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पुतिन ने ट्रम्प की औकात बता दी, मोदी ने ट्रम्प को दिखाया ठेंगा

  • मुनीर को गोद में लेकर घूम रहा है दुनिया का सबसे ताकतवर नेता
  • भारत चीन में दूरियाँ कम होने के आसार फिर भी सतर्क रहने की जरूरत

शिव शंकर गोस्वामी (वरिष्ठ पत्रकार)


अगस्त के पहले पखवाड़े में दुनिया की दो महाशक्तियों रूस और अमेरिका का अलास्का में मिलन बेनतीजा रहा किंतु यहां फिर भी रूस का पलड़ा भारी रहा। अमेरिका का बड बोला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चला था रूस के राष्ट्रपति ब्लदिमिर पुतिन ने साथ यूक्रेन- रूस युद्ध को रोकने के लिए समझौता कराने लेकिन उसकी मंशा धरी की धरी रह गयी क्योंकि असली मंशा युद्ध रोकवाये की नहीं बल्कि यह जताना था कि दुनिया में शांति स्थापित करने को लेकर वह बहुत प्रयास रत है। ऐसा करके ट्रम्प संदेश दे ना चहता है कि वह दुनिया का शांति दूत है और उसे नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए लेकिन उसे यह पुरस्कार मिलना नहीं है। कारण साफ़ है। एक तो नार्वे की नोबेल पुरस्कार कमेटी यह अच्छी तरह जनती है कि ट्रम्प की विश्वसनीयता अब उसके अपने ही देश में ही घट रही है तो अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उसकी साख क्या होगी। दुसरी बात यह है कि इजरायल और ईरान के हालिया युद्ध के दौरान अमेरिका ने ईरान पर मिसाइल से हमला किया था। इसलिए दुनिया के सबसे बडे़ मसखरे को नोबेल पुरस्कार का सपना तो भूल ही जाना चाहिए।

बात हो रही है अलास्का बैठक पर तो बता दे कि यह पूरी तरह फ्लाप रही हैं। राजनीति के खिलाड़ी पुतिन ने ट्रम्प के उस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया जिसमें यूक्रेन के साथ बिना शर्त युद्धविराम की बात कही गयी थी। पुतिन का कहना था कि साढ़े तीन साल से चल रहा यह युद्ध उसकी शर्तों पर ही रुकेगा। और दूसरी बात यह कि यूक्रेन के जिस 40 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर रूसी सेना ने कब्जा कर लिया है उसपर से यूक्रेन को अपना दावा छोडना होगा। इस शर्त को यूक्रेन का राष्ट्रपति कभी मान ने वाला नही।ऐसी दशा में ट्रम्प की कोशिश एक बन्दर प्रयास से अधिक कुछ साबित नहीं हुआ। ट्रम्प को अपना सा मुंह लेकर अलास्का से उल्टे पांव वापस लौटना पड़ा।

ट्रम्प के कारण आज अमेरिका को दुनिया में कोई अच्छा दोस्त नहीं मिल रहा है। अब केवल पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिफ मुनीर को गोद में उठाये घूम रहा है और बार बार ह्वाइट हाउस में बुलाकर उसे दावत खिला रहा है।

ट्रम्प को एक अराजनीतिक व्यक्ति कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि अपनी मूर्खता के कारण उसने भारत जैसे दोस्त को खो दिया और जिस पाकिस्तान को पूरी दुनिया आतंकवादी की संज्ञा देती है उसी को कंधे पर उठाये घूम रहा है।

मोदी ने भी दिखा दिया ट्रम्प को ठेंगा:–भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्रम्प को ठेंगा दिखा दिया है। उन्होंने साबित कर दिया है कि अमेरिका होगा दुनिया के लिए दादा किन्तु भारत अपने देश तथा अपने देश की जनता के हितों की रक्षा के लिए अमेरिका के आगे घुटने टेकने वाला नहीं है। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के भीतर ऐलानिया कह दिया है। प्रधानमंत्री के इस दो टूक जवाब के बाद जहाँ अमेरिका में ही ट्रम्प की आलोचना हो रही हैं वहां भारत का पारम्परिक दुश्मन चीन भी उसके साथ नजदीकियां बढाना चहता है। इसी उद्देश्य से चीन के विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री के बीच हाल ही में नयी दिल्ली में लम्बी द्विपक्षीय बातचीत भी हुईं हैं। भारत के पक्ष में एक बात यह अच्छी हुईं है कि वह आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम आगे बढा है।

अब सवाल यह उठता है कि हाऊदी मोदी और अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा देने वाले ट्रम्प और मोदी के रिश्तों में अचानक इतनी खटास क्यों आ गयी तो जवाब यह है कि आपरेशन सिंदूर के बाद ट्रम्प बेवजह का दादा बनना चाहता था और कहता फिर रहा था कि भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम का समझौता उन्होंने कराया था जो कि सौ प्रतिशत झूठ है। पूरी दुनिया जानती है कि भारत अपने किसी द्विपक्षीय मामले में किसी तीसरे देश की दखल को स्वीकार नहीं करता है। भारत के इस जवाब के बाद ट्रम्प बौखला गया और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिफ़ मुनीर को अपने आवास पर बुलाकर दावत खिलाने लगा। जिस समय मुनीर ह्वाइट हाउस में था उस समय भारत के प्रधानमंत्री मोदी कनाडा में हो रही जी 7 की बैठक में भाग ले रहे थे।

