एससीओ सम्मेलन में भारत को मिली बड़ी सफलता

- मोदी-पुतिन के बीच 45 मिनट तक एकांत वार्ता
- चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने किया मोदी का गर्मजोशी से स्वागत
- दुनिया की 2.8 अरब की आबादी के बारे में फैसला।
- शिखर सम्मेलन की सफलता से अमेरिका को तगड़ा झटका
- नोबेल पुरस्कार का असली हकदार तो नरेंद्र मोदी है।
- अमेरिका की चौधराहट के खिलाफ दुनिया की तीन महा शक्तियां एक मंच पर
शिवशंकर गोस्वामी (वरिष्ठ पत्रकार)
चीन के तियान्जिन शहर में 31 अगस्त एवं 1 सितम्बर 2025 को एससीओ ( शंघाई सहयोग संगठन) का शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ। भारत चीन और रूस सहित 21 देशों ने इसमें हिस्सा लिया। 9 देश विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में मौजूद रहे। भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन से वहां के राष्ट्रपति शी जिन पिंग और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन की एकसाथ उपस्थिति खास मायने रखती है वह भी तब जब अमेरिका के टेरिफ वार से पूरी दुनिया परेशान है। भारत के हक़ में महत्वपूर्ण बात यह रही कि 63 साल के बाद अपने पारम्परिक दुश्मन चीन के साथ कुछ अहम मुद्दों पर उसकी खुलकर चर्चा हुई। इसमें आपसी व्यापार सम्बन्ध बढाने और दोनो देशों के बीच फिर से सीधी विमान सेवा शुरू करने का मुद्दा प्रमुख रहा जाटव रहे की 2019 से भारत और चीन के बीच विमान सेवाएं बंद हैं।
पूरे शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहाँ छाये रहे वही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ अलग थलग नज़र आ रहे थे यहां तक कि चीनी राष्ट्रपति भी उन्हें भाव नहीं दे रहे थे। पुतिन से हाथ मिलाने के लिए तो शहबाज़ शरीफ को काफी देर तक इंतजार करना पडा। दूसरीओर पुतिन ने मोदी को अपनीं कार में बैठाकर 45 मिनट तक अकेले में बातचीत की। चीनी राष्ट्रपति की भी मोदी के साथ एकांत में गुफ्तगू हुईं किन्तु बरात में रिसियाये फूफा की तरह शहबाज़ घूमता रहा। उसे कोई भाव इसलिए नही दे रहा था क्योंकि पाकिस्तान अब अमेरिका की गोद में बैठ गया है।
भारत रूस और चीन जैसी तीन महा शक्तियों के अलावा इस शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान उजबेकिस्तान कजाकिस्तान गिरगिस्तान सहित 21 देशों ने भाग लिया। भारत ने सभी देशों के बीच सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक सहयोग बढाने का मुद्दा तो उठाया ही साथ ही पहलगाम हमले की बात को भी जोरदार तरीके से रखा जिसका समर्थन पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों ने किया।
एससीओ का गठन किस उद्देश्य से हुआ था, इस मुद्दे पर गौर करते हैं तो पता चलता है कि आज से 24 साल पहले 2001 मैं कुछ देशों ने मिलकर एससीओ की नींव इसलिये डाली थी कि यह पाश्चात्य देशों के एकाधिकार के खिलाफ एशियाई देशों की हित रक्षा के लिए काम करेगा लेकिन इसी दौरान सोवियत संघ के विभाजन के चलते इस की गतिविधियां धीमी पड़ गयीं लेकिन अमेरिका की बढ़ती दादागिरी के कारण अब फिर से एससीओ को मजबूत करने का काम हो रहा है।
