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लिथियम-आयन बैटरी के इस्तेमाल से बढ़ रहा इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने का खतरा, जानिए कैसे

जनरल मोटर्स कंपनी ने एलजी द्वारा बनाई गई पाउच-टाइप लिथियम-आयन बैटरी सेल्स से आग लगने के जोखिम के कारण अपने शेवरले बोल्ट इलेक्ट्रिक वाहनों को वापस बुला रही है. एलजी केम की बैटरी यूनिट से जुड़ी ये समस्या इलेक्ट्रिक कारों को बिजली देने के लिए एक स्टेबल प्रोडक्ट बनाने में बैटरी फर्मों के सामने आने वाली चुनौतियों की तरफ इशारा करती है.

बात सीधी सी है कि एक तरफ जहां हम इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच होने के लिए आगे बढ़ रहे हैं लेकिन लिथियम-आयन बैटरी के इस्तेमाल से वाहनों में आग लगने का खतरा हो सकता है. इस बात में कितनी सच्चाई है इसे समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि लिथियम-आयन बैटरी कैसे काम करती है? आइए इसे डिटेल में जानते हैं…

कैसे काम करती है लिथियम-आयन बैटरी

दरअसल सेल्स अलग-अलग साइज में आती हैं लेकिन अधिकांश में तीन खास एलिमेंट होते हैं: इलेक्ट्रोड, इलेक्ट्रोलाइट और सेप्रेटर. इलेक्ट्रोड लिथियम को स्टोर करते हैं. इलेक्ट्रोलाइट लिथियम आयन्स को इलेक्ट्रोड के बीच ले जाता है. सेप्रेटर पॉजिटिव इलेक्ट्रोड को निगेटिव इलेक्ट्रोड के कॉन्टेक्ट में आने से रोकता है.

इलेक्ट्रिसिटी के रूप में एनर्जी, बैटरी सेल से तब निकलती है जब लिथियम आयन निगेटिव इलेक्ट्रोड, या एनोड से पॉजिटिव इलेक्ट्रोड, या कैथोड में सर्कुलेट होते हैं. जब सेल चार्ज हो रहा होता है, तो वे आयन कैथोड से एनोड तक अपोजिट डायरेक्शन में सर्कुलेट होते हैं.

ली-आयन बैटरीज से आग का खतरा क्यों होता है?

लिथियम-आयन बैटरी, चाहे वे कारों या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में उपयोग की जाती हैं, यदि ये गलत तरीके से बनी या डैमेज हो गई हैं या यदि बैटरी ऑपरेट करने वाला सॉफ़्टवेयर सही तरीके से डिज़ाइन नहीं किया गया है तो इनसे आग लग सकती है.

इलेक्ट्रिक कारों में लिथियम-आयन बैटरी की बड़ी कमजोरी कार्बनिक तरल इलेक्ट्रोलाइट्स का उपयोग है, जो हाई टेम्प्रेचर पर काम करते समय अनस्टेबल और ज्वलनशील (flammable) होते हैं. एक बाहरी फोर्स जैसे दुर्घटना से भी रासायनिक रिसाव हो सकता है. साथ ही अधिकारी, कार निर्माता और बैटरी निर्माता अक्सर यह खुलासा नहीं करते हैं कि सटीक सुरक्षा जोखिम क्या है.

बोल्ट और कोनस में आग लगने का क्या कारण है?

फरवरी में, दक्षिण कोरिया के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने कहा कि एलजीईएस चीन कारखाने में बनी कुछ बैटरी सेल्स में कुछ दोष पाए गए थे और इनका हुंडई मोटर की इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल किया गया था, जिसमें कोना ईवी भी शामिल है. हुंडई की रिकॉल की कॉस्ट लगभग 1 ट्रिलियन वॉन(854 मिलियन डॉलर) है.

जीएम ने कहा कि बोल्ट ईवी और बोल्ट ईयूवी के लिए एलजी द्वारा सप्लाई की गई बैटरीज में दो मैनुफैक्चरिंग फॉल्ट हो सकते हैं – एक फटा हुआ एनोड टैब और फोल्डेड सेपरेटर. ये एक ही बैटरी सेल में मौजूद होते हैं जिससे आग लगने का खतरा बढ़ जाता है.

क्या पाउच-टाइप की बैटरी अधिक कमजोर होती हैं?

वर्तमान में इलेक्ट्रिक कारों में उपयोग की जाने वाली सभी तीन टाइप की लिथियम-आयन बैटरी – सिलिंड्रिकल, प्रिज्मेटिक और पाउच-टाइप – ऑरिजनल रूप से वर्किंग कैपेसिटी में समान हैं लेकिन हर एक के फायदे और नुकसान हैं.

सिलिंड्रिकल और प्रिज्मेटिक बैटरीज को सॉलिड एलिमेंट में रखा जाता है. पाउच-टाइप सीलबंद फ्लेक्सिबल फॉयल का उपयोग करते हैं और पतली धातु की थैलियों द्वारा प्रोटेक्ट होते हैं. सिलिंड्रिकल और प्रिज्मेटिक सेल्स की तुलना में, पाउच-टाइप की बैटरी सेल्स हल्के और पतले सेल स्ट्रक्चर में होती हैं. ये दुर्घटनाओं में अधिक असुरक्षित हैं, जिससे आग का अधिक खतरा होता है.

जीएम और हुंडई मोटर एलजी एनर्जी सॉल्यूशन (पूर्व में एलजी केम) से पाउच बैटरी सेल का उपयोग करते हैं. फॉक्सवैगन ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि वह एलजी और एसके इनोवेशन कंपनी लिमिटेड द्वारा बनाई गई पाउच-शैली की सेल्स से प्रिज्मेटिक टेक्नोलॉजी में ट्रांसफर हो जाएगी.

दूसरे सॉल्यूशन क्या हैं?

चीन की BYD Co जैसी कंपनियां EV बैटरी सेल का प्रोडक्शन करती हैं जो लिथियम आयरन फॉस्फेट कैथोड का उपयोग करती हैं, जिनमें आग लगने की संभावना कम होती है, लेकिन स्टैंडर्ड् सेल्स के रूप में ये उतनी ऊर्जा स्टोर करने में सक्षम नहीं होते हैं जो निकल कोबाल्ट मैंगनीज कैथोड का उपयोग करती हैं.

  • जीएम सहित दूसरे निकल-कोबाल्ट-मैंगनीज-एल्यूमीनियम (एनसीएमए) टेक्नोलॉजी जैसे कई केमिकल्स की टेस्टिंग कर रहे हैं, जो कम कोबाल्ट का उपयोग करते हैं, इससे सेल्स को अधिक स्टेबल और सस्ता बना दिया जाता है.
  • चीनी बैटरी निर्माता CATL ने पिछले महीने एक सोडियम-आयन बैटरी को पेश किया था जिसमें लिथियम, कोबाल्ट या निकल शामिल नहीं है.
  • टोयोटा मोटर कॉर्प सहित कई कंपनियां सॉलिड-स्टेट इलेक्ट्रोलाइट्स वाली बैटरी सेल भी डेवलप कर रही हैं, जो ओवरहीटिंग और आग के जोखिमों को कम कर सकती हैं लेकिन इसके लाने में तीन से पांच साल का समय लग सकता है.

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