इस बीच ट्रंप ने दर्जनों बार मोदी को फोन करके व्हाइट हाउस में आने का नेवता दिया लेकिन मोदी ने इससे इनकार कर दिया क्योंकि वह जानते थे कि व्हाइट हाउस में ट्रंप उन्हें और मुनीर को आमने-सामने बैठा के बातचीत करने की कोशिश करेगा कनाडा से मोदी भारत आ गया और ट्रंप जल भुन उठा। मोदी के भारत लौटने के बाद ट्रंप ने भारत के ऊपर 50 फ़ीसदी टैरिफ लगा दिया जो उसकी खिसियाहट का सबसे बड़ा प्रमाण है लेकिन मोदी इसकी घोषणा के सामने झुके नहीं और देशवासियों से स्वदेशी अपनाने की अपील की जिसका असर आज देखने को मिल रहा है।

ट्रंप के इस खिसिया ने भरे कदम के बाद भारत और चीन के बीच की दूरियां घाटी हैं रस तो पहले से ही भारत के साथ था और रूस से तेल आयात करने के कारण ही ट्रंप ने भारत पर 50 फ़ीसदी का टैरिफ लगाया है। अब अमेरिका के इस मूर्खतापूर्ण फैसले को लेकर भारत रूस एवं चीन के बीच एक नया घाट जोड़ बनता नजर आ रहा है लेकिन किस घटनाओं को देखते हुए भारत को चीन से सावधान रहने की जरूरत है बावजूद इसके अमेरिका और पाकिस्तान के खिलाफ यह नया मोर्चा बनता है भारत और दुनिया के हित हित में होगा।

क्या होता है टैरिफ

जब कोई देश किसी दूसरे देश से किसी उत्पाद का आयात करता है तो उसे पर सीमा शुल्क के रूप में कुछ कुछ टैक्स लगाया जाता है भारत से अमेरिका आयात करता था उसे पर अभी तक 10% का टैरिफ था उसी को बढ़ाकर 50% कर दिया है। अमेरिका समझता है किसी से भारत को नुकसान होगा लेकिन भारत के बजाय अमेरिकी जनता को महंगाई का सामना करना पड़ रहा है वहां पर $100 की में मिलती थी वह डेढ़ सौ डॉलर की हो गई है। इसको लेकर जनता के बीच में ट्रंप के प्रति बहुत आक्रोश है। भारत से आमतौर पर अमेरिका को कपड़ा, चमड़े के समान,मोबाइल दवाइयां का निर्यात होता आया है। अब यह चीज वहां महंगी हो जाएगी है इस बात को लेकर ट्रंप किसी आया हुआ घूम रहा है। उसकी किसी हाथ का एक कारण यह भी है कि वह अपने देश से भारत को दूध और दूध से उत्पादित वस्तुओं का निर्यात करना चाहता था लेकिन भारत ने उसे इसलिए लेने से मना कर दिया क्योंकि वहां के जानवरों को मांसाहारी चारा खिलाया जाता है अमेरिका अपनी बेइज्जती मान रहा है।

अमेरिका आज अगर पाकिस्तान के साथ खड़ा है तो कोई नई बात नहीं है इससे पहले भी 1971 के भारत-पाक लड़ाई के समय में उसने पाकिस्तान पक्ष में अपना सातवां बेड़ा भेजा था लोग यहां तक बताते हैं कि अमेरिका समय-समय पर पाकिस्तान को इसलिए पूछ करता रहता है कि उसने अपने परमाणु बमों का गोदाम पाकिस्तान में बना रखा है जबकि वह जानता है कि 9/11 हमले का मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन जब मर गया था तब वह पाकिस्तान में छिपा था इसके अलावा पाकिस्तान दुनिया के हर कोने में आतंकवाद फैलाने के लिए जाना जाता है ऐसी स्थिति में पाकिस्तान का पक्ष लेने का यही एक कारण है कि पाकिस्तान अमेरिका के परमाणु बम का वेयरहाउस है और इसी के बल पर पाकिस्तान भी कूदता रहता है कि हमारे पास इतने परमाणु बम है कि हम आधी दुनिया को नष्ट कर सकते हैं लेकिन आसिफ मुनीर के इस बयान पर ट्रंप छुट्टी साधे रहता है क्योंकि उसे डर है कि पाकिस्तान कहीं उसकी पोल ना खोल दे।

आसिफ मुनीर ने आधी दुनिया को नष्ट करने की धमकी ट्रंप के सामने ही दी थी लेकिन उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि वह पाकिस्तान किसी ने अध्यक्ष को चुप रहने की हिदायत देता। इसके बदले में पाकिस्तान ने ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने की चिट्ठी नॉर्वे की नोबेल पुरस्कार समिति को लिखा है पनीर के अलावा दुनिया के और किसी देश ने ट्रंप के पक्ष में कोई लेटर नहीं लिखा है।

यहां एक बात और बताते की दो देशों के बीच में होता है जब कोई रिश्ता होता है तो वह राजनीतिक स्तर पर होता है पाकिस्तान का ना तो प्रधानमंत्री और ना वहां का राष्ट्रपति अमेरिका के साथ बातचीत अथवा समझौता कर रहा है इसके स्थान पर एक सेना अध्यक्ष अमेरिका से राजनीतिक संबंध बनाने लगा हुआ है यह हास्यात्पद नहीं तो और क्या है ऐसी स्थिति में अगर ट्रंप नोबेल पुरस्कार की दावेदारी करता है तो उससे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं है।

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