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पानी को बचाने के लिए हर व्यक्ति को होना होगा जागरूक, प्रधानमंत्री का काम सराहनीय

  • समाजसेवियों ने कहा, जल का संरक्षण सरकार का विषय नहीं, इसके लिए जागरूकता की जरूरत

लखनऊ। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं झाड़ू उठाकर सफाई जागरूकता अभियान की शुरूआत की थी तो बहुतेरे लोग उसे आश्चर्य से देख रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि प्रधानमंत्री के इस तरह के कार्यक्रम से क्या लाभ होगा, लेकिन आज उसका फायदा दिखने लगा है। शहर या गांवों में भी लोग चाय पीने के बाद कुल्हड़ फेंकने के लिए चारों तरफ डस्टबीन की तलाश करते हैं। दुकानों पर भी डस्टबीन दिखने लगा है। उसी तरह पानी को बचाने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गयी टपक सिंचाई, फब्बारा सिंचाई प्रणाली आज जल क्रांति का आह्वान करती है। यह नारा भविष्य के लिए एक मंत्र साबित होने वाला है। ये बातें समाजसेवियों ने जल के महत्व व सरकार की पहल पर अपनी बातें रखते हुए कहीं।

इस संबंध में यूपी डवलपमेंट फाउंडेशन के अध्यक्ष और मिशन “कल के लिए जल” के राष्ट्रीय संयोजक चंद्रभूषण पांडेय ने कहा कि जल को बचाना बहुत जरूरी है। हमारे वेदों में भी जल की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। नदियों की पूजा की गयी है। तालाबों की पूजा आज भी कई प्रदेशों में होती है लेकिन हम धीरे-धीरे इसकी महत्ता को भूल गये। इसका परिणाम रहा कि जल स्रोत नीचे भागता जा रहा है। हम उसका दोहन तो करते जा रहे हैं, लेकिन संरक्षण पर ध्यान नहीं दे रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसको संरक्षित करने के लिए अभियान चलाने की प्रक्रिया शुरू की है। नि:संदेश इसका परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।

चंद्रभूषण पांडेय ने कहा कि इस दिशा में पीएम मोदी द्वारा चलाई गई टपक सिंचाई प्रणाली,फव्वारा सिंचाई प्रणाली एक जल क्रांति का आह्वान करती है जिसमें “ईच ड्रॉप मोर क्रॉप” का नारा भविष्य की चुनौती के लिए मंत्र साबित हो सकता है। यह सच्चाई है कि बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है और यह भी सच्चाई है कि बूंद-बूंद की बर्बादी से घडा खाली भी हो जाता है। आज हमारी जो जीवन शैली है उसमें बूंद बूंद की बर्बाद करने की शैली ना केवल भूमिगत जल भंडारों ,तालाब, नदी, नालों, को भी खाली कर दिया है। वही वर्षा काल में प्रकृति द्वारा उपहार रूप में मिलने वाली पानी की बूंदे संरक्षित करने की दृष्टि से हम अपने पूर्वजों द्वारा बताई गई पद्धतियों को विस्मृत कर चुके हैं।

उन्होंने कहा कि भोग वादी सोच से ऊपर उठकर जीवन शैली विकसित करने की जरूरत है। पानी के प्रबंधन की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे अभियान मिशन,”कल के लिए जल” द्वारा तृस्तरीय रणनीति पर काम किया जा रहा है, जो भविष्य की चुनौतियों को टिकाऊ विकास की दृष्टि से एक समाधान प्रस्तुत करता है। कुल वर्षा की मात्रा बढ़ाने की दृष्टि से वन आवरण तथा वृक्ष आवरण को अनिवार्य रूप से 33 प्रतिशत के लक्ष्य तक ले जाना ही होगा। इसके साथ ही सिमट रहे तालाबों, झीलों, पोखरों, नालों तथा नदियों को बचाना होगा,उन्हें विस्तार देना होगा।

वहीं समाजसेवी अजीत सिंह ने कहा कि पानी को बचाना बहुत जरूरी है। यह सरकार का ही काम नहीं है। इसके लिए जागरूकता जरूरी है। हर व्यक्ति को समझना होगा कि जल के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। जीवन को बचाने के लिए जल का संरक्षण जरूरी है। हमें आने वाली पीढ़ी के लिए जल को बचाना होगा। इसके लिए सरकार के साथ ही हम सभी को आगे आना चाहिए। वहीं जल संरक्षण के लिए काम करने वाले राघवेन्द्र सिंह का कहना है कि व्यक्ति तब तक नहीं चेतता है, जब उस पर नहीं पड़ता और जब उसको चेतना आती है, तब तक उसके जान को खतरा आ जाता है। जाने बची रहे, इसके लिए हर व्यक्ति को जागरूक होना पड़ेगा।

हिन्दुस्थान समाचार/ उपेन्द्र

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