उत्तर प्रदेशलखनऊ

जब भरत मिलाप होता है तो रूक जाता है रास्ता

  • पैट्रोमेक्स, पोलर लाइट में शुरू हुई थी लखनपुरी के चिनहट की रामलीला

लखनऊ। जब भरत मिलाप होता है, तब उस समय एक घंटे के लिए रास्ता रोक दिया जाता है। जी, हम बात कर रहे श्रीजीवन सुधार रामायणी सभा की ओर से चिनहट में होने वाली रामलीला का। लखनपुरी के ग्रामीण क्षेत्र की यह एक अकेली रामलीला है। यहां के व्यापारियों ने आपसी सहयोग से यहां पर प्रभु की लीला का मंचन शुरू किया। इस रामलीला के दशहरा मेले को देखने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी संख्या में दर्शक आते हैं। बहुत ही छोटे से स्तर से शुरू हुई यह रामलीला आज शहर की एक अच्छी रामलीलाओं में शुमार की जाती है। आजकल लीला मंचन के कलाकार पूर्वाभ्यास कर रहे हैं। वहीं मंच को भी बनाया जा रहा है। यहां की लीला 25 सितम्बर से शुरू होगी।

यहां एक बात बताना जरूरी हो जाता है कि पहले चिनहट ग्रामीण क्षेत्र में आता था और कुकरैल पुल के पास चुंगी हुआ करती थी। हालांकि अब यह इलाका बहुत बढ़िया बन गया हैं और शहर में ही पूरी तरह से आ गया है। श्रीरामलीला समिति के एक पदाधिकारी बृजेंद्र गुप्ता बताते हैं कि यहां पर श्रीराम-भरत लीला का मंचन चिनहट चौराहे पर किया जाता है। उस समय लीला को देखने इतने दर्शक आ जाते हैं कि लगभग एक घंटे के लिए यातायात को रोक देना पड़ता है।

उन्हाेंने बताया कि 1956 में चिनहट बाजार के व्यापारी मुंशी राम सहाय, राम आधार शाह, प्यारे जी गुप्ता, पंडित शिव दुलारे पाण्डेय, महेंद्र नाथ पाण्डेय, गोविंद प्रसाद गुप्त व कामता प्रसाद गुप्त ने मिलकर वहीं बाजार में एक जगह बड़े दरवाजे पर रामलीला का मंचन शुरू किया था। वह बतातें है कि तब उस समय यहां लाइट तो थी नहीं, इसलिए पेट्रोमेक्स, पोलर लाइट की रौशनी में लीला का आयोजित की जाती थी। डालीगंज से लीला का सामान मंगाया जाता था, तो कुकरैल चुंगी पर उसका टोल टैक्स मांगा जाता थाा, तब लीला समिति के पदाधिकारी वहां जाकर बताते थे कि भैया, यह रामलीला का सामान है, तो काफी मान-मनौव्वल के बाद सामान छोड़ा जाता था।

बृजेंद्र बताते है कि ग्रामीण बाजार के लोहार और बढ़ई बिना पैसे लिए ही लीला में प्रयोग होने तलवार, तीर- धनुष आदि चीजों को बना दिया करते थे। वह कहते कि आज भी यहां पहले की बनी लकड़ी के तलवारें रखी हुई हैं । इसी तरह से समिति के लोग डालीगंज तक चंदा मांगने जाया करते थे, कोई दो रूपए, पांच रूपए दे दिया करता था। इस तरह से यहां की लीला की यात्रा शुरू हुई।

उन्होंने बताया यहा श्रीराधेश्याम रामायण व श्रीरामचरित मानस के आधार पर संवाद बोले जाते हैं। कलाकार अवधी बोली का प्रयोग करते हैं। यहां की पूरी लीला के संचालक और कर्णधार समिति के अध्यक्ष देवेंद्र कुमार पाण्डेय है । वह यहां रोल भी करते हैं। वह बताते हैं कि यहां की रामलीला में एक ही परिवार के तीन पीढ़ी के सदस्य एक साथ मंच पर दिख जाते है। यहां पर लगभग 6-7 सौ की संख्या में दर्शक लीला देखने आते हैं।

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