चरित्र द्वारा, अपने व्यवहार द्वारा बच्चों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करें।
माता-पिता, भूत व भविष्य को वर्तमान से जोड़े: आज जो समाज में विघटन की स्थिति है, उसका मूल कारण है कि हम भूत व भविष्य को वर्तमान से नहीं जोड़ पा रहे हैं। यदि हम भविष्य को सजाना, चाहते हैं तो इस भविष्य को जिसे हम ‘औलाद’ कहते हैं, भूत व भविष्य से जोड़ना होगा। अर्थात पहले आपसे जो गलतियां हुई है उन गलतियों को बच्चों के समक्ष गलती माननी पड़ेगी, तभी तो बच्चे आपकी गलती को गलती मानेंगे, अन्यथा वह जाने अनजाने में आपकी गलती को आदर्श मानकर उसका अनुसरण करेंगे। दूसरे जो ‘भूत’ आपको माता-पिता के रूप में ईश्वर ने दिये हैं, उनका सम्मान करिये, सेवा करिये, पूजा-अर्चना करिये, उनकी झोली में अपनी औलाद को डाल दीजिए, सच मानिये उनसे ज्यादा मूल्यवान संस्कार आपकी औलाद को कोई और नहीं दे सकता है। आपकी तो केवल ड्यूटी यह है कि आप भूत व भविष्य को मिलायें, साथ ही अपने कर्माे, अपने आचरण द्वारा आदर्श प्रस्तुत करें।

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