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भगवान बुद्ध की मूर्ति को तोप से उड़वाने वाला शख्स अब अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री, जानिए आखिर क्या थी वजह

अफगानिस्तान में तालिबानी कट्टरपंथी सरकार का गठन हो गया है. इस सरकार में बुद्ध की मूर्तियों को तोप से उड़ाने वाले मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को प्रधानमंत्री बनाया गया है. साथ ही इस सरकार में अहम पदों पर खूंखार हक्कानी नेटवर्क के चेहरों को रखा गया है, जिसमें वैश्विक आतंकवादी सिराजुद्दीन हक्कानी को भी जगह दी गई है. यही नहीं, वैश्विक आतंकवादी और हक्कानी नेटवर्क की स्थापना करने वाले जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा भी इस कैबिनेट में कार्यवाहक आंतरिक मंत्री के तौर पर शामिल किया गया है. हालांकि, अखुंद के 33 सदस्यीय मंत्रिमंडल में एक भी महिला नहीं है.

…जब अखुंद ने बुद्ध की मूर्ति पर गिराए तोप के गोले

तालिबानी सरकार के प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को एक रहस्यमय व्यक्ति माना जाता है. 1990 के दशक में तालिबान की स्थापना के बाद से ही अखुंद का अफगानिस्तान में प्रभाव रहा है. अखुंद को धार्मिक रूप से कट्टर और प्रभावशालि व्यक्ति के तौर पर जाना जाता रहा है. अखुंद शूरा परिषद के प्रमुख के तौर पर काम किया है. शूरा परिषद एक ऐसी संस्था है जो धार्मिक विद्वानों और मुल्लाओं (इस्लामी धर्मशास्त्र में प्रशिक्षित लोगों को दिया जाने वाला सम्मान) से बनी पारंपरा के आधार पर निर्णय लेती है. यही संस्था तालिबान के हर बड़े फैसले लेती है.

साल 2001 में अखुंद एकाएक उस समय चर्चा में आया जब उसने ‘बमियान के बुद्ध’ को नष्ट कर दिया था. दरअसल, बमियान घाटी में चट्टानों और चूना पत्थरों से बनी बुद्ध की दो विशाल मूर्तियां खड़ी थीं, जिसे साल 2001 में तालिबान ने तोप के गोलों से उड़वा दिया था.

क्यों तोड़ी गईं बुद्ध की मूर्तियां?

शुरुआत में, उमर का मूर्तियों को नष्ट करने का कोई इरादा नहीं था. लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान के लिए मानवीय सहायता उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया था और उसके बजाय यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के लिए संरक्षण राशि उपलब्ध कराई थी. संयुक्त राष्ट्र के इस कदम से तालिबान का संस्थापक मुल्ला उमर नाराज हो गया था. इसके बाद उमर ने अपने धार्मिक संगठन शूरा से सलाह मांगी और फिर तालिबान ने बुद्ध की प्रतिमाओं को तोप से नष्ट करने का फरमान सुनाया था. उस समय अखुंद भी उस परिषद का हिस्सा था जिसने बुद्ध की छठी शताब्दी की मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था.

1990 के दशक की तालिबान सरकार में अखुंद ने विदेश मंत्री के तौर पर भी काम किया. इसके बावजूद उसकी पहचान सख्त इस्लामी विचारधारा के समर्थक के रूप में ही रही. अखुंद ने हमेशा धार्मिक संगठन के विकास को तरहीज दी. वो इस्लामी विचारधारा का पक्षधर रहा है, जिसे देवबंदी के नाम से जाना जाता है.

कैसा संगठन है शूरा, जिसका प्रमुख है मुल्ला हसन?

प्रधानमंत्री मुल्‍ला हसन क्‍वेटा शूरा का प्रमुख है. यह एक रूढ़िवादी, धार्मिक संगठन हैं, जिसकी मान्यताओं में महिलाओं पर प्रतिबंध और नैतिक व धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिक अधिकारों से वंचित करना शामिल है. इससे पहले जब तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा था तब भी तालिबानी कानून में महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाना, लैंगिक अलगाव को लागू करना और सख्त धार्मिक परिधान को अपनाना शामिल था.

अखुंद को कैसे मिला प्रधानमंत्री पद?

अखुंद की नियुक्ति के पीछे सत्ता संघर्ष नजर आ रहा है. मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, जिन्होंने उमर की मौत के बाद परोक्ष तौर पर नेता का पद संभालने से पहले तालिबान के शुरुआती वर्षों में उमर के बाद दूसरे नंबर का पद संभाला था, उन्हें अफगानिस्तान मामले के कई विशेषज्ञ देश के संभावित प्रमुख के तौर पर देख रहे थे. लेकिन बरादर और शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क के बीच राजनीतिक तनाव है.

हक्कानी नेटवर्क वह इस्लामी संगठन है जो हाल के वर्षों में तालिबान की वास्तविक राजनयिक शाखा बन गया है. इसे अन्य स्थानीय समूहों के बीच भी समर्थन हासिल है. हक्कानी तालिबान के सबसे उग्रवादी गुटों में से है और महिलाओं के अधिकारों, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करने और पूर्व सरकार के सदस्यों के लिए माफी जैसे मुद्दों पर अब्दुल गनी बरादर की राय हक्कानी नेटवर्क की विचारधारा के विपरीत है.

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