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जयंती विशेषः सामंतवाद का मुखर विरोध करने वाले कलम के सिपाही थे ‘मुंशी प्रेमचंद्र’

सौरभ भट्ट

आजादी के दौर के महान लेखक और कथाकार जिन्होंने 300 से ज्यादा कहानियां लिखी. इनकी लेखनी ने आजादी की लड़ाई के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम रोल अदा किया. इस महान लेखक का नाम है मुंशी प्रेमचंद. 31 जुलाई यानि आज मुंशी प्रेमचंद्र की 141 वीं जयंती है.
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम आनंदी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे. उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू,फारसी से हुआ. पढ़ने का शौक उन्‍हें बचपन से ही लग गया. 13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने ‘तिलिस्मे होशरूबा’पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’,मिरजा रुसबा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया था.
1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए. नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी 1910 में उन्‍होंने अंग्रेजी,दर्शन,फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और 1919 में बी.ए.पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए.
मुंशी प्रेमचंद के बारे में अनसुने तथ्य
  • उनका बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव है और उपनाम नवाब राय है. उन्होंने अपने उपनाम के साथ अपने सभी लेखन लिखे. अंत में उनका नाम बदलकर मुंशी प्रेमचंद कर दिया गया.
  • उनका पहला नाम मुंशी उनके प्रेमियों द्वारा दिया गया एक मानद उपसर्ग है, जो उनके अच्छे व्यक्तित्व और प्रभावी लेखन के कारण दिया गया.
  • एक हिंदी लेखक के रूप में उन्होंने लगभग दर्जन भर उपन्यास, 250 लघु कथाएं और कई निबंध लिखे. साथ ही उन्होंने कई विदेशी साहित्यिक कृतियों का हिंदी भाषा में अनुवाद किया.
  • बचपन में वह लमही गांव में पले-बढ़े. वह अपने पिता अजायब लाल की चौथी संतान थे. अजायब लाल पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे और मां आनंदी देवी एक गृहिणी थीं.
  • मुंशी प्रेमचंद के दादा गुरु सहाय लाल और माता-पिता उनसे बहुत प्यार करते थे. इसीलिए उनका नाम धनपत राय रखा, जिसका अर्थ है धन का स्वामी.
  • उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 7 साल की उम्र में लालपुर गांव (लमही से लगभग ढाई किमी दूर) के एक मदरसे में शुरू की थी, जहां उन्होंने मौलवी से उर्दू और फ़ारसी भाषा सीखी थी.
  • मुंशी प्रेमचंद जब 8 साल के साथ थे, उनके सिर से मां का साया उठ गया था. इसके बाद उनकी दादी का भी निधन हो गया. वह घर में अकेला महसूस करते थे, जिसके कारण उनके पिता ने दूसरी शादी की थी.
मृत्यु से पहले का जीवन
मुंशी प्रेमचंद ने वर्ष 1934 में बॉम्बे (अब मुंबई) गए और हिंदी फिल्मों के लिए काम करना शुरू किया. उन्हें अजंता सिनेटोन प्रोडक्शन हाउस में पटकथा लेखन का काम मिला. उन्होंने फिल्म मजदूर के लिए पटकथा लिखी और उसी फिल्म में एक मजदूर (मजदूरों का नेता) की भूमिका भी निभाई. लेकिन उन्हें व्यावसायिक फिल्म उद्योग का माहौल पसंद नहीं था, इसलिए वह एक साल का अनुबंध पूरा करने के बाद वापस बनारस लौट आए.
वह खराब स्वास्थ्य के कारण हंस पत्रिका को प्रकाशित नहीं कर पाए. इसलिए, उन्होंने भारतीय साहित्य काउन्सेल को सौंपने का फैसला किया. वर्ष 1936 में, प्रेमचंद को लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया. बीमारी की वजह से 8 अक्टूबर 1936 में उनकी मृत्यु हो गई.
प्रेमचंद की कहानियां
  • दुनिया का सबसे अनमोल रतन
  • सप्‍त सरोज
  • नवनिधि
  • प्रेमपूर्णिमा
  • प्रेम-पचीसी
  • प्रेम-प्रतिमा
  • प्रेम-द्वादशी
  • समरयात्रा
  • मानसरोवर : भाग एक व दो
  • कफन
प्रमुख कहानियां
  • पंच परमेश्वर
  • गुल्‍ली डंडा
  • दो बैलों की कथा
  • ईदगाह
  • बड़े भाई साहब
  • पूस की रात
  • कफन
  • ठाकुर का कुआं
  • सद्गति
  • बूढ़ी काकी
  • तावान
  • विध्‍वंस
  • दूध का दाम
  • मंत्र
प्रेमचंद के उपन्यास
  • असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य
  • हमखुर्मा व हमसवाब
  • सेवासदन (1918)
  • बाजारे-हुस्‍न (उर्दू)
  • प्रेमाश्रम (1921)
  • गोशाए-आफियत (उर्दू)
  • रंगभूमि (1925)
  • कायाकल्‍प (1926)
  • निर्मला (1927)
  • गबन (1931)
  • कर्मभूमि (1932)
  • गोदान (1936)
  • ‘मंगलसूत्र’ प्रेमचंद का अधूरा उपन्‍यास है
कहानियां जो देती थी प्रेरणा
नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, गोदान, गबन, कफन के अलावा कई अन्य कहानियां आज भी विश्व साहित्य का हिस्सा हैं. मुंशी जी ने अपने लेखन की शुरुआत आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के उस दौर में की जब गांधी जी अंग्रेजों से भारत छोड़ने की बात पर टिके हुए थे. गांधी जी के आंदोलन से मुंशी प्रेमचंद्र इतने ज्यादा प्रेरित हुए कि उन्होंने शिक्षण संस्था छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में कूद गए. मुंशी जी ने अपनी कलम की ताकत से किसान और ग्रामीण परिवेश की ऐसी तस्वीर उकेरी जिसने उस वक्त कि सामंतवादी व्यवस्था और दमनकारी नीति के शिकार हो रहे थे.

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