ट्रम्प के टेरिफ ने भारत- चीन को करीब आने को मजबूर किया:- यह बात सच है कि भारत और चीन के सम्बन्ध छह दशक से अधिक समय से अच्छे नहीं चल रहे हैं किन्तु ट्रम्प के टेरिफ ने दोनो देशों को नजदीक ला दिया। तभी तो सात साल बाद मोदी जब चीन पहुंचे तो राष्ट्रपति जिन पिंग ने बडी़ गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। दरअसल चीन लम्बे समय से अमेरिका से त्रस्त रहा है और रूस तथा अमेरिका के बीच वर्षों तक शीतयुद्ध चलता रहा है।
इधर जब अमेरिका ने बन्दूक नाल भारत की तरफ तानी तथा आतंकिस्तान को गोद में उठा लिया तो चीन ने सोचा कि भारत से हाथ मिलाने का यह सही मौका है। रूस पहले से ही चलता था कि भारत चीन को करीब लाया जाय। इस काम में रूस ने भारत के साथ अपनी दोस्ती का सही उपयोग किया इस प्रकार दुनिया की चार मे से तीन महाशक्तियों अति करीब आ गयीं और अमेरिका खिसियानी बिल्ली की तरह घूम रहा है और अब कह रहा है कि भारत उसका अच्छा दोस्त रहा है और आगें भी रहेगा किन्तु भारत को दो बाते हमेशा ध्यान में रखनी होगी।
नम्बर एक यह कि अमेरिका कभी किसी का सगा नहीं रहा है और दूसरी यह कि चीन कितनी भी खुशामद करे वह भरोसे लायक कत्तई नहीं है। अमेरिका को अपना हथियार बेचना है और चीन को अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढाना है जबकि भारत को आत्मनिर्भर बनना है तथा वसुधैवकुटुम्बकम्क्म के सिद्धांत का पालन करना है।
एससीओ में मोदी का भाषण: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ के सामने जो भाषण दिया उससे न केवल वहाँ उपस्थित सभी लोग प्रभावित हुए बल्कि इसकी गूंज अमेरिका में ह्वाइट हाउस तक सुनाई पडी। मोदी ने साफ शब्दों में कहा कि आजकल पूरी दुनिया आतंकवाद के खतरे से जूझ रहा है लेकिन अफ़सोस तब होता है जब पता चलता है कि ऐसे कुछ देश तो आतंकवाद का शिकार रहे हैं खुद आतंकी देश को पनाह देते हैं। मोदी का साफ इशारा अमेरिका की ओर था जो पाकिस्तानी जनरल आसिफ मुनीर को लंच एवं डिनर पर बुलाता है। मोदी की इस बात की सभी ने दिल से प्रशंसा की। मोदी ने कहा कि अब समय आ गया है जब हम सबको मिलकर नये वैश्विक शक्ति संतुलन के बारे पे विचार करना चाहिए। जिन पिंग उनकी इस बात से बहुत प्रभावित हुए जबकि ब्लादिमिर पुतिन ने अपनी प्रेसिडेंशियल कार में बिठाकर होटल रिट्ज़ कार्लटन ले गए और वहाँ पर 45 मिनट तक दोनों नेता विभिन्न मुद्दो पर बात करते रहे। इसमें यूक्रेन पर रूसी हमले का मसला भी शामिल था।
बताते चले कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने मोदी को फोन करके कहा था कि शिखर सम्मेलन में उनके मसले को उठाया जाता है तो तीन साल से चले आ रहे युद्ध को समाप्त करने दिशा मे एक महत्वपूर्ण पहल होगी। पुतिन भी मोदी के सामने युद्ध समाप्त करने की मंशा जता चुके हैं। यदि ऐसा हुआ तो सचमुच में मोदी को बहुत बडा श्रेय मिलेगा और सही मायने में नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार ट्रम्प नही मोदी ही होंगे।
कुल मिलाकर देखा जाये तो साफ दिखाई दे रहा है कि भविष्य में भारत रूस और चीन की तिकड़ी से जो महाशक्ती बनती नज़र आ रही है वही सर्वोच्च होगी और अमेरिका जो आज दादा बना घूम रहा है वह अपने लगुओं भगुओं के साथ पिद्दू साबित होगा। इति।