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अक्टूबर महीने में क्यों बढ़ा बिजली का संकट, पढ़िए क्या कहती है यह खास रिपोर्ट

भारत में कोयले का संकट जारी है. बिजली कटने की खबरें भी मीडिया में आ रही हैं. सरकार का दावा है कि देश में कहीं कोयले का संकट नहीं है और सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है कि कोई कोना बिजली से वंचित न रहे. इस बीच एक रिपोर्ट कहती है कि अक्टूबर छमाही में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है जबकि सप्लाई घटी है. यानी कि जिस दर से बिजली की मांग बढ़ी है, उस दर से बिजली की सप्लाई नहीं बढ़ी. ‘रॉयटर्स’ की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.

रिपोर्ट कहती है, अक्टूबर की पहली छमाही के दौरान भारत की बिजली की मांग में 4.9% की वृद्धि हुई. बिजली की जितनी डिमांड रही उससे 1.4 फीसदी कम सप्लाई हुई जबकि कोयले से पैदा होने वाली बिजली में 3.2 फीसदी का इजाफा देखा गया. इसी तरह सोलर आउटपुट यानी कि सौर ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली में भी 30 फीसदी का उछाल रहा.

क्या है वजह

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड की दूसरी लहर खत्म होने के बाद आर्थिक गतिविधियों में बड़ी तेजी देखी जा रही है. कल-कारखाने और फैक्ट्रियां पूरे जोर-शोर से काम कर रही हैं जिससे बिजली की खपत में बड़ी वृद्धि हुई है. इसका असर यह हुआ कि कोयले की कमी से बिजली की सप्लाई कम हो गई. जिस दर से बिजली की मांग बढ़ी, उस दर से थर्मल पावर प्लांट में कोयले की सप्लाई नहीं हुई. इसका बड़ा प्रभाव उत्तर भारत के कई प्रांतों में दिखा है जहां कोयले की कमी के चलते एक दिन में 14 घंटे तक की बिजली कटौती की गई है. यह दावा ‘रॉयटर्स’ ने अपनी रिपोर्ट में किया है.

वैश्विक बाजार में बढ़ गए दाम

घरेलू स्तर पर बिजली की मांग बढ़ने और कोयले की कमी ने बिजली संकट को ज्यादा बढ़ा दिया. इसकी बड़ी वजह कई वैश्विक फैक्टर भी रहे. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों से कोयला मंगाता है. फिर इन कोयलों को थर्मल प्लांट में भेजा जाता है. दुनिया के बाजारों ने मांग में बढ़ोतरी को देखते हुए कोयले के दाम में इजाफा किया है. हालांकि विदेशी बाजारों में कहा जा रहा है कि भारी बारिश और तूफान के चलते कोयले के खनन में कमी आई है. लिहाजा कमी के चलते मांग में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है. इसलिए आयातित कोयले के दाम में अचानक उछाल देखे गए हैं.

Coal Shortage

पेट्रोल के साथ भी ऐसा ही हुआ

कमोबेस यही हाल कच्चे तेल यानी कि ईंधन के दाम में देखे गए हैं. लॉकडाउन और कोविड के प्रतिबंधों में ढील के बाद अचानक सड़कों पर गाड़ियां लौटीं. कई महीने बंद होने के बाद वाहन सरपट दौड़ने लगे और तेल की मांग आसमान छूती रही. भारत चूंकि 70-80 फीसदी तक कच्चा तेल बाहर से मंगाता है, इसलिए वैश्विक बाजार का असर तेलों के दाम पर दिख रहा है. तेल उत्पादन करने वाले देशों का संगठन ओपेक बार-बार अनुरोध के बावजूद तेलों की सप्लाई बढ़ाने को तैयार नहीं. दुनिया के बाजारों में एक कृत्रिम कमी पैदा की गई. उसका नतीजा है कि आज भारत में पेट्रोल के दाम उस ऊंचाई पर हैं, जिसके बारे में सोचना भी मुनासिब नहीं. आज पेट्रोल और डीजल में फासला खत्म हो चुका है.

भारी संकट का लब्बो-लुआब

अब आइए फिर कोयले और बिजली पर लौटते हैं. भारत कोयला प्रधान बिजली वाला देश है. अर्थात यहां की बिजली कोयले पर दौड़ती है. यहां के थर्मल प्लांट कोयले से ही बिजली उगलते हैं. अक्टूबर महीने के शुरुआती 15 दिन का हिसाब लगाएं तो देश की पूरी बिजली में कोयले की हिस्सेदारी 70 परसेंट तक पहुंच गई. यह आंकड़ा अपने आप में चौंकाने वाला है. ठीक एक महीने पहले सितंबर में कोयले की हिस्सेदारी 66.5 फीसदी थी. यह आंकड़ा POSOCO का दिया हुआ है जिस पर ‘रॉयटर्स’ की पूरी रिपोर्ट आधारित है.

सरकार का प्रयास कहां तक पहुंचा

बिजली मंत्रालय का एक आंकड़ा कहता है कि देश के थर्मल पावर प्लांट के पास जो भी गोदाम (अंग्रेजी में इनवेंटरी कह सकते हैं) हैं, उनमें अधिकांश 3 दिन या उससे भी कम के लिए कोयला बच रहा है. पिछले दो महीने पहले का हिसाब देखें तो थर्मल पावर प्लांट के गोदाम में 12 दिन के कोयले का भंडार बचता था. लेकिन आज यह दो-तिहाई तक गिर कर 3-4 दिन पर आ गया है.

इस कमी को भांपते हुए ऊर्जा मंत्री ने सितंबर महीने में अधिकारियों को निर्देश दिया था कि जिन कोल पावर प्लांट में कोयले की बेहद कमी है, पहले वहां सप्लाई तेज की जाए. यानी कि जिन गोदामों में 14 दिन के बदले 10 दिन का कोयला बच गया हो, पहले वहां सप्लाई भेजी जाए. कोयले का यही ‘री-लोकेशन’ आज इतना राहत दे गया है कि अब अधिकांश थर्मल प्लांट के पास समान रूप से 1-3 दिन का कोयला बचा है. इक्के-दुक्के पावर प्लांट ही हैं जिनके पास 7 दिन का भंडार है.

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