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लीगल प्रोफेशन में भी वंचितों की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए : सीजेआई चंद्रचूड़

  •  संविधान दिवस पर कानून मंत्री का अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने पर जोर

नई दिल्ली। चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ संविधान को लिखने का काम भी किया गया। देश के आजाद होने के समय कई सामाजिक बुराईयां थीं और अभी भी हैं, जिनके खिलाफ आगे भी लड़ाइयां लड़नी हैं। उन्होंने कहा कि लीगल प्रोफेशन में भी वंचितों की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए।

चीफ जस्टिस आज संविधान दिवस पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम अदालतों के कामकाज में सुधार के लिए तकनीक अपना रहे हैं। यह सर्वोच्च महत्व और आवश्यकता है कि न्याय की तलाश में लोग अदालतों तक पहुंचने के बजाय लोगों तक पहुंचने के लिए अदालतों को फिर से तैयार करें। उन्होंने कहा कि हमारे जैसे बहुसांस्कृतिक देश में न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती वंचितों तक न्याय की पहुंच बनाना है। न्यायपालिका की कोशिश लोगों तक पहुंचने की होनी चाहिए।

सीजेआई ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हम न्यायपालिका का हिस्सा रहे लोगों के विभिन्न वर्गों के अनुभव को टैप करें। उनके ज्ञान और समझ से संस्था मजबूत होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानूनी पेशे और न्यायपालिका में हाशिए पर रहने वाले समुदायों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाए। हमारे जैसे बड़े और विविध राष्ट्र में एक संस्था के रूप में न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि न्याय वितरण प्रणाली सभी के लिए सुलभ हो। चुनौतियों के लिए समर्पित कार्यों की आवश्यकता होती है।

इस मौके पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बाबासाहेब डॉ. बीआर अंबेडकर के शब्दों को याद करने के लिए आज उपयुक्त समय है जब उन्होंने हमें चेतावनी दी थी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस आजादी ने हम पर बड़ी जिम्मेदारियां डाली हैं, आजादी से हमने कुछ भी गलत होने के लिए अंग्रेजों को दोष देने का बहाना खो दिया है। उन्होंने कहा कि देश की कानूनी सामग्री और कानूनी शब्दावली आम आदमी की समझ में आने वाली स्थानीय भाषा में उपलब्ध नहीं है।

रिजिजू ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कई अवसरों पर न्यायिक प्रणाली में हमारे देश के आम लोगों के विश्वास को बढ़ाने और उन्हें भी जुड़ाव महसूस कराने के लिए अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। कानून मंत्रालय के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने पूर्व सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता में भारतीय भाषा समिति का गठन किया है। यह समिति पहले कदम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं में कानूनी सामग्री का अनुवाद करने के लिए सभी भारतीय भाषाओं के करीब एक सामान्य कोर शब्दावली विकसित करने के लिए शब्दों और वाक्यांशों को सूचीबद्ध कर रही है।

केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि विधायी विभाग ने 65,000 कानूनी शर्तों की एक शब्दावली तैयार की है। हमारी योजना इसे डिजिटाइज़ करने और इसे जनता के लिए खोज योग्य प्रारूप में उपलब्ध कराने की है। क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित कानूनी शब्दावलियों को एकत्र करने, डिजिटाइज़ करने और इसे जनता के लिए खोज योग्य प्रारूप में उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा। भारत जैसे विशाल देश की कुल आबादी का 65% हिस्सा अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है और जहां क्षेत्रीय और स्थानीय भाषा समझने का माध्यम है।

अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि यह कार्य चुनौतीपूर्ण हैं, जाति और अन्य सामाजिक विभाजनों की कुछ हानिकारक समस्याओं को मिटाने की आवश्यकता है। समानता का दावा जटिल है और नए विभाजन पैदा किए बिना कानून, समाज और अदालतों के बीच समन्वय की मांग की जानी चाहिए। समारोह को जस्टिस संजय किशन कौल ने भी संबोधित किया।

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