उत्तर प्रदेशवाराणसी

मां अन्नपूर्णा की यात्रा हुई पूरी, जानिए 108 साल बाद मूर्ति को कनाडा से भारत वापस लाए जाने के पीछे की क्या है कहानी?

अब आस्था में यूपी चुनाव ने और भी रंग भर दिए हैं. आज मां अन्नपूर्णा की यात्रा पूरी हो गई. काशी से कनाडा ले जाई गई मूर्ति को 108 साल बाद वापस काशी लाकर स्थापित कर दिया गया. आज काशी विश्वनाथ मंदिर में मां अन्नपूर्णा की मूर्ति की भव्य स्थापना की गई. 10 नवंबर को दिल्ली से एक शोभा यात्रा निकाली गई थी, जिसमें मूर्ति को सड़क मार्ग से वाराणसी ले जाया गया. यूपी के 19 जिलों से होकर देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति काशी पहुंची, जहां उनकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई, लेकिन आज आपको जानना चाहिए कि इस मूर्ति को वापस भारत लाने के पीछे की कहानी क्या है?

15 नवंबर यानी देवोत्थान एकादशी के मौके पर वाराणसी में मां अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई और इसी के साथ मां अन्नपूर्णा की इस दुर्लभ मूर्ति का वाराणसी से वाराणसी लौटने का 108 साल का चक्र पूरा हो गया, लेकिन इस चक्र के पूरा होने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. आज से दो साल पहले कनाडा की आर्टिस्ट दिव्या मेहरा को यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना से न्योता मिला था और इसी मैकेंजी आर्ट गैलरी में बुलाया गया था, लेकिन यहां पर हिंदू देवी मां अन्नपूर्णा की ये मूर्ति अपने पहचान का इंतजार कर रही थी. इस गैलरी में रखी जिस मूर्ति को भगवान विष्णु बताया जा रहा था. वो असल में मां अन्नपूर्णा की मूर्ति थी.

मूर्ति के एक हाथ में खीर का कटोरा है

दिव्या मेहरा ने अपने अध्ययन के बाद दावा किया कि भगवान विष्णु एक देवता हैं, जबकि मूर्ति एक देवी की है. मूर्ति के एक हाथ में खीर का कटोरा है. दूसरे हाथ में है कलछी. लिहाजा ये मूर्ति भगवान विष्णु की नहीं बल्कि मां अन्नपूर्णा की है. इसके बाद जब मूर्ति का इतिहास खंगाला गया तो काशी से कनाडा पहुंची ये मूर्ति वापस काशी लौटकर आई और मूर्ति गायब होने की एक 108 साल पुरानी कहानी भी सामने आई. बात 1913 की है, जब देश की इस आध्यात्मिक राजधानी में नॉर्मन मैकेंजी एक पर्यटक बनकर पहुंचे थे. बताया जाता है कि तब गंगा किनारे एक मंदिर में मां अन्नपूर्णा की इस मूर्ति की भी पूजा होती थी, लेकिन ये मूर्ति मैकेंजी को पसंद आ गई.

कहा जाता है कि मैकेंजी ने अपने गाइड से मूर्ति दिलाने की मांग की. तब गाइड ने मां अन्नपूर्णा की मूर्ति दिलाने में असमर्थता जताई थी, लेकिन मैकेंजी और गाइड की बातें कोई और भी सुन रहा था, जिसने मां अन्नपूर्णा की मूर्ति चुराकर मैकेंजी को बेच दी थी. मैकेंजी इस मूर्ति को भगवान विष्णु की मूर्ति मानकर कनाडा ले गए थे और 1936 में इसकी वसीयत कराकर मैकेंजी आर्ट गैलरी में शामिल कर लिया था. दो साल पहले राज़ खुलने के बाद जांच में पाया गया कि 1913 में ये मूर्ति काशी से गायब हो गई थी, जिसे भारत सरकार की कोशिशों के बाद वापस लाया जा सका.

अन्नपूर्णा देवी की ये मूर्ति बहुत ही खास

चुनार के बलुआ पत्थर से बनी अन्नपूर्णा देवी की ये मूर्ति बहुत ही खास है. मूर्ति विशेषज्ञों ने इसे 18 वीं सदी का बताया है. यानी ये करीब तीन सदी पुरानी मूर्ति है. कनाडा में इसका रखरखाव बहुत ही अच्छी तरह से किया गया.फिर भी ये मूल प्रकृति खो चुकी है. इसकी लंबाई 17 सेंटीमीटर और चौड़ाई 9 सेंटीमीटर है. पौराणिक कथा के मुताबिक मां अन्नपूर्णा ने मां पार्वती के स्वरूप में महादेव से विवाह किया था और कैलाश पर्वत पर रहने लगीं. लेकिन एक बार धरती पर अकाल पड़ा. तब मां पार्वती ने अन्नपूर्णा और महादेव ने भिखारी के रूप में काशी में अवतार लिया था. काशी में अवतार लेने के बाद महादेव ने मां अन्नपूर्णा से भीख मांगी थी और मां अन्नपूर्णा ने अन्न का संकट दूर किया था. कहा जाता है मां अन्नपूर्णा के वास से भोलेनाथ की नगरी में कोई भी भूखा नहीं रहता.

आपको बता दें कि कनाडा ने शिष्टाचार भेंट के तौर पर ये मूर्ति भारत को वापस लौटाई है, जिसे एक लालची चोर ने चुराकर मैकेंजी को बेच दिया था. कनाडा की रेजिना यूनिवर्सिटी के कुलपति ने भूल सुधार करते हुए पिछले साल ओटावा में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया को यह मूर्ति सौंपी. मूर्ति को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण- एएसआई कनाडा से वापस लाया और 15 अक्टूबर को यह मूर्ति दिल्ली पहुंची. 2014 से 2020 तक विरासत की 41 वस्तुएं और मूर्तियां भारत वापस आई हैं. जो करीब 75 प्रतिशत से ज्यादा है. संस्कृति मंत्रालय के मुताबिक कनाडा के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी से भी कई मूर्तियां भारत वापस आ चुकी हैं.

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