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गुरु पूर्णिमा और महर्षि वेदव्यास

गुरुपूर्णिमा का पर्व महाज्ञानी वेदव्यास की पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। महर्षि व्यास महर्षि पाराशर तथा माता सत्यवती के पुत्र हैं। यमुना जी के द्वीप में जन्म लेने के कारण व्यास जी को कृष्ण द्वैपायन तथा बदरीवन में तपस्या करने के कारण बादरायण व्यास भी कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण वेद, पुराण, इतिहास और परमतत्व का ज्ञान हो गया था। भगवान वेदव्यास ने ही महाभारत की रचना की थी।

आदियुग में वेद एक ही था। महर्षि अंगिरा ने उनमें से सरल तथा भौतिक उपयोग के छंदों को संग्रहीत किया। यह संग्रह छांदस,अंगिरस या अथर्ववेद कहलाया। भगवान व्यास ने उनमें से ऋचाओं, गायन योग्य मंत्रों और गद्य भाग को अलग- अलग किया। इस प्रकार ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद का वर्तमान स्वरूप निश्चित हुआ। इस कार्य वे वेदव्यास कहलाये। भगवान व्यास ने पुराणों का संकलन करके उन्हें सभी के पढ़ने योग्य बनाया। अष्टादश पुराणों के अतिरिक्त बहुत से उपपुराण तथा धर्म , अर्थ, काम, मोक्ष संबंधी सिद्धांत को एकत्र करने के विचार से व्यास ने ही महाभारत की रचना की। महाभारत को पंचम वेद कहा गया है। महाभारत की कथा व्यास जी बोलते गये और श्रीगणेश जी लिखते गये। हिंदू संस्कृति का वर्तमान स्वरूप महर्षि व्यास द्वारा ही सजाया गया है।

द्वापर युग के अंतिम भाग में व्यासजी का अवतरण हुआ था। उन्होंने अपनी सर्वज्ञ दृष्टि से समझ लिया था कि कलियुग में मानव की शारीरिक और मानसिक शक्ति बहुत घट जायेगी अत : उन्होंने कलियुग को ध्यान में रखते हुए वेदों के चार भाग कर दिये थे। जो लोग वेदों को नहीं समझ सकते उनके लिये महाभारत की रचना की। महाभारत में सभी वेदों का ज्ञान आ गया है। धर्म , नीतिशास्त्र, उपासना और ज्ञान -विज्ञान की सभी बातें महाभारत में बड़े सरल ढंग से समझायी गई हैं।

इसके अतिरिक्त पुराणों की अधिकांश कथाओं द्वारा हमारे देश, समाज तथा धर्म का पूरा इतिहास महाभारत में आया है। महाभारत के बाद व्यास जी ने हरिवंश भगवान श्रीकृष्ण की कथा लिखी। वे प्रतिभावान व श्रेष्ठ विभूति थे। उन्होनें महाराज शांतनु से लेकर जनमेजय तक की पीढ़ियों तक का उतार – चढ़ाव देखा। महर्षि वेदव्यास संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। वेदव्यास जी भगवान के अवतार माने जाते हैं। वे अमर हैं और समय- समय पर भगवान के भक्तों को उनके दर्शन भी हुये। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र को व्यास जी के दर्शन हुए। अतः गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत की महान परम्पराओं को नमन करने का भी पर्व है।

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