संसद का शीतकालीन सत्र बुधवार को निर्धारित समय से एक दिन पहले खत्म हो गया. मौजूदा सत्र 29 नवंबर को शुरू हुआ था और इसके 23 दिसंबर तक चलने का कार्यक्रम था. सत्र की समाप्ति के बाद केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने बताया कि मौजूदा सत्र के दौरान लोकसभा में 82 फीसदी और राज्यसभा में 47 फीसदी कामकाज हुआ. 12 राज्यसभा सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर विपक्ष के हंगामे और बार-बार स्थगन के कारण उच्च सदन के कामकाज पर काफी असर देखा गया.
प्रह्लाद जोशी ने शीतकालीन सत्र की समाप्ति पर मीडिया से कहा कि संसद में विपक्ष ने जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा नहीं की और शोर-शराबा किया जो दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा, विपक्ष का जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा नहीं करना, आसन के पास आकर शोर-शराबा करना और नियम-पुस्तिका फेंकना दुर्भाग्यपूर्ण है. विपक्ष ने ही महंगाई के मुद्दे पर चर्चा की मांग की थी, सरकार चर्चा को तैयार थी और लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति ने इस पर चर्चा की मंजूरी दी थी, लेकिन कार्यसूची में सूचीबद्ध होने के बावजूद विपक्षी दल चर्चा को तैयार नहीं थे.”
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लोकसभा की 18 बैठकों के दौरान 9 विधेयक पारित हुए जिसमें कृषि कानूनों को वापस लिए जाने का बिल भी शामिल है. इस दौरान अलग-अलग मुद्दों पर लोकसभा में 83 घंटे 12 मिनट के लिए चर्चा हुई. शीतकालीन सत्र के पहले 3 हफ्तों की 15 बैठकों के दौरान, राज्यसभा ने 6 बैठकों के लिए प्रतिदिन एक घंटे से भी कम समय तक कार्य किया.
सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर बना रहा गतिरोध
राज्यसभा में सत्र के पहले ही दिन 12 सांसदों को पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था, जिसके बाद सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना रहा. निलंबित सांसदों ने संसद की कार्यवाही के दौरान प्रतिदिन संसद परिसर में धरना दिया. जिन सदस्यों को निलंबित किया गया था, उनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के इलामारम करीम, कांग्रेस की फूलो देवी नेताम, छाया वर्मा, रिपुन बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रताप सिंह, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन और शांता छेत्री, शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के विनय विस्वम शामिल थे.
इससे पहले संसद के मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में सिर्फ 28 प्रतिशत कामकाज हुआ था. इस दौरान सदन में 28 घंटे 21 मिनट कामकाज हुआ और हंगामे के कारण 76 घंटे 26 मिनट का कामकाज बाधित हुआ था. यह 2014 में राज्यसभा के 231वें सत्र के बाद व्यवधानों और स्थगनों के चलते 4 घंटे 30 मिनट के साथ प्रतिदिन औसतन सबसे ज्यादा समय का नुकसान था.